एक गांव में एक गलेदार रहता था। गलेदार बहुत चंट और चकड़ैत था। वह दिनभर इधर से उधर सट्टा-पट्टी करता रहता था। उसकी सट्टा-पट्टी की आदतों से न सिपर्फ गांव वाले बल्कि आस-पास के क्षेत्रा के लोग भी परेशान थे। उसकी हरकतें दिन-प्रति दिन बढ़ती जा रही थी। उसकी हरकतों से परेशान होकर एक दिन गांव वालों ने उसकी नाक काट दी। नाक कटने के कारण वह अब जंगलों में छिपने लगा। एक दिन वह जब जंगल से जा रहा था कि, उसे एक साधु का आश्रम दिखायी दिया। उसे एक युक्ति सूझी वह आश्रम में गया तथा उसने साधु महाराज को दण्डवत प्रणाम किया। साधु महाराज के उसे शुभाषीश देते हुए आने का कारण पूछा उसने कहा कि महाराज मैं इस जंगल से गुजर रहा था तभी मुझे कुछ डाकूओं ने घेर लिया तथा मेरी नाक भी काट दी मैं किसी तरह बचते-बचाते यहां पहुंचा हूं। अब आप ही मेरे सहारा हैं। साधु महाराज ने कहा निश्चिंत हो जाओ, तुम इस आश्रम में निर्भय होकर रह सकते हो। वह नकट्टा आश्रम में रहने लगा परन्तु कहते हैं चोर, चोरी से जाए पर हेरापफेरी से न जाए। उसके मन में यही अधेड़ बुन रहती थी कि कैसे इस आश्रम पर कब्जा किया जाए। इसी उद्देश्य को दृष्टिगत रखते हुए उसने साधु महाराज की बहुत सेवा की ताकि साधु महाराज का विश्वास हासिल किया जा सके। साधु महाराज ने उसे गुरू विद्या भी दी तथा कुछ आसन भी सिखा दिए। दीक्षा लेने तथा कुछ आसनों में दक्षता प्राप्त करने से उसका विश्वास और भी दृढ़ हो चला कि वह इस आश्रम का नेतृत्व कर सकता है। एक दिन साध्ु महराज तथा नकट्टा भिक्षाटन के लिए वह पहाड़ी मार्ग से गांव की ओर जा रहे थे। नकट्टा को यही मौका सबसे उपयुक्त लगा उसने साधु महाराज को पीछे से पहाड़ी के नीचे धक्का दे दिया। पहाड़ी से गिरने के कारण साधु महाराज की मौत हो गयी। वह जोर-जोर से प्रलाप करने लगा कि अचानक मेरे गुरू पहाड़ी से नीचे गिर गये हैं तथा उनकी मौत हो गयी। उसके करूण क्रंदन सुनकर पास के गांव के लोग भी जमा हो गये उन्होंने उसे ढ़ाढ्स बंधाया तथा साधु महाराज का अन्तिम संस्कार भी किया। इस प्रकार नकट्टा आश्रम का स्वामी बन बैठा। उसे मन चाही मुराद मिल गयी। वह साधु महाराज द्वारा सिखाये गए आसनों का भी नियमित अभ्यास करने लगा। थोड़े ही समय में उसने पारंगत हासिल कर ली। अब वह गांव-गांव घूमने लगा तथा यह संदेश देने लगा कि उसे भगवान की प्राप्ति हो चुकी है। वह किसी को भी ईश्वर के साक्षात् दर्शन करा सकता है। उसकी बात पर विश्वास कर कुछ उत्साही लोग उसके साथ आश्रम आ गये। आश्रम आये हुए सभी उत्साही जनों से उसने कहा कि यदि आप लोग ईश्वर के दर्शन चाहते हैं तो आपको मेरी देख-रेख में ईश्वर प्राप्ति के लिए अभ्यास करना होगा। नकट्टे की बात को सत्य मानकर कुछ लोग उसकी आज्ञा के पालन करने लगे यह अपने हित के सारे कार्य इन्हीं लोगों से करवाता था। नकट्टा मन ही मन बड़ा खुश था उसे मांगी मुराद मिल गयी थी। उधर कुछ लोग ईश्वर प्राप्ति की चाह में उसके लिए दिन-रात एक किए हुए थे। वह जो निर्देश देता लोग उसे ईश्वर का आदेश मान कर पालन करते थे। धीरे-धीरे समय बीतता जा रहा था तथा नकट्टे के साथ आये लोगों को चिन्ता भी बढ़ रही थी कि उन्हें अभी तक ईश्वर की प्राप्ति नहीं हो पायी है। एक दिन उन्होंने यह चिन्ता नकट्टे के सम्मुख प्रकट की तो उसने बताया कि अभी साधना पूर्ण नहीं हुई है। साधना पूर्ण होने पर ही ईश्वर की प्राप्ति हो सकती है। लोगों को अपनी साधना में ही कुछ कमी नजर आ रही थी इसलिए वे चुपचाप आश्रम में समय व्यतीत करने लगे। कुछ समय बीतने के पश्चात पिफर लोगों ने नकट्टे से वही प्रश्न किया कि, महाराज ईश्वर के दर्शन नहीं हो पा रहे हैं। उसने उपाय बताया कि यदि वास्तव में तुम लोग ईश्वर के दर्शन करना चाहते हो तो मेरी तरह तुम सब भी अपनी अपनी नाक काट दो तथा प्रभु को अर्पण कर दो तभी ईश्वर के दर्शन हो सकते हैं। मैंने भी ऐसा ही किया था। तभी मुझे ईश्वर के दर्शन हो पाये थे। तुम सब भी ऐसा ही करो यदि ईश्वर के साक्षात् दर्शन चहाते हो तो, अन्यथा अन्य कोई मार्ग नहीं है। उसकी बात पर विश्वास मानते हुए सभी आश्रमवासियों ने अपनी नाक काट दी तथा प्रभु के चरणों में अर्पित कर दिए परन्तु यह क्या? प्रभु के साक्षात दर्शन तो अभी भी नहीं हुए। उन्होंने नकट्टे साधु से कहा कि साधु महाराज ईश्वर के दर्शन तो अभी भी नहीं हुए। नकट्टे ने उन्हें ढ़ाढ्स बंधाते हुए कहा कि चिन्ता न करो कुछ दिन बाद ईश्वर ने चाहा तो अवश्य दर्शन होंगे। कुछ दिन बीत जाने पर भी ईश्वर के दर्शन नहीं हुए तो वे पिफर बोले नकट्टे साधु महाराज अभी भी ईश्वर के दर्शन नहीं हुए क्या करे? उस नकट्टे साधु ने कहा कि जब नाक कट ही गयी तो जाकर लोगों को यह संदेश दो कि उन्हें साक्षात् ईश्वर के दर्शन हो चुके हैं तथा अब अपना कुनबा बढ़ाओ। यही मार्ग है। इसक सिवाय और कोई उपाय नहीं है। मैंने भी अपना कुनबा बढ़ाने के लिए ऐसा ही किया था। अब तुम भी ऐसा ही करो। इसमें हम सब की भलाई है। तब से यह कुनबा अखिल भारतवर्ष का भ्रमण कर अपना कुनबा बढ़ा रहा है। भारत भूमि में अब इनके अनुयायियों की कमी नहीं है। जो नित नये-नये अवतारों में पैदा होकर अपवाह पफैलाने में माहिर है। जब व्यक्ति शर्म को भरे बाजार में नीलाम कर बेशर्मी की हद को पार करते हुए अवसरवादिता का चोला ओढ़ लेता है तो वह नकट्टा हो जाता है। वास्तव में ऐसा व्यक्ति ही राजनीति में दक्षता हासिल कर लेता है। क्यों कि जो समय की गति को पढ़ना जानता है तथा समय अनुसार पलटी मार सकता है। वही एक कुशल राजनीतिज्ञ कहलाता है। राजनीति में यदि पव्वा हासिल करना है तो नकट्टे बन जाये। पिफर देखें पव्वा किस कमाल के साथ बरसता है। यह सब पव्वा दर्शन का कमाल है। नकट्टा बन जाने पर ही अब सत्ता का शीर्ष हासिल हो सकता है। यही सत्ता का पहुंच मार्ग कहलाता है।
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