क्रौंच पर्वत : जहां विराजमान है भगवान कार्तिकेय - TOURIST SANDESH

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मंगलवार, 3 दिसंबर 2019

क्रौंच पर्वत : जहां विराजमान है भगवान कार्तिकेय

क्रौंच पर्वत : जहां विराजमान है भगवान कार्तिकेय

कमल बिष्ट

कैसे पहुँचें -

दिल्ली से कोटद्वार बस द्वारा   - 217 किमी0

दिल्ली से ऋषिकेश बस द्वारा   - 224 किमी0

ऋषिकेश से श्रीनगर बस द्वारा   - 104 किमी0

कोटद्वार से पौड़ी बस द्वारा    - 106 किमी0

पौड़ी से श्रीनगर बस द्वारा     -  30 किमी0

श्रीनगर से रुद्रप्रयाग बस द्वारा  - 32 किमी0

रुद्रप्रयाग से कनकचौरी बस व टैक्सी द्वारा -40 किमी0

 

उत्तराखंड अपने प्राकृतिक सौंदर्य के साथ धार्मिक पर्यटन की दृष्टि से भी अत्यन्ंत महत्वपूर्ण रहा है। जहां पग-पग पर मंदिर मठ व शिवालय देखने को मिलते है। जो अपने आप में एक ऐतिहासिक विरासत को संजोए हुए हैं। उत्तराखंड के जनपद रुद्रप्रयाग के तल्ला नागपुर पट्टी के कनकचौरी बाजार से लगभग 3 किलोमीटर की दूरी पर क्रौंच पर्वत पर स्थित है भगवान शिव के बड़े पुत्र कार्तिकेय का मंदिर जो कि उत्तर भारत का एक मात्र कार्तिकेय मंदिर है। पौराणिक किवदंतियां के अनुसार महाभारत और मेघदूत पुराण में क्रौंच पर्वत का उल्लेख मिलता है।  बैकुंठ चतुरदशी के दिन यहां पर भगवान शिवांकर के पूरे परिवार के दर्शन होते हैं। मान्यता हैं कि एक बार मां पार्वती और शिवशंकर ने अपने दोनो पुत्रों की श्रेष्ठता की दृष्टि से उनकी परीक्षा ली और कहा कि जो जितनी जल्दी ब्रहमांड के चक्कर काटकर सर्वप्रथम जो वापस हमारे पास आयेगा। वह ही श्रेष्ठ होगा। भगवान कार्तिकेय अपनी सवारी मोर पर सवार होकर ब्रहमांड के चक्कर लगाने चले जाते हैं। जब कि भगवान गणेश अपने माता-पिता की ही परिक्रमा करके पहले ही मौजूद रहते हैं और जब भगवान कार्तिकेय वहां पहॅुंचते है। तो गणेश को पहले पाकर क्रोधवस क्रौंच पर्वत पर अपना शरीर त्याग देते है। उसके बाद दुखी शिव-पार्वती भगवान कार्तिकेय की अस्थियों को एकत्रित कर क्रौंच पर्वत पर स्थापित कर देते है। तब से भगवान कार्तिकेय इस स्थान पर शिला रुप में स्थापित हैं। क्रौंच पर्वत के तलहटी में जल का एक प्राचीन स्रोत है। जिसके जल को पर्वत के शिखर पर वने मंदिर में गाजे बाजों के साथ लाया जाता है और उस जल से भगवान कार्तिकेय को स्नान करवाया जाता है। इस जल को मंदिर तक ले जाने के लिये मंदिर के मुख्य पुजारी से लेकर श्रद्धालु नंगे पांव यात्रा करते हैं। इसे जल यात्रा कहा जाता है। प्रत्येक वर्ष जून माह में जलयात्रा का आयोजन होता है तथा भव्य मेले का आयोजन किया जाता है जिसमें सभी गांवों की जनता अपने ईष्टदेव की पूजा के सामिल होता है वेदपाठी यज्ञ के दौरान वेदों का बखान अपने मुखाग्र से करते हैं। यह भव्य मेला देखने योग्य होता है। इस पर्व पर भक्तजनों व साहित्य प्रेमियों व जनता का कोतूहल का विषय बना रहता है। यह पल अस्विस्मरणीय होता है। उत्तर भारत में क्रौंच पर्वत पर देवताओं के सेनापति भगवान कार्तिकेय का यह एक मात्र भव्य मंदिर है। जो कि दुर्गम पहाड़़ी पर स्थित हैं, प्राकृतिक सौन्दर्य से औत-प्रोत यह मंदिर लोगों की आस्था का केन्द्र बिन्दु हैं। जहां प्रत्येक वर्ष जून माह में भगवान कार्तिकेय को स्नान करवाने के लिये जल-यात्रा निकाली जाती हैं और उसके बाद भगवान कार्तिकेय की केदारनाथ यात्रा शुरु हो जाती है तथा मंदिर स्थल पर तीन दिन महायज्ञ किया जाता है। क्रौंच पर्वत पर बना भगवान कार्तिकेय का मंदिर आस्था के साथ-साथ साहसिक पर्यटन की दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। यहॉं से हिमालय की सुंदर श्रृंखलाओं से हिमालय का मनमोहरम दृश्यां का भी भरपूर आंनद लिया जा सकता है। मंदिर से चौखम्बा, नन्दा पर्वत त्रिसूल कांठा, हरियाली कांठा, पौड़ी, लैंसडसउन आदि हिमालय श्रृंखलाओं के दर्शन आसानी से हो जाते हैं।
 (लेखक साप्ताहिक वन पर्यावरण के सम्पादक हैं)

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