कर्तव्यपथ पर फिर हांके जायेंगें हम? - TOURIST SANDESH

बुधवार, 21 सितंबर 2022

कर्तव्यपथ पर फिर हांके जायेंगें हम?

 व्यंग्य

कर्तव्यपथ पर फिर हांके जायेंगें हम? 

सुभाष चन्द्र नौटियाल

जीवन में स्वांग और भांग का बड़ा महत्व होता है, स्वांग रचता रह और कुवें में भांग डलता जा फिर देख जीवन का आनन्द। पिछला भूल जा अगला याद रख, स्वांग और भांग को जीवन की वास्तविकताओं में समा जाने दे, राह में कोई भी आये लंगड़ी मार आगे बढ़ और बस आगे ही बढ़ता जा, पीछे मत देख तरक्की का यही मंत्र है। आमजन को हांकने का माद्दा रख, आमजन जितना हांफता रहेगा उतनी ही तेरी गाड़ी सरपट दौड़ती नजर आयेगी।


गांव के पधान काका की अंग्रेजों के जमाने की पधानचरी को गये हुए कई दशक बीत गये परन्तु पधानचरी का रौब- धौब उम्र के ढलान के साथ अभी भी शेष है। पधान काका भले ही बाहर से कड़क हों परन्तु मानवीयता के अनुगामी हैं। बेटा चैतु को आधुनिकता की परिभाषा बता रहे हैं -

रे चैतु ! सुना है राजपथ अब कर्तव्य पथ होगा। उससे क्या होता है पधान काका? ऐसा क्यों किया? क्या नाम बदल जाने से अब काम बदल जायेगा काका? मेरा रामू बैल हल लगाता है यदि मैं उसका नाम बदलकर श्यामू कर दूं तो वह ट्रैक्टर थोडे़ न बन जायेगा, रहेगा तो बैल का बैल ही काका। नाम नहीं काम बदलने की आश्यकता है काका? तभी भला हो सकता है। अरे चैतु! तू भी कितना भोला है आज भी गंवार का गंवार ही रह गया, लोग चोला बदल कर आधुनिक हो गये और तू अब भी लकीर का फकीर ही... अब तो आधुनिक हो जा चैतु समय बदल चुका है। राजपथ से कर्तव्यपथ पर आ जा नहीं तो गंवार, पिछड़ा, नालायक और न जाने क्या-क्या ही रह जायेगा बेटा? पिछड़ेपन की तोहमत से बचना है तो आधुनिकता का चोला ओढ़ ले बेटा। रंगबिरंगी दुनिया का आनन्द लेना है तो चोला बदल तभी कुछ विकास कर पायेगा। बीती बात बिसार दे आगे की सुध ले चैतु। उलझ मत, उलझा मत बस देखता जा आगे आगे होता है क्या? कौन, कब, कहाँ, क्यों, कैसे की जिद्द छोड़ और रंग बदलती दुनिया के आनन्द में सराबोर हो जा। जीवन में आनन्द के सरोवर में डुबकी लगा और निःसंकोच कर्तव्यपथ पर चल, राजपथ भूल जा। स्मार्ट बन, स्मार्टनेस दिखा।

एक ऐसा कर्तव्यपथ जिसमें येन-केन-प्रकारेण सिर्फ अपनी स्वार्थसिद्धि कर, सामने वाले को नीचा दिखाने में कोई कोर कसर न छोड़, स्वयं को बनाये रखने के लिए आडम्बर रच, भय दिखा, झूठी शान का स्वांग भर, छल-झूठ का प्रपंच रच, दिखावे की मानवीयता की चादर ओढ़ फिर भी बात न बने तो उलट-पुलट करने का माद्दा रख, हर प्रकार से केवल अपनी ही बात ऊपर रख, सामने वाले को ऐसे दिखा जैसे वह महामूर्ख हो। बस! फिर देख चैतु तू दिन दुगनी रात चौगुनी से तरक्की के पथ पर निरन्तर अग्रसर रहेगा। जीवन में स्वांग और भांग का बड़ा महत्व होता है, स्वांग रचता रह और कुवें में भांग डलता जा फिर देख जीवन का आनन्द। पिछला भूल जा अगला याद रख, स्वांग और भांग को जीवन की वास्तविकताओं में समा जाने दे, राह में कोई भी आये लंगड़ी मार आगे बढ़ और बस आगे ही बढ़ता जा, पीछे मत देख तरक्की का यही मंत्र है। आमजन को हांकने का माद्दा रख, आमजन जितना हांफता रहेगा उतनी ही तेरी गाड़ी सरपट दौड़ती नजर आयेगी। देखा ना कूनो में चीता आया तो गुलदार बायीं करवट सो गया। खूब धूम-धड़ाका हुआ, चाटुकारिता के खूब चटकारे हुए 74 साल के कसीदे पढ़े गये परन्तु, इन 74 सालों में भारत का भारतपन तथा मानवीय मूल्यों में कितना ह्मस हुआ इसका दूर से दूर तक कहीं जिक्र तक नहीं किया गया। हम तो बेटा अब ढलती शाम हैं कब रात हो जाए परन्तु तू संभलकर चल नहीं तो वक्त से पहले बुढा़ हो जायेगा।

कर्तव्य पथ पर चलते हुए अब संस्कारों से संस्कारित मानव को लगने लगा है कि, जीवन के मानवीय मूल्यों पर आधारित सहजता, सौम्यता, सरलता, सहृदयता, सचरित्रता, कर्तव्यनिष्ठा, नैतिकता, मानवीयता, ईमानदारी, कर्तव्यपरायणता, सत्यता, अहिंसा, कार्य प्रतिबद्धता, शान्तिपूर्ण सह-अस्तित्व, बंधुत्व, आपसी सम्मान की भावना जैसे आदि अनेक शब्द अब बीते जमाने की बात हो चुके हैं। इन बातों की गठरी अब महज स्मार्टनेस को दिखाने के लिए है। वास्तविकता से इनका कोई लेना-देना नहीं है। आधुनिकता ने मानवीय मूल्यों को अपना ग्रास बना लिया है। दाग अच्छे हैं की तर्ज पर मानव स्वयं, सब कुछ ताक पर रखकर चलती-फिरती धन कमाने मशीन मात्र बनकर रह गया है। इस व्यवस्था ने हमें अहंकार, घृणा, लोभ, लालच, भय उत्पन्न करना, नफ़रत फैलाना, आडम्बर, स्वांग रचाना ही बताया  है | अब यही कर्तव्य पथ है? सारी मानवता मात्र दिखावे में ही सिमट चुकी है? कर्तव्य पथ पर अब दाग ही अच्छे हैं? इस कर्तव्य पथ पर फिर हांके जायेंगे हम? 

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