मेरी कलम से, मेरी ज़ुबानी..............................
हर इंसान की दो पहचानें होती हैं, पहली पहचान इंसान को जन्म से ही विरासत में, घर बैठे मुफ्त में ही मिल जाती है, जैसे कि धार्मिक पहचान। इंसान जिस धर्म के अनुयायी माता-पिता के घर में जन्म लेता है, जीवन पर्यंत उसी धर्म में रहता है। (कुछ अपवादों को छोड़कर), इसी पहली पहचान के अन्तर्गत दूसरा कारक क्षेत्रीय पहचान जैसे भारतीय, अमेरिकी, अरबी, चीनी, फारसी, अफ्रीकन इत्यादि। इसी पहचान के अन्य कारकों में आर्थिक पहचान, जैसे अमीर माता-पिता की संतान स्वाभाविक अमीर और गरीब अभावग्रस्त माता-पिता की संतान गरीब और अभावग्रस्त इत्यादि। कुल मिलाकर इस प्रकार की किसी भी पहचान पर व्यक्ति का कोई नियंत्रण नहीं होता, लेकिन यही विरासती पहचान व्यक्ति के व्यक्तित्व पर, उसकी आदतों पर पूरे जीवन हावी रहती हैं, क्योंकि वह इन्हीं के बीच पला-बढ़ा होता है। हांलाकि इसमें भी कोई हर्ज़ नहीं है, यह स्वाभाविक और प्राकृतिक बात है। इस विरासत की पहचान के बाद दूसरा नम्बर आता है इंसान की निजी पहचान का। जन्म के बाद इंसान में जब सोचने समझने की शक्ति का विकास होता है, जब इंसान का जीवन के प्रति एक नज़रिया कायम होता है, तब वह इंसान अपनी पसन्द से, अपनी शिक्षा से, अपनी मेहनत से, अपनी लगन से, अपनी तपस्या से एक नई पहचान को विकसित करता है, जैसे कि कोई डॉक्टर बन जाता है, कोई इंजीनियर , कोई अध्यापक, कोई कलाकार, कारीगर, वैज्ञानिक, व्यवसायी, नेता, खिलाड़ी इत्यादि बन जाता है। कुछ अपनी इस नई पहचान से दुनिया को एक नया सिद्धांत देते हैं, कोई खोज करके, जिससे दुनिया हमेशा उस व्यक्ति की
अभारी रहती है। यही पहचान व्यक्ति के लिए सबसे ज्यादा सुखदायक और सम्मानीय होती हैं, अत्यन्त प्रिय होती है। हो भी क्यों ना, ये पहचान व्यक्ति की स्वयं की मेहनत से जो बनाई होती है। नेल्सन मंडेला, अब्राहम लिंकन, थॉमस एल्वा एडीसन, न्यूटन, महात्मा गांधी, उसेन बोल्ट, सचिन तेन्दुलकर, नील आर्मस्ट्रोंग, अमिताभ बच्चन, विलियम शेक्सपियर, मुंशी प्रेमचन्द, स्वामी विवेकानन्द, मदर टेरेसा, माईकल जैक्सन,लता मंगेशकर आदि हस्तियां अपने-अपने क्षेत्र की जानी-मानी हस्तियां हैं। जो आज भी युवा पीढ़ी के लिए, देश दुनिया के लिए एक आर्दश हैं, इनके आदर्शां पर दुनिया चलती है, इनकी खोजों की दुनिया एहसानमंद है इनकी कला की दीवानी है। ये लाखों करोड़ों लोगों के लिए आदर्श हैं। इन हस्तियों ने अपनी ये पहचान अपनी मेहनत से बनाई। क्या कभी इन लोगों से इनकी पहली विरासती पहचान पर लोगों ने सवाल किया या रूचि ली ? इनका धर्म, क्षेत्रियता आदि के बारे में कभी किसी ने पूछा ? जवाब है नहीं।
दुनिया को इनकी विरासत में मिली पहचान से कोई लेना-देना नहीं है। बल्कि इनकी प्रतिभा हर प्रकार का बंधन पार करके पूरे विश्व में महकती है। पूरा विश्व इनकों मान-सम्मान देता है, पूरे विश्व में ये लोग जाने जाते हैं और लोगों को प्रेरित करते हैं। अब आते हैं दूसरे पहलू की तरफ, दुनिया ने आज तक जितनी भी हिंसा या मारकाट देखी है, वो विरासत में मिली पहचान की वजह से ही देखी है। उस विरासत की पहचान के कारण जो पूरी तरह से ईश्वर पर निर्भर है, जिस पर हमारा कोई जोर नहीं है। धार्मिक या आर्थिक या क्षेत्रीय पहचान के कारण। जब कभी भी ये धार्मिक या क्षेत्रीय या भाषायी पहचान किसी के लिए शर्म का या गर्व का विषय बनी है तभी इस पहचान पर कथित संकट खड़ा हुआ है। जैसे अमुक धर्म के लोग अपने आपको सर्वश्रेष्ट समझकर दूसरों को हीन समझकर विवाद पैदा करेंगे। और विश्व इतिहास उठाकर देख लें, दुनिया में कितने युद्ध, महायुद्ध इन्हीं पहचानों के कारण हुए हैं। कभी किसी लेखक के कारण, किसी वैज्ञानिक के कारण, डॉक्टर, इंजीनियर, कलाकार, खिलाड़ी के कारण अपनी कला को सर्वश्रेष्ठ मानकर, दूसरों को हीन मानकर विश्व शान्ति को भंग किया गया। कभी नहीं। कुल मिलाकर सारा विवाद विरासत में मिली पहचान का ही है।
अब ये तो हमारे हाथों में है कि, हम किस प्रकार से अपनी पहचान का निर्माण करना चाहते हैं। कुछ ऐसा मार्ग चुनें, जिससे विश्व में, देश में, शान्ति हो और सभी मनुष्यों सहित पुरी पृथ्वी के प्राणी सुखी जीवन जिऐ, और मनुष्य ईश्वर की सर्वश्रेष्ठ कृति होने को सार्थक कर सके।
किसी एक व्यक्ति की धार्मिक पहचान या क्षेत्रीय पहचान ना तो किसी दूसरे व्यक्ति की क्षेत्रीय या धार्मिक पहचान से ज्यादा बड़ी और श्रेष्ठ है, और ना ही छोटी और तुच्छ है। बल्कि ईश्वर की इच्छानुसार जिस देश, समाज में और जिस धर्म में व्यक्ति पैदा हो जाए, बस उसी देश, समाज या धर्म के नियमों का पालन करते हुए व्यक्ति को अपने स्वंय के विकास पर ध्यान देना चाहिए और दूसरे की धार्मिक या क्षेत्रीय, सामाजिक पहचान का भी सम्मान करना चाहिए। ऐसे प्रयास करने चाहिए कि, आपके कर्मों से विश्व में, देश में भलाई और शान्ति का प्रकाश फैले।
दूसरों की पहचान का सम्मान करें, अपनी पहचान का निर्माण स्वयं करें
डॉ मुज़ाहिद हुसैन
अभारी रहती है। यही पहचान व्यक्ति के लिए सबसे ज्यादा सुखदायक और सम्मानीय होती हैं, अत्यन्त प्रिय होती है। हो भी क्यों ना, ये पहचान व्यक्ति की स्वयं की मेहनत से जो बनाई होती है। नेल्सन मंडेला, अब्राहम लिंकन, थॉमस एल्वा एडीसन, न्यूटन, महात्मा गांधी, उसेन बोल्ट, सचिन तेन्दुलकर, नील आर्मस्ट्रोंग, अमिताभ बच्चन, विलियम शेक्सपियर, मुंशी प्रेमचन्द, स्वामी विवेकानन्द, मदर टेरेसा, माईकल जैक्सन,लता मंगेशकर आदि हस्तियां अपने-अपने क्षेत्र की जानी-मानी हस्तियां हैं। जो आज भी युवा पीढ़ी के लिए, देश दुनिया के लिए एक आर्दश हैं, इनके आदर्शां पर दुनिया चलती है, इनकी खोजों की दुनिया एहसानमंद है इनकी कला की दीवानी है। ये लाखों करोड़ों लोगों के लिए आदर्श हैं। इन हस्तियों ने अपनी ये पहचान अपनी मेहनत से बनाई। क्या कभी इन लोगों से इनकी पहली विरासती पहचान पर लोगों ने सवाल किया या रूचि ली ? इनका धर्म, क्षेत्रियता आदि के बारे में कभी किसी ने पूछा ? जवाब है नहीं।
दुनिया को इनकी विरासत में मिली पहचान से कोई लेना-देना नहीं है। बल्कि इनकी प्रतिभा हर प्रकार का बंधन पार करके पूरे विश्व में महकती है। पूरा विश्व इनकों मान-सम्मान देता है, पूरे विश्व में ये लोग जाने जाते हैं और लोगों को प्रेरित करते हैं। अब आते हैं दूसरे पहलू की तरफ, दुनिया ने आज तक जितनी भी हिंसा या मारकाट देखी है, वो विरासत में मिली पहचान की वजह से ही देखी है। उस विरासत की पहचान के कारण जो पूरी तरह से ईश्वर पर निर्भर है, जिस पर हमारा कोई जोर नहीं है। धार्मिक या आर्थिक या क्षेत्रीय पहचान के कारण। जब कभी भी ये धार्मिक या क्षेत्रीय या भाषायी पहचान किसी के लिए शर्म का या गर्व का विषय बनी है तभी इस पहचान पर कथित संकट खड़ा हुआ है। जैसे अमुक धर्म के लोग अपने आपको सर्वश्रेष्ट समझकर दूसरों को हीन समझकर विवाद पैदा करेंगे। और विश्व इतिहास उठाकर देख लें, दुनिया में कितने युद्ध, महायुद्ध इन्हीं पहचानों के कारण हुए हैं। कभी किसी लेखक के कारण, किसी वैज्ञानिक के कारण, डॉक्टर, इंजीनियर, कलाकार, खिलाड़ी के कारण अपनी कला को सर्वश्रेष्ठ मानकर, दूसरों को हीन मानकर विश्व शान्ति को भंग किया गया। कभी नहीं। कुल मिलाकर सारा विवाद विरासत में मिली पहचान का ही है।
अब ये तो हमारे हाथों में है कि, हम किस प्रकार से अपनी पहचान का निर्माण करना चाहते हैं। कुछ ऐसा मार्ग चुनें, जिससे विश्व में, देश में, शान्ति हो और सभी मनुष्यों सहित पुरी पृथ्वी के प्राणी सुखी जीवन जिऐ, और मनुष्य ईश्वर की सर्वश्रेष्ठ कृति होने को सार्थक कर सके।
किसी एक व्यक्ति की धार्मिक पहचान या क्षेत्रीय पहचान ना तो किसी दूसरे व्यक्ति की क्षेत्रीय या धार्मिक पहचान से ज्यादा बड़ी और श्रेष्ठ है, और ना ही छोटी और तुच्छ है। बल्कि ईश्वर की इच्छानुसार जिस देश, समाज में और जिस धर्म में व्यक्ति पैदा हो जाए, बस उसी देश, समाज या धर्म के नियमों का पालन करते हुए व्यक्ति को अपने स्वंय के विकास पर ध्यान देना चाहिए और दूसरे की धार्मिक या क्षेत्रीय, सामाजिक पहचान का भी सम्मान करना चाहिए। ऐसे प्रयास करने चाहिए कि, आपके कर्मों से विश्व में, देश में भलाई और शान्ति का प्रकाश फैले।
I am a new writer try to write my thoughts. Please read my articles and give your pricious opinion.
जवाब देंहटाएंThanks.
Yours....
Dr. Muzahid Hussain.
A thousands mile journey starts with a single steps and it's ur first step towards ur journey. Nice to read, as it's a well elaborated mixtures of good thoughts. All the best dear
जवाब देंहटाएंThank you so much. Your blessings are priceless. Insha Allah I will make you proud one day.
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