जौनसार भाबर : जहां मनाया जाता है नेठाउण पर्व - TOURIST SANDESH

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रविवार, 16 जुलाई 2023

जौनसार भाबर : जहां मनाया जाता है नेठाउण पर्व

 अन्तर्राष्ट्रीय मोटा अनाज वर्ष - 2023

जौनसार भाबर : जहां मनाया जाता है नेठाउण पर्व

 सुभाष चन्द्र नौटियाल

कोदे की बुआई तथा निराई-गुड़ाई से सम्बन्धित है पर्व

 नेठाउण पर्व को राष्ट्रीय कोदा दिवस घोषित करने की मांग


देहरादून। अपनी अप्रतिम प्राकृतिक सौन्दर्यता की छटा से सबका सहज ही मनमोह लेने वाला जौनसार भाबर महान सांस्कृतिक विरासत को भी स्वयं में समेटे हुए है। प्राकृतिक रूप से यह क्षेत्र जितना सुन्दर है, उतनी ही समृद्ध यहां की सांस्कृतिक विरासत भी है। इस क्षेत्र की प्राकृतिक सुन्दरता तथा महान सांस्कृतिक विरासत के शानदार संगम ने इस क्षेत्र को श्रेष्ठता प्रदान की है। वर्षभर में यहां मौसम के अनुसार विभिन्न प्रकार के व्रत, उत्सव, पर्व, त्यौहार मनाये जाते हैं। मौसम की अनुकूलता लिए इस जनजातिया क्षेत्र में मनाये जाने वाले व्रत, पर्व, त्यौहार, उत्सव अपनी अलग ही विशिष्ठता लिए हुए हैं। जैसा की विदित ही है कि, सम्पूर्ण विश्व इस वर्ष को मोटे अनाज के वर्ष के रूप में मना रहा है। सम्पूर्ण हिमालयी क्षेत्रों में गुणवत्ता से परिपूर्ण, पौष्टिकता से भरपूर मोटे अनाजों का खूब प्रयोग होता रहा है। यही कारण रहा है कि, उत्तराखण्ड सहित सम्पूर्ण हिमालयी क्षेत्र में मोटे अनाजों का अच्छा उत्पादन होता था परन्तु विश्व के बदले हुए परिवेश, पलायन की मार तथा आधुनिक होने की चाहत ने हमारे रहन-सहन, खानपान में बदलाव किया है। जिसके कारण मोटे अनाज के उपयोग तथा उत्पादन में तेजी से गिरावट आयी है। गुणवत्ता से परिपूर्ण, पौष्टिकता से भरपूर निम्न तथा मध्यम आय वर्ग के लिए मोटे अनाज किसी वरदान से कम नहीं हैं। इसके उपयोग से शरीर की मिनरल्स, विटामिन्स आदि आवश्यकताओं को पूर्ण किया जा सकता है। मोटे अनाजो के महत्व को महसूस करते हुए, भारत ने संयुक्त राष्ट्र संघ में इसकी जोरदार पैरवी की तथा भारत की पहल पर ही वर्ष 2023 को मोटे अनाज वर्ष के रूप में मनाया जा रहा है। हिमालयी क्षेत्र में मोटे अनाजों के महत्व को सदियों पूर्व ही महसूस कर लिया गया था, यही कारण है कि, यहां की सांस्कृतिक विरासत में मोटे अनाज रच-बस गया है। मोटे अनाजों के प्रचलन तथा सांस्कृतिक विरासत को चिरस्थायी बनाने के लिए विभिन्न स्थानों पर विभिन्न प्रकार से मौसम के अनुकूल उत्सव तथा पर्व मनाने की परम्परा रही है। इसी परम्परा का निर्वहन करते हुए सावन माह की संक्रान्ति में जौनसार भाबर क्षेत्र में किसानों द्वारा एक विशेष पर्व का आयोजन किया जाता है। इस पर्व को इस क्षेत्र में कोदे की नेठाउण कहा जाता है। 

क्या होता है कोदो की  नेठाउण पर्व?

जौनसार भाबर क्षेत्र के किसानों का यह एक विशेष पर्व है, इसका सम्बन्ध कोदा (मडुवा या रागी) की फसल से है। यह पर्व कोदे की बुआई तथा निराई-गुड़ाई से जुड़ा हुआ है। कोदे की फसल एक ऐसी फसल है जिसके साथ अन्य मिश्रित फसल भी होती है, जिसे कि, बारहनाजा के नाम से जाना जाता है।

कहां मनाया है  नेठाउण पर्व?

देहरादून जनपद के जनजातिया क्षेत्र सम्पूर्ण जौनसार भाबर तथा आस-पास के क्षेत्रों में यह पर्व मनाया जाता है।

देश में एक अलग पहचान रखता है जौनसार भाबर क्षेत्र

नये संसद भवन में रखे मानचित्र में चमका कालसी स्थित अशोक शिलालेख जो इस जनजातीय क्षेत्र का महत्व बढ़ाता है, इसी प्रकार कोदा का नेठाउण पर्व राष्ट्रीय पटल पर आने से भारत के इस जनजातीय क्षेत्र का महत्व और बढ़ जायेगा। यह क्षेत्र वीरों की भूमि भी रही है। शहीद केसरी चंद ने मात्र 24 वर्ष की आयु में देश के लिये अपने प्राण न्यौछावर कर दिये थे तथा अमरत्व प्राप्त किया। उनकी याद में जौनसार के रामताल गार्डन में हर साल मेला लगता है।

क्यों मनाया है  नेठाउण पर्व?

पर्वतीय क्षेत्रों में खेती-बाड़ी का कार्य सामूहिक रूप से किये जाने का प्रचलन रहा है। सामूहिकता तथा सामूदायिकता ही इस क्षेत्र की पहचान रही है। समूह द्वारा उत्साह पूर्वक कार्य किये जाने के लिये इस प्रकार के पर्वों तथा उत्सवों का सामूहिक आयोजन की परम्परा रही है। यह पर्व श्रीअन्न के प्रति श्रमसाध्यता व सहकारिता का प्रतीक भी है।
जौनसार भाबर क्षेत्र के लोग खेती-बाड़ी के कार्यों में एक-दूसरे का सहयोग करके कोदो की गुड़ाई सामूहिक रूप से करते हैं, जिसे ‘कोदो की गोडावणी’ कहा जाता है। खेती-बाड़ी जैसे श्रमसाध्य कार्य में निरन्तर उत्साह बनाये रखने, थकान मिटाने तथा मनोरंजन के साथ-साथ हल्की-फुल्की मजाक और स्थानीय संस्कृति को जीवंत बनाये रखने, सांस्कृतिक विरासत को सहेजने के लिए इस प्रकार के पर्व तथा उत्सवों का आयोजन किया जाता है। इस प्रकार के पर्वों के आयोजन से कार्य में उत्साह तथा उंमग का संचार होता है तथा कार्य के दौरान शक्ति तथा स्फूर्ति बनी रहती है। वास्तव में पर्व मनाने की परम्परा एक प्रकार का मनोविज्ञान है जिसके प्रभाव से हमारे अन्दर निरन्तर कार्य करने की शक्ति का संचार होता है।

कब मनाया जाता है कोदो की  नेठाउण पर्व?

प्रत्येक सौर वर्ष में भादों मास की संक्रान्ति को कोदो की नेठाउण पर्व मनाया जाता है। इस वर्ष यह पर्व 17 अगस्त को मनाया जायेगा। वैसे यह पर्व सावन की संक्रान्ति (क्यारी नैठाउण) से शुरू होकर घी संक्रान्ति पर कोदे की गुड़ाई के समापन उत्सव के रूप में मनाया जाता है। 

कैसे मनाया जाता है कोदो की  नेठाउण पर्व?

जौनसार भाबर क्षेत्र में कुछ वर्षों पूर्व तक मंडुवे की खेती का बहुत प्रचलन रहा है। कुछ वर्षों पूर्व तक यहां पर मंडुवा यानि कोदे का बहुत अच्छा उत्पादन होता था परन्तु आज घटते रकबे के कारण उत्पादन में जबरदस्त गिरावट आयी है। कोदे की खेती श्रमसाध्य है। पर्व के दिन किसानों द्वारा कृषि यत्रं मयार-गोडनी पातोई को साफ करके रखा जाता है। पर्व के दिन पंचायती आंगन लोक गीतों से गुलजार रहते हैं। घरों में मौसम के अनुकूल विभिन्न प्रकार के पकवान तैयार किये जाते हैं तथा मिलबांट कर खाने की परम्परा रही है। कोदे की गोडावणे (निराई-गुड़ाई) के दौरान क्षेत्र में प्रचलित लोकगीतों के माध्यम से सामूहिक रूप से मनोरंजन किया जाता है। जैसे ‘‘ नेडो आवो कोदो को गोडावणों.....’’, ‘‘ चलो बाई कोदो गोड़दो जाणो.....’’ साथ ही जोगूं-बाजू भी लगाये जाते हैं। गुड़ाई के दौरान खेती-बाड़ी के कार्यों के साथ-साथ दुःख-सुःख बांटने का भी रिवाज रहा है। 

 नेठाउण पर्व को राष्ट्रीय कोदा दिवस घोषित करने की मांग

सेवानिवृत ज्वाइन्ट कमिश्नर शान्ति प्रसाद नौटियाल ने  नेठाउण पर्व को राष्ट्रीय कोदा दिवस घोषित करने की मांग की है। श्री नौटियाल का मानना है कि, इस पर्व को राष्ट्रीय कोदू दिवस घोषित होने पर इस जनजातीय क्षेत्र व देवभूमि उत्तराखण्ड को राष्ट्रीय व अन्तर्राष्ट्रीय मंच पर नए पहचान भी श्रीअन्न के परिप्रेक्ष्य में मिलेगा। मिलेट्स रिसर्च इंस्टीट्यूट हैदराबाद ने उत्तराखण्ड में उत्पादित मोटे अनाजों को सर्वश्रेष्ठ माना  गया है जिसमें कोदू उत्तराखंड की सर्वश्रेष्ठ उपज है।  श्री नौटियाल का कहना है कि, यदि अंतर्राष्ट्रीय मिलेट वर्ष 2023 में मध्य प्रदेश को देश की मिलेट राजधानी बनायेंगे तो देवभूमि उत्तराखण्ड के इस पर्व को राष्ट्रीय पर्व के रूप में मनाने के लिये सरकार को पहल करनी चाहिए। उन्होंने इस सम्बन्ध में उत्तराखण्ड सरकार तथा भारत सरकार को पत्र लिखकर कहा है कि, कोदे का उत्पादन बढ़ाने तथा क्षेत्र की सांस्कृतिक विरासत को राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाने के लिए  नेठाउण पर्व को राष्ट्रीय कोदा दिवस घोषित किया जाए। कालसी डिमऊ क्षेत्र के ज्येष्ठ ब्लाक प्रमुख भीम सिंह चौहान भी नेठाउण पर्व को पहचान दिलाने के लिए निरन्तर प्रयासरत हैं। इसी दिन हरेला त्यौहार भी मनाया जाता है, यह त्यौहार कभी कुमाऊं के कुछ क्षेत्रों तक सीमित था पर सरकार व जनमानस के प्रचार-प्रसार व महत्व को देखते हुये उत्तराखण्ड का त्यौहार बन गया है। वह दिन दूर नहीं है जब विश्व में इस उत्सव की अपनी पहचान होगी, ऐसी ही जिजीविषा कोदो की नेठाउण के लिये भी चाहिए।


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