जैव विविधता को लगता ग्रहण - TOURIST SANDESH

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शनिवार, 1 सितंबर 2018

जैव विविधता को लगता ग्रहण

जैव विविधता को लगता ग्रहण

          उत्तराखण्ड में वन विभाग की सुस्ती ने यहां की स्थानीय जैव विविधता को खतरे में डाल दिया है। जैव विविधता के लिए मशहूर 71 फीसद वन भूभाग वाले उत्तराखण्ड में इनवेसिव अर्थात बाह्य आक्रामक प्रजातियां (घुसपैटिया प्रजातियां) की निरंतर बढ़ती तादाद ने ना सिर्फ यहां की जैव विविधता को ग्रहण लगा दिया है बल्कि इन  अनुपयोगी वनस्पतियों ने यहां की परिस्थितिकी के लिए भी बड़ा संकट खड़ा कर दिया है। अनुपयोगी बाह्य आक्रामक प्रजातियां इस कदर वनीय क्षेत्र में निरन्तर प्रसार कर रही हैं कि स्थानीय प्रजातीयों को खतरा  उत्पन्न हो गया यदि यही हाल रहा तो वह दिन दूर नहीं जब स्थानीय प्रजातियां सीमित क्षेत्रफल पर सिमट कर रह जायेंगी। प्रदेशभर के जंगलों में लैंटाना, कालाबांसा, गाजरघास आदि जैसी इनवेसिव वनस्पतियों ने मुसीबतें बढाई हुई हैं। यह आक्रामक प्रजातियां प्रदेश के मैदानी क्षेत्रों से लेकर पांच हजार फीट की ऊंचाई तक जड़े  जमा चुकी हैं। गांव के घरों की देहरी से लेकर खेत-खलिहानों और जंगलों तक निरन्तर इसका प्रसार देखा जा सकता है। पहाड़ी क्षेत्रों में लैंटाना का फैलाव निरन्तर दानवी रूप लेता जा रहा है। यह एक ऐसी झाड़ी है जिसमें वर्ष भर फूल व फल लगते हैं। लैंटाना का सबसे बड़ा दुर्गुण यह है कि यह अपने आस-पास अन्य वनस्पतियों को नहीं पनपने देता है। इस कारण यहां की स्थानीय जैव विविधता धीरे धीरे समाप्त हो रही है। उत्तराखण्ड का सबसे बड़ा महकमा वन विभाग इस ओर बेखबर है दरअसल स्थानीय जैव विविधता को बचाने के लिए वन विभाग के पास अभी तक कोई ठोस कार्य योजना नहीं है इसी कारण लैंटाना जैसी घुसपैठियां प्रजातियों ने उत्तराखण्ड के वनों में बडे़ क्षेत्र में अपनी घुसपैठ कर चुके है । कार्बेट जैसे संरक्षित वनक्षेत्र में 50 प्रतिशत तथा राजाजी में करीब 60 प्रतिशत हिस्से पर इनवेसिव का कब्जा हो चुका है। इसके निरन्तर फैलाव से घास के मैदान सिमट रहे हैं बाघों के आशियाने  तथा शिकार स्थल भी प्रभावित हुए हैं। प्रदेश की जैव विविधता को ग्रहण लग चुका है परन्तु अफसोस तो तब होता है जब इतना सब कुछ होने के बाद भी वन विभाग मौन साधे है। कार्बेट फांउडेशन का शासी निकाय भी इस बावत् चेतावनी जारी कर चुका है कि यदि लैंटाना की समस्या से पार नहीं पाया गया तो कार्बेट पार्क में बाघों का संरक्षण असम्भव हो जायेगा। लैंटाना उन्मूलन के लिए विभाग को ठोस कार्य योजना के साथ धरातल पर क्रियान्वयन  करना होगा। भले ही कुछ सस्थाओं ने लैंटाना की टहनियों से फर्नीचर पत्तियों से ऑयल के उपयोग के लिए कुछ प्रयोग जरूर किये थे परन्तु  इस प्रकार के कृत्य सिर्फ प्रयोग तक सिमट कर रह गये हैं। यह भी आश्चर्य है कि वन विभाग के वर्किंगप्लान (कार्य योजना ) में लैंटाना उन्मूलन शामिल है परन्तु हमेशा की तरह बजट के अभाव में यह मुहिम परवान नहीं चढ़ पा रही है। वन विभाग की सुस्ती तथा निक्कमेपन के कारण घुसपैठिऐ प्रजातियों को ना सिर्फ फैलाव हुआ है बल्कि स्थानीय जैव विविधता भी खतरे में पड़ गयी है। घुसपैठया प्रजातियां उत्तराखण्ड के पर्यावरण के लिए एक बडी आफत के रूप में सामने  आई हैं। यदि इन घुसपैठियां प्रजातियों के उन्मूलन के लिए शीघ्र कदम नहीं उठाए गये तो वह दिन दूर नहीं जब स्थानीय प्रजातियां विलुप्त हो जायेंगी तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए। पर्यावरण संरक्षण, स्थानीय जैव विविधता के संरक्षण के लिए सरकार को ठोस कार्ययोजना बना कर धरातल पर उतारने के लिए विशेष प्रयत्न करना चाहिए ताकि  स्थानीय जैव विविधता के लिए बढ़ते खतरे लैंटाना सहित सभी प्रकार की बाह्य प्रजातियों का उन्मूलन सुनिश्चित किया जा सके।
-सुभाष चन्द्र नौटियाल

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