यमकेश्वर विधानसभा : वाह से आह! तक - TOURIST SANDESH

रविवार, 21 जुलाई 2019

यमकेश्वर विधानसभा : वाह से आह! तक

यमकेश्वर विधानसभा : वाह से आह! तक

 

त्तराखण्ड की धरती को यूं ही देवभूमि नहीं कहा जाता है। यहां के कण-कण में देवत्व का वास है। गढ़वाल की धरती शिवोमय है। गढ़वाल की इसी धरती में यमकेश्वर यानि यम का ईश्वर अर्थात शिव का वास भी है। शिवोमय यह भूमि ना सिर्फ प्राकृतिक सुन्दरता के लिए जानी जाती है बल्कि अपने देवत्व के लिए भी प्रसिद्ध  है। उत्तराखण्ड के अस्तित्व में आने के बाद से यमकेश्वर विधानसभा सीट पर अभी तक भाजपा की महिला प्रतिनिधि का एकाधिकार रहा है। परन्तु बिडम्बना ही कही जायेगी कि यह क्षेत्र आज भी विकास के लिए तरस रहा है।जब प्रथम बार यहां से महिला विधायक चुनी गयी थी तो ऐसा लग रहा था कि अब महिला सशक्तिकरण के साथ ही क्षेत्र का तीव्रतम विकास होगा क्षेत्रीय जन के मुंह से सहज ही वाह -वाह! निकल रहा था परन्तु समय बीतता गया ऐसा कुछ भी न हो सका जिसे याद किया जा सके पिछले 18 सालों में वादों के सिवा कुछ हासिल न हो सका। निराश क्षेत्रीय जन की आवाज वाह से आह! में बदल गयी। तंत्र पर सवाल हैं क्या यही थी नेताओं के विकास की अवधारणा। यमकेश्वर विधानसभा के भ्रमण से लौटे देवेश आदमी की रिपोर्ट....................   

गंगा घाटी ऋषिकेश से लेकर दुगड्डा, आमसौड़ और सतपुली लैंसडौन के पास धोबीघाट तक फैली 83,498 मतदाताओं वाली यमकेश्वर विधानसभा उत्तराखंड राज्य गठन से आज तक भाजपा के चंगुल में फड़फड़ा रही है। श्रीमति विजय बर्थवाल जैसी दिग्गज नेता ने वर्ष 2002 से 2017 तक यहां अपनी सीट गाड़ के रखी और अब यहाँ पूर्व मुख्यमंत्री की बेटी ऋतु खंडूरी का साम्राज्य फैला हुआ है। पौड़ी जिले की यमकेश्वर विधानसभा राजधानी के सब से नजदीक है बावजूद इस के यह विधानसभा पौड़ी जिला का सब से पिछड़ा है। इस क्षेत्र की बागडोर सदैव महिलाओं के हाथ में रही चाहे सरोजनी केन्त्युरा हो या रेनू बिष्ट या विजया बड़थ्वाल अब इस क्षेत्र में ब्लॉक प्रमुख भी महिला के हाथ में है। यमकेश्वर से कृष्णा नेगी जैसी महिला इस विधानसभा क्षेत्र में ब्लॉक प्रमुख है। विधायक ऋतु खंडूरी  ने इस क्षेत्र को क्या दिया यह तो क्षेत्र के लोग बता सकते है मगर घट्टू घाट से डाडा मंडी तक का सफर बताता है कि लीपापोती के सिवाय कुछ नहीं हुआ है। यमकेश्वर का ब्लॉक मुख्यालय में पीएमजीवाई से बन रही 7 किमी. की सड़क किसी खच्चर रोड़ से कम नहीं है। मैं बिगत 3 महीने पहले जब ब्लॉक मुख्यालय गया तो अपनी दो चक्के की गाड़ी को पकड़-पकड़ कर नीचे मंदिर तक उतारा। यह हाल ब्लॉक मुख्यालय का है तो अन्य का क्या हाल होगा। इसी क्षेत्र से उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री भी है।
यमकेश्वर विधानसभा के 23 प्रतिशत ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी सड़क की सुबिधा नही है। अनेकों सड़क सिर्फ छोटी गाड़ियों के जाने लायक है। आधी अधूरी सड़कें जहां तहां खुदी हुई हैं। क्षेत्र में कोई भी महाविद्यालय नहीं है। 43प्रतिशत गाँव में पीने का पानी नही है। हर वर्ष गाँव में 10 प्रतिशत की दर से वोटर कम हो रहे हैं। क्षेत्र में छोटे -छोटे क़स्बों का निर्माण तेजी से हो रहा है। पलायन का प्रतिशत 10 से 12 के मध्य है। करीब 5 प्रतिशत गाँव में बिजली की सुबिधा नहीं है। स्कूलों की गुणवत्ता रसातल में है और क्षेत्र के लगभग हर गाँव में 20 से 24 प्रतिशत तक पलायन हो चुका है। बिगत 20 वर्ष में यमकेश्वर विधानसभा के 14 गाँव जनशून्य हुए है।
इस क्षेत्र में महिला प्रतिनिधित्व की वजह यह भी है कि महिलाओं का कुल 49 प्रतिशत वोट है। बावजूद इस के यहां न महिलाओं की दशा बदली है न दिशा तय हुई है।शैलेंद्र सिंह रावत जैसे लोगों ने तीलू रौतेली के नाम पर इस क्षेत्र में सहानुभूति बटोरने की कोशिश की मगर कोटद्वार की तरह यहां सफलता हाथ न लगी। सतपाल महाराज जैसे भारी भरकम मूछों वाले लोगों ने इस क्षेत्र को सींचा हुआ है। ज्ञान की तरफ पीठ कर के अनेकों ज्ञान पीठ पाने वाले बुद्धजीवीयों ने यहां समय-समय पर ज्ञान गंगा बहाई है। क्षेत्र बन्दरो तथा सुअरों के आतंक से सहमा हुआ है। क्षेत्र के जन प्रतिनिधि हर बार वादे कर के गायब हो जाते हैं।
वर्ष 2014 की आपदा से यमकेश्वर का तीन चौथाई हिस्सा प्रभावित रहा। आपदा से क्षतिग्रस्त योजनाओं के लिए पैसा आज तक नहीं मिला है। प्रदेश की प्रगति में यमकेश्वर विधानसभा का 0.800 प्रतिशत योगदान रहा है जो कृषि के क्षेत्र में है। 1.5 प्रतिशत दर से यहां विकास हुआ है। नीलकंठ महादेव व यमकेश्वर महादेव की हजारों कसमे खाकर लोग देहरादून के रास्ते दिल्ली गद्दी तक पहुंच चुके है मगर इस क्षेत्र का उद्धार न भगवान कर सका न भक्त।
यमकेश्वर का वोट प्रतिशत 46 प्रतिशत से 55 प्रतिशत हो चुका है मगर खंडूरी जी की दूसरी पीढ़ी इस बात को नहीं समझ सकी कि क्षेत्र को क्या चाहिए। मूलभूत सुविधाओं के अभाव में निर्वस्त्र खड़ा यह क्षेत्र आज भी श्रीकृष्ण की राह देख रहा है। अनेकों शराब के ठेके विकास का प्रमाण है और खिसकते पहाड़ लुढ़कती जवानी बहता पानी विकास का परिणाम है। यमकेश्वर विधानसभा का वोट प्रतिशत बढ़ता देख लोग खुश जरुर है मगर इस बात को छुपा रहे हैं कि, दुगड्डा ऋषिकेश से लगे क्षेत्र में वोट  प्रतिशत बढ़ रहा है क्यों कि अन्य क्षेत्रों से लोग पलायन कर के यहां आ रहे है। विकास के विषय पर क्षेत्र के बुद्धजीवियों का कहना है कि क्षेत्र का राजनीतिक प्रतिनिधित्व सदैव भाजपा के हाथ मे रहा इस लिए विकास नहीं हुआ। वह इस विधानसभा को अपनी जागीर समझ रही है और इस की वजह से कोई विकास कार्य नहीं करती है। हालांकि जो भी विधायक इस क्षेत्र से जीता उस ने बहुत बड़े मार्जन से जीत हांसिल नही किया। 1200 से 3500 के मार्जन से 3 बार विजया बर्थवाल विजयी रही हैं। फिर भी यहाँ का दुर्भाग्य ही है कि विकास की अ नहीं दिख रही है।पौड़ी जिले के यमकेश्वर विधानसभा क्षेत्र में गुमखाल, कांडाखाल, कांडी, यमकेश्वर, लक्ष्मणझूला, मोहनचट्टी जैसे आर्थिक गति के बाजार हैं। मगर दुकानदारी तक ही सीमित इन बाजारों में शहरों का सामान मिलता है। राजस्व अर्जन में शराब के सिवाय कुछ नही मिल रहा।
पाली,लंगुरी,सीला,भनकोट,बमोली,देवखेत,अमोला,किमसार,जमरगड़ी,कुमरेल,मटियाली,कुरना कोट,सेकलावाड़ी,मज्याडी, गुम,प्रंडा, सार,तिमली, चोपड़ा,ठाँगर, कांड,सीला,धारी,धनसी आदि गांवों की बहुत दुर्दशा है। इन गांवों में मूलभूत सुविधाओं का बहुत अभाव है।
क्षेत्रीय लोगों को सोचना होगा कि कैसे इस क्षेत्र का विकास होगा जनप्रतिनिधियों को इस ओर ध्यान देने की सख्त जरूरत है।

6 टिप्‍पणियां:

  1. अक्षरश: सहमत !!
    मेरा पैतृक गांव - ग्वील ,इसी विधानसभा क्षेत्र के अंतर्गत है ।मुझे यह कहने में कोई संकोच नहीं है कि पिछले 15 + वर्षों से बहुमत ने लगातार वर्तमान सत्ताधारी पार्टी को ही विजयश्री दी किंतु ,ग्वील जैसे पानी की उपलब्धता वाले गांव के लिए फलोद्यान आदि के लिए बनी योजनाएं धरातल पर नहीं उतर पाईं । पलायन के कारण यहां कभी की सिंचित भूमि प्राय: बंजर ही पड़ी है । ऊपर से , जंगली जानवरों ने सब कुछ बर्बाद कर दिया है ।
    ग्रामवासियों से प्रशासन के नुमाइंदों द्वारा शायद ही कभी विकास योजनाओं की चर्चा होती हो !!!
    जल की प्रचुरता वाले , क्षेत्र के इस प्रमुख गांव में पेयजलापूर्ति योजना सड़ी गली स्थिति में पहुंच गई है किंतु आज तक इसका पुनर्गठन नहीं हो पाया ।
    शायद आप आश्चर्य करेंगे कि सामुदायिक भवन के लिए क्षेत्रीय विधायक विधायक सांसद से निराश होने के बाद , राज्य गठन से पूर्व उ.प्र. के राज्यपाल रहे माननीय श्री मोतीलाल वोरा जी (वर्तमान राज्यसभा सदस्य , छत्तीसगढ़) ने हमारे दर्द को समझा और अपनी सांसद निधि से रु. दस लाख प्रदान किए ।आज यह भवन गांव की सेवा में तैयार होकर ग्रामवासियों को लाभान्वित कर रहा है । उल्लेखनीय है कि श्री वोरा ने ही राष्ट्रपति शासन की अवधि में पूर्ववर्ती उतर प्रदेश के समय सिलोगी के पास रिंगालपानी -ग्वील मोटर मार्ग स्वीकृत किया था जो अब आगे बढ़कर गढ़कोट मांडलू तक बढ़ चुका है । प्रधानमंत्री सड़क योजना के अंतर्गत होने वाले इस मोटर मार्ग की डामरीकरण की शून्यप्राय/ कछुआ गति से बहुत ही क्षोभ होता है । यहां से संलग्न क्षेत्र के अन्य गांवों की स्थति भी निराशाजनक ही है । निकटवर्ती जसपुर अस्पताल डॉक्टर की बाट ही जोह रहा है । बिंद्रातोक के राजकीय हाईस्कूल के उच्चीकरण के केवल और केवल आश्वासन ही मिलते जा रहे हैं ।
    व्यापक रूप में, संपूर्ण उत्तराखंड से हो रहे पलायन के मूल में यही सब कारण हैं । जिस प्रदेश का "पलायन आयोग" ही पौड़ी से देहरादून (सब्बि धाणि देहरादून) पलायन कर गया हो ,उसकी दुर्गति ही होनी तय है । बहुत गंभीर चिंतन हेतु आपको साधुवाद।।

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  3. बहुत सुंदर देवेश भाई हकीकत बयां की है आपने ।।

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  4. यमकेश्वर विधानसभा सतर विधान सभा में सबसे पिछड़ा क्षेत्र है गांव में बिजली पानी सडकों का आभाव है ।क्षेत्र में एक भी बडा हास्पीटल नहीं है लोगों को कोटद्वार ॠषिकेश ही जाना पडता है बीमार व्यक्तियों को पैदल ही सडक मार्ग तक पहुंचना पडता है ।मेरी विनती है सभी गांव को सडकों से जोडा जाये।

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