20 साल में राज्य में सरकारी शिक्षा का बुरा हाल - TOURIST SANDESH

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शुक्रवार, 6 नवंबर 2020

20 साल में राज्य में सरकारी शिक्षा का बुरा हाल

  20 साल में राज्य में सरकारी शिक्षा का बुरा हाल

देव कृष्ण थपलियाल

साल 2000, नवम्बर माह की 9 तारीख को जन्में इस पहाडी प्रदेश के 53,483 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र को, जिसमें कुछ हिस्सा मैदानीं (हरिद्वार, उधमसिंहनगर तथा हल्द्वानी) वाले इलाके भी है। मुख्यतः पहाडी क्षेत्र की ’पहाड’ जैसी विषम समस्याओं के निदान के लिए लगभग देश की आजादी की लडाई के दिनों से उठ रही मॉग का परिणाम रहा। हालॉकि इस ’पृथक राज्य’ की निर्णायक लडाई में शामिल आज के युवा/प्रौढ (स्त्री-पुरूषों) वर्ग की भूमिका कम नहीं रही है ? जिन्होंनें देश के मानचित्र पर इसे  27 वें राज्य के रूप में स्थापित कर ही दम लिया और यहॉ के विकास के सपनें बुनें।

 इस वर्ष 9 नवम्बर को राज्य के 20 साल पूरे होंनें पर उन सवालों पर ध्यान जाना लाजमी  है, जिसके लिए राज्य बना था। इस मुकाम को पानें के लिए लोगों ने पुलिस बर्बरता से लेकर अमानवीय यातनाऐं सही ? वे घाव अभी हरे के हरे हैं ? साल-दर-साल शासक और शासक दल बदले, पर राज्य की तस्वीर और तकदीर नहीं बदली ? महज दो दशक के कालखण्ड में आठ राजनेताओं ने ’मुख्यमंत्री’ बनने की हसरत पूरी की, कई माननीय हो गये, दूसरी-तीसरी पॉत के छुट्ट भय्याओं नें भी जन्त-जोडकर अपनें लिए दर्जाधारी ’टाइप’ कुर्सी हथिया ही लीं। नई दिल्ली में बैठे अपनें आकॅाओं की बदौलत वे बेखौफ ’राज’ करते रहे ? परन्तु राज्य की असली समस्याओं पर शासकों का रवैया आम जनमानस को निराश किये हुऐ है जिन लोंगों नें अपनी भावी पीढी को आगे बढते रहनें के खातिर पृथक राज्य के लिए अपना सब कुछ दॉव पर लगा दिया, वे आज अपनें को ठगा सा महसुस करनें लगें हैं ? रोजगार, पलायन, शिक्षा, स्वास्थ्य, बिजली, पानी, सडक, जल, जंगल व जमीन और यहॉ के प्राकृतिक/पौराणिक/धार्मिक संसाधनों का समुचित विकास से युवाओं को रोजगार और विकास के समान अवसर प्रदान करनें बात मानो कहीं होती ही न हो ? 

किसी भी बेहतर समाज/राज्य की कल्पना उसके शिक्षा के स्तर से की जाती है, और राज्य निर्माण के पीछे के लक्ष्यों में भी दूर-दराज के लोंगों की मॉग ’अच्छी शिक्षा’ को लेकर ज्यादा रही है। लेकिन बीस सालों के इतिहास में उत्तराखण्ड में सरकारी शिक्षा का स्तर बडी तेजी गिरा है, इसीलिए गरीब से गरीब व्यक्ति भी अपनें बच्चों को गली-मोहल्ले में खुले प्राइवेट विद्यालयों में दाखिला करनें को मजबूर है, कहा जाय तो राज्य बनने से पहले की स्थिति ज्यादा बेहतर थीं, बजाय राज्य बननें के बाद की। एक ऑकडे के अनुसार राज्य में प्राथमिक विद्यालयों की संख्या निरंतर घटकर अब 12,814 है,  लेकिन सरकार की उपेक्षा और समय के मुताबिक अपग्रेड न करनें की कमीं के कारण इनमें संख्या लगातार गिरती जा रहीं हैं, पिछले कई सालों से स्कूलों को बंद करनें का सिलसिला जारी है, अभी दो-तीन सालों में 1800 से ज्यादा स्कूलों को बंद कर दिया गया, तथापि 60 फीसदी स्कूलों छात्र संख्या शुन्य स्तर को छू रही है, यानीं वे कभी भी बंद हो सकते हैं। ,इनमें पढ रहे दो-चार बच्चों को या तो आसपास के विद्यालयों में शिफ्ट किया जा रहा है, अथवा उनकी नियति पर छोडा गया है ? जहॉ हैं वहॉ एक गुरूजी नियुक्त हैं, ऐसे 2521 स्कूल हैं, जहॉ एकल अध्यापक व्यवस्था है, अल्मोडा जिले में यह संख्या 335 सबसे अधिक है, इसके बाद दूसरा स्थान जिला टिहरी गढवाल 296 है, चमोली में 235, पिथौरागढ में 230, पौडी 226, नैनीताल व बागेश्वर 211 स्कूल हैं, जो एक शिक्षक भरोसे चल रहे हैं। 10 से कम छात्र संख्या वाले स्कूलों की संख्या 2847 लगभग चौथाई के बराबर हैं। नैनीताल जिले में सबसे अधिक 54 स्कूल व राज्यभर में 71 स्कूलों में कोई बच्चा पढता ही नहीं,। इसके अलावा राज्य के 264 विद्यालय ऐसे भी हैं जहॉ की महज 2 छात्र ही पढने ंके लिए आते है। ध्यान देने वाली बात ये है कि ये स्थिति तब है, जब शिक्षा विभाग ’’प्रवेशोत्सव’’ के नाम से घर-घर जाकर अभिभावकों और विद्यार्थियों को फ्री सरकारी स्कीमों व उनके फायदों के बारे में जागरूक कर रहा है, ताकि वे सरकारी स्कूलों में अधिक से अधिक दाखिला लें सकें, बच्चों को मीड-डे-मील, फ्री यूनिफार्म तथा किताबें के साथ अन्य सुविधाऐं देने के बाद भी स्कूलों से अभिभावको व छात्रों का विश्वास लगातार उठ रह है।  

माध्यमिक शिक्षा को संभालने के लिए पिछली हरीश रावत सरकार नें प्रशिक्षित नौंजवानों को तैनाती दी थी । लगभग 6,000 से अधिक युवाओं को ’गेस्ट फैकल्टी’ के तहत तैनाती  देने से पहाड के धार-खाल के इंटरमीडिऐट व हाईस्कूलों को गणित, विज्ञान, अंग्रेजी जैसे विषयों के ’गुरूजी’ मिलनें से वहॉ के दिन बहुरनें लगे थे, जिन स्कूलों में कभी इन विषयों मास्टर जी ढूंढे नही मिलते थे वहॉ सभी विषयों के शिक्षकों की तैनाती से सरकारी शिक्षा में सकारात्मकता का संचार होने लगा था। लेकिन भाजपा सरकार के आने बाद सबसे पहले इन्हीं शिक्षकों को बाहर का रास्ता दिखाया गया, नतीजन पूरा सत्र बीत जाने के बाद भी इन सरकारी स्कूलों में पढाने वाला कोई ’पढ़ने वाला’ नहीं दिखा, हालॉकि 2020 का समय ’वैश्विक कोरोना’ महामारी के कारण स्कूल ज्यादातर बंद रहे, परन्तु कई स्कूल शिक्षकों नें बच्चों को ऑनलाइन मार्गदर्शन दिया, परन्तु ऐसे स्कूलों के बच्चों को न ऑनलाइन पढाई मिल पाई न ऑफ लाइन ।

अक्सर सुर्खियों में रहनें वाला उत्तराखण्ड का शिक्षा महकमा ’शिक्षा के उन्नयन’ से ज्यादा अपनी उल्टी-सीधी नीतियों से ज्यादा चर्चित रहता है, ताजातरीन मामला इन्हीं ’गेस्ट शिक्षको’ं की तैनाती से जुडा है, कई महिनों से अपनीं तैनाती को भटक रहे, इन ’मेहमान शिक्षकों’ की नियुक्ति की बात आई तो विभाग ने कह दिया, कि वे स्वयं ही अपनें लिए उन स्कूलों की तलाश करें जहॉ उनके विषयों के पद रिक्त हैं, और तब महकमें को सूचित कर अपनीं तैनाती की सिफारिश करें ? अब इतने बडे विभाग और उसमें बैठे अधिकारियों और कर्मचारी-शिक्षकों की फौज को यह नहीं मालूम कि उनके विभाग में कहॉ-कितनी रिक्तियॉ हैं, और कितनें कार्मिक कार्यरत हैं, संवेदनहीनता की बात ये भी है, जिन युवाओं की जेब में फूटी कौडी नहीं हैं, तथा सालों से बेरोजगारी की मार झेल रहे हैं ? उन्हे नियुक्ति देंनें की बजाय उन्हें इस तरह दौडाया जा रहा है ? जैसे उन्होंने कोई बहुत बडा अपराध किया हो। 

शिक्षा विभाग के छोटे से छोटे आदेश-नियम के पीछे भी कोर्ट-कचहरी की कानूनीं अड़चन लगना बहुत स्वाभाविक सा है। वर्षों से अध्यापनरत शिक्षकों की सीनियरिटी को लेकर विभाग फिर विवादों में है, पिछली बार शिक्षकों को तदर्थ तिथि से प्रमोट करनें की नीति बनीं थी, बाद में उस तिथि को प्रोन्नति का आधार माना गया, जिस तारिख को शिक्षक विभाग में परमानेंट हुआ, अब इस नीति के कारण उन शिक्षकों के प्रमोशन पर संशय के बादल मंडरानें के लगे हैं जिनकी प्रोन्नति की तारीख नजदीक अथवा सामने है ?   सरकार ने फिलहाल शिक्षकों के प्रमोशन करने ही बंद कर दिये है ? इस अस्पष्ट नीति के चलते अधिकॉश शिक्षकों का मनोबल टूटा है, उनमें असंतोष है ? 

 प्राथमिक स्कूलों में फर्जी शिक्षकों की नियुक्ति को लेकर विभाग काफी उलझन में है, इसके लिए एसआईटी का गठन किया गया है, बडी तादाद में बेपर्दा हुऐ इन फर्जी शिक्षकों के कारण विभाग को काफी किरकिरी झेलनीं पडी है, बल्कि वर्षों से विभाग में कार्यरत सभी शिक्षकों के  प्रमाण पत्रों को भी छानबीन के लिए मंगवाया गया हैं ? जिसकी पडताल के लिए विभाग का ’समय’ और ’पैसा’ दोंनों बर्बाद होगा ? हल्द्वानी स्थित स्टूडेंट वेलफेयर सोसाइटी की ओंर हाई कोर्ट में दायर जनहित में याचिका से इस रहस्य पर से पर्दा उठा ? अभी तक 84 शिक्षक गण सामने आये हैं । इसके अलावा बच्चों के ’मिड-डे-मिल’ को ही साफ करने मामला भी प्रकाश में आया है, केंद्र सरकार से जारी धन और खाद्य विभाग द्वारा भुगतान में करीब 2.5 करोड का घोटाला सामने आया है, इसकी जॉच के लिए भी शिक्षा विभाग खासी मशकत में है। राज्य निर्माण के बाद शिक्षा विभाग में सबसे अधिक चर्चित ट्रांसफर-पोस्टिंग का खेल में अपनें चहेतों को सुविधाजनक जगहों पर लाने के लिए उनके राजनीतिक ऑकाओं का खासा योगदान है, कई शिक्षकों में भी राजनीति’ कौशल साफ दिखता है, तब महसूस होता है, कि वे किस तरह शिक्षकगण नेता-मंत्रियों से परिचित हैं। तब सवाल ये भी उठता है, ऐसे शिक्षक अपना समय पढने-पढाने से ज्यादा राजनीतिक सरोकारों में जॉया करतें हैं ?राज्य में जिसकी सबसे अधिक आवश्यकता रही है, वह ’’गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा’’ कीं पिछली सरकार नें हर ब्लाक में दो स्कूलों को मॉडल स्कूल के रूप में चयनित कर उस पर काम भी शुरू कर दिया था, परन्तु जैसे ही कॉग्रेस सरकार गई वह कोशिश भी खत्म हो गई ? इस बार उसी तर्ज पर हर ब्लाक में दो-दो विद्यालयों को अटल आदर्श स्कूल के रूप में सुसज्जित करनें निर्णय हूआ है, अभी तक 174 इण्टर कालेजों का चयन हुआ है। जिसकी राज्यवासी बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं लेकिन उसकी निरन्तरता व गुणवत्ता कहॉ तक जायेगी, यह भविष्य ही बतायेगा ?  अब जब हम राज्य के 20 वीं वर्षगॉठ मना रहे हैं, तो ’’नौंनिहालों की शिक्षा’’ में उपलब्धि के नाम पर ’बडा शुन्य’ है, हालॉकि राज्य में गली-मौहल्ले से लेकर बडे नगरां/शहरों मेंं खुले मॉलनुमा स्कूलों की वाहवाही है, हर गली-सडक पर लगे बडे-बडे होर्डिंस-इस्तहार में लिखी उनकी खुबियों पर भरोसा करना, और कहीं से भी पैसा जुटाकर नौंनिहालों को उसमें दाखिला कराने को गरीब से गरीब अभिभावक भी नियति के आगे मजबूर है।      


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