दीवाली न बने दीवाला - TOURIST SANDESH

बुधवार, 26 अक्टूबर 2022

दीवाली न बने दीवाला

 दीवाली न बने दीवाला

-ंसुन्दर लाल जोशी


दीवाली अब न बने दीवाला, तुम को बस ध्यान इतना रहे।

द्युत-ंक्रीड़ा को हम छुएँ नहीं, त्योहार का मान इतना रहे।।


दीपों की अवलि दीपावली को भी अब मनाएँ हम शान से।

करें पूजा लक्ष्मी गणेश की, तन मन धन औ जी जान से।।

अब न फोड़ें पटाखे, अनार बम, न धोएँ हाथ हम कान से।


दीप धूप से करें मंगलाचरण,जलाएँ फुलझड़ी भी ध्यान से।।

अब तो भाई सुन्दर भी, तुम से इक बात सुन्दरतम कहे।


न फैला धुँवा धरा पे तब तक, जब तक जल गंगा में रहे।।

बोलो बजा-ंबजा के ताली, वेरी-ंवेरी हैप्पी दीवाली


-ंसुन्दर लाल जोशी

(गाँव-ंपदमपुर सुखरौ डाँगी की दुकान का एक दृश्य। जहाँ पर दीवाली की पहली रात को फुलझड़ी, पटाखे, अनार बम, कनस्तर बम, राकेट बम, फिरकी और हाथ फोड़ू पटाखे लगातार अपनी-ंअपनी तारीफ कर रहे हैं और एक-ंदूसरे से स्वयं को बड़ा दिखाने की नाकाम कोशिश कर रहे हैं। सुनिए, उनकी वार्तालाप का एक अंश......) कनस्तर बम-ंउचय सुनो-ंसुनो, ए छोटी-ंमोटी आवाज वाले पटाखो! जरा ध्यान से सुनो। मैं तुम सबसे

ज्यादा ताकतवर हूँ। मैं मनुष्यों, जानवरों, पशु-ंउचयपक्षियों के कानों तो क्या बड़ी, बड़ी इमारतों को भी हिलाने की ताकत रखता हूँ। अनार बम-ं छोड़ो भैया, कनस्तर बम जी। तुम तो सिर्फ तेज आवाज करके लोगों को बहरा ही कर सकते हो। मानता हूँ कि तुम्हारी तेज आवाज किसी वाहन चालक को एकाएक ब्रेक लगाने को मजबूर कर सकती है। तुम्हारी मेहरबानियों से वाहन का संतुलन खराब हो सकता है और कभी-ंकभी वाहन चालक सहित उसमें बैठी सवारियों को अस्पताल के भी दर्शन करने पड़ सकते हैं लेकिन मैं तो हवा में ही फूटकर रंग-ंउचयबिरंगी रोशनी भी कर सकता हूँ। ऐसी रोशनी तुम जीते जी तो क्या मरकर भी नहीं कर सकते (दोनों की तू-ंतू, मैं-ंमैं सुनकर राकेट बम भी आँखें खोलकर देखता है और कहता है...)

राकेट बम-ंउचय सुनो भैय्या। तुम दोनों तो बेकार ही लड़ रहे हो। तुम तो सिर्फ जमीन पर ही चल सकते हो लेकिन मैं तो आसमान में भी सर्र-ंउचयसर्र-ंउचयऽऽऽऽ की आवाज के साथ उड़ सकता हूँ। साथ ही जमीन से ऊपर हवा में भी तेज आवाज कर सकता हूँ। लड़ी पटाखे-ं मेरे झगडै़ल और गुस्सैल, तीनों भाइयो! तुम्हारे चलने-ंफिरने, मर-ंमिटने का फायदा ही क्या है? तुम तो एक बार चले और फिर किस्सा खतम। मुझे देखो ना। जब मैं एक बार चल-ंजल जाती हूँ तो तब तक रुकने का नाम नहीं लेती। जब तक मेरे किसी भी साथी में एक तिनका भी बारुद शेष हो। लोगों की खुशी के लिए मैं लगातार जलने-ंमरने का अपना फर्ज अदा करती हूँ। तुम्हारा सम्बन्ध तो सिर्फ दीवाली या पाकिस्तान के साथ मैच जीतने तक ही सीमित है लेकिन मेरा सम्बन्ध तो बड़े-ंउचयबड़े राज घरानों और राज नेताओं तक भी होता है। जब कोई जन प्रतिनिधि चुनाव जीतकर आता है तो वह मेरे हजारों भाई-ंबहनों को एक पंक्ति में रखकर लड़ीबद्ध करके जलाता और फोड़ता है। तब तुमने भी देख होगा मेरा करिश्मा। अब बताओ, बताओ, हम सब में बड़ा कौन है? फिरकी (कनस्तर बम, अनार बम, राकेट बम और लड़ी पटाखो से)-ंउचय मेरे चारों भाइयो! तुम सब ने इस दुनिया में बेकार की धाँय-ंउचयधाँय मचा रखी है। तुम्हारी इस धाँय-ंधाँय से छोटे-ंछोटे बच्चे डरते रहते हैं। बूझ़े-ंबुजुर्ग रात भर सो नहीं सकते। बीमार लोग और पझ़ाई करने वाले विद्यार्थी तुम्हारी धाँए-ंउचयधाँए से परेशान हो जाते हैं। श्वासजनित रोगों से पीड़ित बीमारों की हालत तो तुम्हारे धुएँ और तेज आवाज से और भी खराब हो जाती है। अगर तुम्हें दुनिया की खुशी में जलने-ंउचयमरने का ही शौक है तो तुम मेरी तरह जलो। मैं तो मरते-ंजलते हुए भी खूब खुश होकर नाचती हूँ। बड़े-ंबूढ़ों के साथ-ंसाथ बच्चों का भी खूब मनोरंजन करती हूँ। मुझसे न तो किसी के हाथ-ंपैर जलने, कान

फूटने या अत्यधिक प्रदूषण फैलने का खतरा है और न कोई बड़ा विस्फोट होने का खतरा है और न मेरे कारण से किसी बीमार आदमी की नींद खराब होती है। तुम्हीं बताओ, फुलझड़ी बहन! क्या मैं गलत बोल रही हूँ।

फुलझड़ी-ं नहीं-ंउचयनहीं, फिरकी बहन। आपकी बात सोलह आने सच है। आपके गलत बोलने का तो प्रश्न ही नहीं उठता। फिर भी आप बुरा न माने तो मैं भी एक बात कहूँ?

फिरकी-ं हाँ-ंहाँ क्यों नहीं? दीवाली की खुशी में तो सभी को शामिल होने का अधिकार है। तुम जो कुछ भी बोलना चाहती हो। निष्फिक्र होकर बोलो।

फुलझड़ी-ं ये बात सच है कि न तो मैं कनस्तर बम भइया की तरह किसी के कानों के पर्दे फोड़ सकती हूँ और न ही किसी के मकान की दीवारें ही हिला सकती हूँ। न अनार बम की तरह किसी वाहन चालक को एकाएक गाड़ी रोकने के लिए बाध्य कर सकती हूँ। न मैं लड़ी-ंपटाखों की

तरह लड़-ंजल-ंमर कर भी किसी नेता को जीत की बधाई दे सकती हूँ। आप सब लोगों के तो कहने ही क्या? मैं न तो फिरकी बहन की तरह घूम-ंघूमकर बच्चे-ंबूझ़ों, स्वस्थ और बीमार आदमियों का मनोरंजन ही कर सकती हूँ। अगर मैं कर सकती हूँ तो सिर्फ इतना कि अँधेरी रात में भी आसमान के सितारे तोड़कर तुम्हारे सामने ला सकती हूँ। मेरे इन ि-हजयलमिलाते सितारों से न तो किसी प्रकार के विस्फोट का खतरा होता है। न मैं किसी प्रकार का कान-ंफोड़ू शोर ही मचाती हूँ और न ही मेरे लिए लोगों को ज्यादा पैसे खर्च करने पड़ते हैं। मुझे तो जो चाहे, दीवाली की रात समेत जब चाहे, अँधेरी रात में मोमबत्ती या मिट्टी के दियों से भी आसानी से जला ले। फिर भी मेरी एक कमी है कि मैं लड़ी पटाखों या मोमबत्ती की तरह ज्यादा देर तक नहीं जल सकती।

(लड़ी-ंपटाखों के जलने की बात सुनकर प्लास्टिक के कट्टे में रखा एक हाथ फोड़ू बुझ़ा पटाखा कुलबुलाया और बोला)-ंहाथ फोड़ू पटाखा-ं हे कनस्तर बम, अनार राकेट बम सहित लड़ी-ंपटाखो और फुलझड़ी बिटिया! मानता हूँ कि तुम सब मुझसे ज्यादा ताकतवर, ज्यादा जवान, ज्यादा आवाज, ज्यादा रोशनी, ज्यादा ऊँचाई तक पहुँचने वाले और ज्यादा पैसों में खरीदे जाने वाले पटाखे हो। तुम्हारे बनाए जाने की तकनीक भी मुझसे काफी ऊँची है। फिर भी तुम्हारी अच्छाइयों से तुम में बुराइयाँ भी अधिक हैं। तुमसे निकलने वाला धुँआ प्राणियों के श्वास रोग को बढ़ाता है। तुम्हारी रंगीन छटा खतरनाक रसायनों से निर्मित होने के कारण असाध्य रोगों को जन्म देती है।वैसे तो वातावरण को नुकसान मेरे फटने से भी होता है लेकिन तुलनात्मक रूप से बहुत  कम। मुझे फोड़ने में हाथ-ंउचयपैर, आँख-ंउचयनाक, कान-ंउचयगला, घर-ंउचयमकान, दुकान, गाड़ी, गौशाला, कारखाना, गोदाम आदि के जलने की कोई संभावना नहीं रहती। मेरे अन्दर बहुत कम बारुद के साथ कंकरी भरी रहती है जिसके कारण से मैं सबसे सस्ता, सबसे सुरक्षित

और सबसे कम प्रदूषण फैलाता हूँ। मुझसे बचाव के लिए न तो दीवाली की रात को फायर बिग्रेड को अलग से आग बुझाने वाली गाड़ी बुलानी पड़ती है और न ही अस्पतालों में जल-ंकटे विभाग में डॉक्टर और नर्स की अलग से ड्यूटी लगानी पड़ती है। तुमने आज तक मुझ सहित मेरे किसी रिश्तेदार के कारण से किसी के अंग-ंभंग होने या चेहरा बेनूर होने की खबर नहीं सुनी होगी। हमें जलाने के लिए न माचिस की आवश्यकता पड़ती है, न चिमनी और न ही मिट्टी के दिए की।

(मिट्टी के दिए का नाम सुनते ही जलते हुए दिए ने फड़फड़ाकर सभी का अभिवादन करते हुए कहा)-ं मिट्टी का दिया-ं मैंने आप सब लोगों की बातें गौर से सुन ली हैं लेकिन एक बात मेरी समझ में नहीं आई कि क्या सिर्फ कानफोड़ू आवाज करके और रंग-ंउचयबिरंगी धुँआ निकालकर ही दीवाली मनायी जा सकती है? क्या सामान्य स्थिति में मेरी तरह धीरे-ंधीरे जलते हुए दीवाली नहीं मनाई जा सकती है? क्या इस तरह से दुनिया को खुशियाँ नहीं दी जा सकती हैं? क्या दुनिया में प्रकाश युक्त लौ जलाकर दुनिया को सुख-ंउचयशान्ति देना कोई अपराध है? यदि दीवाली के मायने सिर्फ शोर-ंउचयशराबा, धुँआ और प्रदूषण फैलाना ही है तो सबसे अच्छी दीवाली तो उनकी होगी। जो इस दिन परमाणु विस्फोट करेंगे। क्या यह संभव है? यदि नहीं तो क्यों न हम प्रदूषण मुक्त धरा और धरा पर मनाए जाने वाली प्रदूषण मुक्त दीवाली की कल्पना को साकार करें। जब हम मिट्टी में जन्मे, मिटटी में पले-ंबढे़ हैं तो फिर मेरी काया याने मिट्टी के दिए से परहेज क्यों?

(पार्श्व गायन होता है)


घर-ंघर में दीवाली कर दे

मंदिर मठ और गुरु द्वारे, लगते हैं मुझको प्यारे।

हिन्दू बौद्ध सिख, यहूदी, हैं भाई सारे के सारे।।

है दिल में अपनापन भरा, चाहत के हैं वारे न्यारे।

सच्चे कर दे तू वादे नारे, ले ले तू माँ के जयकारे।।

सत्कर्म सदा ही तू कर ले, वाणी गुरु की मन में भर ले।

मातुभूमि की तू सेवा कर ले, शारदे को नमन तू कर ले।।

होली औ दीवाली मिलन पे, दीवारें तू मजहब की -सजयह दे।

मिटा के अज्ञान का तम तू, घर-ंघर में दीवाली कर दे।।

सभी पटाखे (समवेत स्वर में) इस प्रकार का ज्ञान प्रकाश बाँटने के लिए आपका धन्यवाद, दिए जी।

क्यों न हम भी, अब ज्ञान का इक दीप जलाएँ।

स्वच्छ रखें इस धरा को, अज्ञान अन्धकार मिटाएँ।।

मिट्टी का दिया-ं बोलो बजा-ंबजा के ताली, वेरी-ंवेरी हैप्पी दीवाली।।

(हर्ष ध्वनि के साथ पर्दा गिरता है)

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