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बुधवार, 19 सितंबर 2018

मनः शान्ति से स्वतः स्फुर्त होगी विश्व शान्ति
(शान्ति दिवस, 21 सितम्बर पर विशेष)
जीवन का वास्तविक लक्ष्य परमोन्नद प्राप्त करना है। मन की  शान्ति और जीवन में आन्नदायक खुशियों को प्राप्त होने से ही जीवन के वास्तविक लक्ष्य हासिल होते हैं।मानव मन जितना शान्त होगा वह उतना ही आन्नदायक खुशियों से भर जाता है। आन्नदायक खुशियों को हासिल करने के लिए आज मानव निरन्तर कर्मशील है परन्तु वह भौतिक वस्तुओं को जुटाने में इतना अधिक डूब गया है कि, उसे पता ही नहीं चलता की जीवन में कब आन्नदायक क्षण आये।आज मानव की कल्पनाऐं, प्रयास तथा कर्मशीलता केवल भौतिक वस्तुओं के जुटाने में लगी हुई हैं। आज की बढ़ती भौतिकवादी सोच में हम इतना खो चुके हैं कि, हम स्वयं कितना हिंसक हो चुके हैं कि इससे हम स्वयं ही अंजान हैं। भौतिकवादी सोच हावी होने के कारण हम आज एक हिसंक समय में जी रहें है। जहाँ मानवीय गुण दया, करूणा एवं पारस्परिक प्रेम मात्र दिखावा रह गये हैं। वास्तव में वर्तमान समय में हमने आत्मीयता को खो दिया है। आज विश्व समाज में फैली तमाम  बुराइयों समाज में बढ़ती हिंसा, आतंकवाद तथा युद्ध की स्थितियों को दूर करने की आवश्यकता है। भारतीय दर्शन में आध्यात्म का महत्व रहा है। भारतीय चिंतन में सदा समता, समानता, दया, करूणा, पारस्परिक प्रेम और आत्मीय ज्ञान से परिपूर्णत्तम मानव समाज पर जोर दिया गया है। एक ऐसा समाज जहां हिंसा का कोई स्थान नहीं है। विश्व में स्थायी शान्ति की स्थापना के लिए भारतीय दर्शन के वसुधैव कुटुम्बकम् की अवधारणा से आत्मसात् करते हुए एक  आदर्श  मानव समाज के स्थापना के लिए जोरदार प्रयासों की आवश्यकता है। एक ऐसा विश्व समाज जहां विविधताओं में एकात्मकता का समभाव हो। हम एक-दूसरे का सम्मान कर सकें। भाषा, संस्कृति रीति-रिवाज और परम्पराओं का सम्मान करते हुए एक दूसरे की आत्मीयता को महसूस कर सकें। एक ऐसा विश्व समाज जहाँ मानव की ऊर्जा के हिंसात्मक स्वरूप को सकारात्मक, सृजनात्मक, अहिंसा और शान्ति में रूपांतरित करने के क्षमता रखता हो।
भौतिक वस्तुओं की बढ़ती चाह ने आज के मानव को मानसिक एवं शारीरिक रूप से थका दिया है। मानव की बढ़ती चिंता, मन की बेचैनी और अशान्ति का कारण है। मानव मन की यही बेचैनी और अशान्ति जब सीमाओं को तोड़ती हुई बढ़ती है तो वह हिंसात्मक स्वरूप में बदल जाती है। वास्तव में दुनिया में बढ़ता आतंकवाद तथा युद्ध जैसी स्थिति मानव मन की बढ़ती अशान्ति और बेचैनी ही है जो मानव समाज को हिंसा के लिए प्रेरित कर रही है। भारतीय योग शास्त्र चित्त की इन्हीं वृत्तियों पर निरोध का ज्ञान मानव को देती है। यदि विश्व का मानव दैनिक जीवन में योग से आत्मसात् करता है तो ना सिर्फ मानवीय गुणों का विकास होगा बल्कि विश्व में स्थायी शान्ति स्थापित होगी। अंतरराष्ट्रीय शान्ति दिवस के आलोक में विश्व मानव को योग के महत्व को समझना होगा। यदि मानव मन की नकारात्मक ऊर्जा को सकारात्मकता ऊर्जा में  रूपांतरित कर दिया जाए तो विश्व में अहिंसा और शान्ति सम्भव है।
आज जबकि हम फिर विश्वयुद्ध के मुहाने पर खड़े हैं तथा दैनिक जीवन में बढ़ती हिंसात्मक प्रवृत्ति मानव मन को बेचैन किये हुए है तो भारतीय दर्शन विश्व मानव के लिए शान्ति की राह दिखा रहा है। शान्ति और मैत्री से परिपूर्ण भारतीय दर्शन के शान्ति संदेश को पुनः सम्पूर्ण विश्व में प्रचारित एवं प्रसारित करने की आवश्यकता है। ताकि मनः शान्ति से स्वतः ही विश्व शान्ति स्फुर्त हो सके।
ऊँ द्यौः शान्तिरन्तरिक्ष शान्तिः पृथिवी शान्तिरापः शान्तिरोषधयः शान्तिः।
वनस्पतयः  शान्तिर्विश्वेदेवाः शान्तिर्ब्रह्य शान्तिः सर्व शान्तिः शान्तिरेव शान्तिः सा मा शान्तिरेधि।।यजुर्वेद।। 36।।17।।
(स्वर्गलोक, अंतरिक्षलोक तथा पृथिवी लोक हमें शान्ति प्रदान करें। जल शान्ति प्रदायक हो, औषधियां तथा वनस्पतियां शान्ति प्रदान करने वाली हों। सभी देवगण हमें शान्ति प्रदान करें। सर्वव्यापी परमात्मा सम्पूर्ण जगत् में शान्ति स्थापित करें। शान्ति भी हमें परमशान्ति प्रदान करे।)



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