हरित सोच विकसित करने से होगा पर्यावरण संरक्षण - TOURIST SANDESH

मंगलवार, 12 नवंबर 2019

हरित सोच विकसित करने से होगा पर्यावरण संरक्षण

 हरित सोच विकसित करने से होगा पर्यावरण संरक्षण

                                      - डॉ त्रिलोक चन्द्र सोनी

देवभूमि उत्तराखण्ड का अधिकतर भूभाग पर्वतीय हैं जो प्राकृतिक सम्पदा से परिपूर्ण हैं और अपने आप में अनेक नैसर्गिक खूबसूरती व सुन्दर पर्यटन स्थलों को लिये हुए है। ये पेड़ पौधें, पहाडिया़,घाटियां,बुग्याल व पर्यटन स्थल क्षेत्र के लोगों की आर्थिकी के स्रोत भी हैं इनकी सुन्दरता बनाएं रखना हम सब का दायित्व हैं आज मानव की भोगवादी प्रवृति के कारण लगातार इनका दोहन हो रहा हैं दोहन के साथ ही इनके संरक्षण के लिए भी उत्तराखण्ड ने कई पर्यावरण प्रेमियों को जन्म दिया हैं जिसमें जनपद चमोली का विशेष योगदान रहा हैं जनपद चमोली अपने गोद में प्रसिद्ध फूलो की घाटी व पर्यटन स्थल औली, बैदनी बुग्याल, औली बुग्याल, चोपता तथा प्रसिद्ध धाम बद्रीनाथ, कल्पेश्वरनाथ, तुंगनाथ, रूद्रनाथ, मधमेश्वरनाथ तथा नन्दादेवी व नीति माणा दर्रे लिए हुए हैं अपनी प्राकृतिक छटाओं के कारण उत्तराखण्ड देश-विदेश के पर्यटको को अपनी ओर आकृषित करती हैं। प्राकृतिक वनसंपदा बचाने में चमोली जनपद का विशेष योगदान रहा है। यहीं से विश्व प्रसिद्ध चिपको आन्दोलन की शुरूआत हुई, आज हम इसी जनपद के एक ऐसे पर्यावरणविद् की बात कर रहे हैं जिन्हें उत्तराखण्ड में ’’वृक्षमित्र’’ के नाम से जाना जाता हैं। डा.त्रिलोक चन्द्र सोनी, जो बाईस सालो से निरन्तर पर्यावरण संरक्षण, संवर्द्धन व वृहद पौधारोपण तथा पहाड़ के जल, जंगल, जमीन व जीवन बचाने एवं स्वच्छ भारत-ंस्वच्छ उत्तराखण्ड तथा पॉलीथीन प्रदूषण मुक्त वातावरण को बनाने के लिए रैलीयो,सभाओं, गोष्ठिओं के माध्यम से जन-जन को जागरूक व प्रेरित कर रहे हैं। उन्होंने इस जनजागरूकता अभियान का नाम ‘‘वृक्ष मित्र अभियान’’ रखा हैं
वृक्ष मित्र अभियान कोई संस्था नहीं हैं यह उनका व्यक्तिगत प्रयास हैं उत्तराखण्ड को फलपट्ठी बनाने के साथ हरित प्रदेश बनाने का संकल्प लिए पर्यावरणविद् वृक्षमित्र डा.त्रिलोक चन्द्र सोनी के साथ मासिक पत्रिका टूरिस्ट संदेश के सम्पादक सुभाष चन्द्र नौटियाल के साथ भेंटवार्ता के कुछ प्रमुख अंश।

प्रश्न- डा.सोनी आपकी पढ़़ाई कंहा से हुई तथा पौधारोपण की सीख कहा से मिली?
डॉ.सोनी-  मैं मूलतः जनपद चमोली के विकासखण्ड देवाल ग्राम पूर्णा (स्यूनिगाड) का रहने वाला हू मेरी कक्षा 1 से 12 की शिक्षा प्राथमिक व राइका देवाल से हुई है स्नातक राजकीय पीजी कालेज गोपेश्वर तथा एम.ए, बी.एड व पीएच.डी की पढ़़ाई श्रीनगर गढ़़वाल विश्वविद्यालय से हुई है। मैं गांव का रहने वाला हू गांव के परिवेश में पला-बढ़ा हूं। माता-पिता गरीब थे और पशुपालन का काम किया करते थे हम गांव के लोगो का कृषि कार्य पशुओं से किया जाता हैं, इसलिए बैलो को अवश्य पाला करते थे, पशुओं के लिए चारा नहीं होता था पशुओं के चारे के लिए मेरी माता स्व0 कुन्ती देवी जंगलो में भटकती रहती थी पिता स्व0मोहन राम समाजसेवी थे पिताजी पशुओं के चारा के लिए पौधों को लगाने के लिए लाया कारते थे।  मैं भी उनके साथ पौधारोपण के लिए जाया करता था उन्हीं से मुझे पौधें लगाने की प्रेरणा मिली।
प्रश्न- हर साल पौधारोपण होता हैं फिर भी पौधें नहीं हो पाते,आखिर क्या वजह हैं पौधें न होने की?
डॉ.सोनी- हां हर साल पौधारोपण किया जाता हैं वन महोत्सव, श्रीदेव सुमन दिवस,हरेला जैसे पर्वो पर पौधारोपण किया जाता हैं हम हर साल पौधारोपण के लक्ष्य को निर्धारित कर लेते हैं कि इस वर्ष हमने इतने पौधों को लगाना हैं। चाहे वे बचे या नही, हमने अपना लक्ष्य पूरा कर लिया हैं जबकि हमें ये लक्ष्य निर्धारित करना चाहिए कि साल में इतने पौधें हमने जीवित करके रखने हैं तभी रोपित पौधों का होना सम्भव होगा। हमें पौधारोपण को भावनाओं सें जोड़ने व उन्हें अपने संस्कारो में निहित करना होगा तभी रोपित पौधें बच पायेंगे। हमें हर साल पौधारोपण के बजाय पौधासंरक्षण पर ध्यान देने की आवश्यकता है। वास्तव में हरित सोच को संस्कारों में ढाल कर ही पर्यावरण संरक्षण सम्भव है।
प्रश्न-पौधों को भावनाओं व संस्कारो से जोड़ने के लिए आप किस प्रकार के मुहिम चला रहे हैं?
डॉ.सोनी- मेरा प्रयास हैं कि शुभकार्यो, नववर्ष, राष्ट्रीय पर्वो, त्यौहारों, नवजात शिशु जन्म, नामकरण,अन्नप्रासन, चूड़ाकर्म, शागाई, विवाह,शादी की सालगिरह, जन्म दिन, स्थानीय व धार्मिक मेलों,चल-अचल सम्पति खरीद, देवी-ंदेव पूजन, भागवत कथाओं, शपथ ग्रहण, प्रथम नियुक्ति, पदोन्नति, सेवानिवृत्ति,स्थानान्तरण तथा मृत्यु, तेंरवी एवं श्राद्ध व विशेष दिवसों पर एक-ंएक पौधें लगाते हैं तो वह पौधा सीधा हमारी भावनाओं से जुड़ेगा और हम उसका संरक्षण भी करेंगे। जिससे हमें वह पौध उन दिनो, पलो एवं अपनो की याद दिलायेंगी और आनेवाली पीढ़़ी को हम उस पौधे के महत्व के बारे में बता सकेगें हमारा ऐसा लक्ष्य होना चाहिए तभी पौधें जीवित रह पायेंगे। संस्कार विकसित करने से ही वन एंवम् पर्यावरण का संरक्षण सम्भव है।
प्रश्न- युवाओं को पौधे रोपण के प्रति कैसे प्रेरित करते हैं?
डा.सोनी- आज उपहारो का जमाना है, युवा भी गुलाब या बुके उपहार में देते हैं या कही पर कोई पौधा हो तो उस पर नाम लिख देते है मेरा प्रयास हैं कि गुलाब के फूल की टहनी देने के बजाय गुलाब का पौधा उपहार में दो जो घर आंगन की शोभा बढ़ायेंगा और जिस पौधें पर किसी का नाम लिखा रहे हों उसके नाम का एक पौधा लगा दो वो हमेशा हमेशा समाज में जिन्दा रहेगा और उन्हेंं ही नही बल्कि समाज को भी याद दिलायेंगा उनकी जिनके नाम पर वह पौधा लगाया हैं, पौधों का रोपण एक दोस्त व मित्र बनाकर करें। जिसके लिए मैंने ‘‘मेरा पेड-मेरा दोस्त’’ या ‘‘मेरा वृक्ष मेरा मित्र‘‘ अभियान को चलाया हैं इस प्रकार के कार्यक्रमों से युवाओं में पौधेरोपण करने की सीख मिली है ऐसा मेरा विश्वास है।
प्रश्न- पौधें उपहार में देने की सीख कंहा से मिली?
डा.सोनी- आज समाज में लोग बड़े बड़े उपहार देते हैं जो चार दीवारी के अन्दर की शोभा बढ़़ाते हैं मेरा प्रयास हैं कि मैं ऐसा उपहार दूं जो चार दीवारी नहीं बल्कि धरती के आवरण की शोभा बढ़ायें इसलिए मैं उपहार में पौधा देता हूं इसकी प्रेरणा मुझे अपने माता-पिता से मिली। गांव में पौधा लगाने के लिए मेरे माता पिता जाते थे तो मैं भी उनके साथ पौधे लगाने के लिए जाया करता था। मेरी मॉ मुझे पौधा लगाने के लिए मेरे हाथ में देती थी और में उस पौधें को पिता जी के हाथ में देता था जो पौधा मेरी मॉ मुझे पिताजी के पास लगाने के लिए देती थी उस पौधे को मैं अपने पिताजी को देता था बड़ा होकर मैंने उस पौध लेने -देने की प्रक्रिया को पौध उपहार में देने की परम्परा बना दिया। जिसका नाम मैंने वृक्ष भेंट आन्दोलन रखा हैं आज कई लोग पौधों को उपहार में देते हैं मुझे खुशी होती हैं एक दिन वो था जब लोग कहा करते थे पौधें उपहार में देने की चीज हैं। हटो! मंच पर जाने नही देते थे बहुत कश्रत करनी पड़ती थी पौधे को उपहार में देने के लिए। कहते थे कोई अच्छा उपहार ले कर आते पौधा कोन देता हैं लेकिन मैंने हिम्मत नही हारी और आज कई लोग पौधे उपहार में देने लग गये है। आखिर किया गया प्रयास रंग लाया तथा लोगों में जागृति आयी है।
प्रश्न- आज तक आप किन-किन को पौधा उपहार में भेंट कर चुके हो?
डा.सोनी- मैं 1998 से अभी तक 460 से अधिक पौधारोपण व जन जागरूकता के कार्यक्रम कर चुका हुं और पौधों को भावनाओं से जोड़कर उनके संरक्षण को पौधें उपहार में भेंट करता हूं जिसके तहत मैंं अभी तक 1000 से अधिक माननीयों व महानुभाओं को पौधें उपहार में भेंट कर चुका हूं जिसमें महामहिम राज्यपाल, मा0मंख्यमंत्री, मा0केन्द्रीय मंत्री, मा0सांसद, मा0कैबनेट मंत्री, मा0विधायक, मा0जनप्रतिनिधियों,मेधावी छात्र-ंछात्राओं, अधिकारियों, कर्मचारियों, समाजसेवी हैं। मैं पौधों को उपहार में भेंट करने के लिए व पौधारोपण के लिए पौधों को अपने वेतन के कुछ हिस्सा लगाकर खरीद कर लाता हूं ताकि मेरे आनेवाली पीढ़़ी का जीवन खुशहाल रह सके तभी मेरा जीवन का इस धरती में आना सार्थक होगा।
प्रश्न- आपके वृक्ष मित्र अभियान का क्या उद्देश्य हैं?
डा.सोनी- मेरा प्रयास हैं कि पर्यावरण संरक्षण,संवर्द्धन व पौधारोपण तथा जल, जंगल,जीवन व वन्यजीव बचाने, जंगलो में आगजनी घटनाओं को रोकने, पॉलीथीन प्रदूषण मुक्त वातावरण बनाने के साथ ही बेटी बचाओ-बेटी पढ़़ाओ, बालिका शिक्षा को बढ़़ावा देने,गरीब निर्धन बच्चो को शिक्षा की मुख्यधारा से जोड़ने,स्कूली शिक्षा से कोई बच्चा छूटे ना, प्रवेश के लिए प्रेरित करना,राष्ट्रीय अभियान पल्स पोलियों, महिला जागरूकता, स्वच्छ भारत-स्वच्छ उत्तराखण्ड के लिए जन-जन को जागरूक व प्रेरित करके समाज में नयी दिशा देने का प्रयास करता हूं तथा मेरा यह भी सतत् प्रयास है कि मैं एक ऐसा समाज निमार्ण करुँ,जो शिक्षित, सुसज्जित व समृद्ध हो।
प्रश्न- वृक्षमित्र डा.त्रिलोक चन्द्र सोनी उत्तराखण्ड के जंगलो के बारे में आपकी राय?
डा.सोनी- मेरा प्रयास हैं कि उत्तराखण्ड के जंगलो को फलपट्टी के रूप में विकसित करके इन जंगलों को आम आदमी के लिए आर्थिकी, आमदानी व रोजगार के स्रोत बनाऊं। ताकि यहा के लोगो के लिए लघु एवं कुटीर उद्योगो का निर्माण हो सके और इन जंगलो से युवाओं को रोजगार मिले, अगर ऐसा होता हैं तो हमारे पहाडो़ से शहरो को हो रहे पलायान रूकेगा और मेरे प्रदेश की आर्थिक स्थिति भी मजबूत होगी।
प्रश्न- उत्तराखण्ड के सूखते जलस्रोतो को कैसे बचाया जा सकता है।
वृक्षमित्र डा.सोनी- उत्तराखण्ड के सूखते जलस्रोतो को बचाने के लिए एक योजना के तहत कार्य करना होगा। हमें मूल जलस्रोतों के साथ कोई छेड़खानी नही करनी होगी मूल जलस्रोत से अन्यत्र पानी ले जाने हेतु चैम्बर बनाते समय उनसे छेड़खानी न करके गूल के माध्यम से 50 या 100 मीटर में वाटर टैंक बनाया जाय वंहा से अन्यत्र पानी ले जाया  जाय। इस प्रकार से मूल जलस्रोत से छेड़खानी नही होगी तथा मूल जलस्रोत के 500 वर्ग मीटर पर सघन जल सोशित पौधों का रोपण किया जाय ताकि वंहा पर नमी बनी रहेंगी और पानी का जल स्तर हमेशा ऊंचा रहेगा जिससे मूल जलस्रोत में हमेशा पानी रहेगा और वे सूखेंगे नही।
प्रश्न-  वनों के संरक्षण करने के लिए टूरिस्ट संदेश के माध्यम से समाज को क्या संदेश  देना चहाते हैं?
डा.सोनी- हमें अपने आने वाली पीढ़़ी के भविष्य को ध्यान में रखकर कार्य करने की आवश्यकता है। यदि हम इस प्रकार की कार्य योजना बनाकर कार्य करेंगे तो निश्चित ही हमारे प्राकृतिक वनस्पति व संसाधनो का दोहन कम होगा और जिस प्रकार से हमारे पूर्वजो द्वारा बचाये प्राकृतिक वनस्पतियो व संसाधनो का उपयोग हम कर रहे हैं उसी प्रकार से हमारे द्वारा बचाए गये प्राकृतिक वनस्पतियो व संसाधनो का उपयोग हमारी आने वाली पीढ़़ी भी करेंगे। ऐसा हमारा उट्ट्ेश्य होना चाहिए तभी आने वाली पीढ़़ी को जलवायु परिवर्तन जैसी समस्याओं से दो-चार नहीं होना पड़ेगा। आज प्रदूषण(वायु,जल,मृदा), ग्लोबल वार्मिग की समस्या से पूरा विश्व आच्छादित है। इस समस्या का समाधान भी इसी मुहिम छिपा हुआ है।

आओ! वृक्षमित्र बनकर सुन्दर और स्वच्छ धरा बनाऐं। 


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