पुस्तक समीक्षा
मातृशक्ति, हिंदी कविता संग्रह
लेखक - डॉ श्रीविलास बुड़ाकोटी
समीक्षक - डॉ. शोभा रावत, असि. प्रो. हिन्दी
मानव मन के अन्तस्थ में स्थाई भाव सदैव विद्यमान रहते हैं और अनुकूल परिस्थिति पाकर ही सक्रिय होते हैं। संवेदना काव्य के मूल में है ।कवि ह््रदय संवेदना से सराबोर रहता है तभी वह प्रत्येक भाव को ग्रहण करता है ।उस से जुड़ता है तब उस पर अपनी लेखनी चलाता है ।डॉ श्रीविलास बुड़ाकोटी जी के काव्य को पढ़ने से आभास होता है कि आपकी कविताओं में अधिकांश रसों का सम्मिश्रण दृष्टिगोचर होता है ।यथा मां की ममता ,शहीदों की चर्चा ,दिवाली ,मद्यपान ,गणतंत्र ,बालिका शिक्षा अथवा मदनोत्सव इत्यादि।
काव्य के द्वारा मनोभावों को कलात्मक ढंग से अभिव्यक्त किया जाता है ।कविता हमारी संवेदना के बहुत निकट होती है। कवि के आसपास के वातावरण में जो भी घटता है कवि उसे लिपिबद्ध कर देता है। बुड़ाकोटी जी के काव्य संग्रह के प्रथम कविता के अध्ययन से ही हमें ज्ञात हो जाता है कि वे मातृशक्ति के प्रति कितनी संवेदनशील हैं -
“हे मातृशक्ति !तू शक्तिपुंज प्रणाम हमारा
स्वीकार करो जननी है अधिकार तुम्हारा
माता हो हे शक्ति प्रदा।तुम बहन किसी की
शक्ति रूपा हे शास्वता। तुम शक्ति किसी की“।
कवि की कविताओं का यदि हम वर्गीकरण करें तो महिला सशक्तिकरण, सामाजिक समस्याएं, पर्यावरण ,राष्ट्रप्रेम, अपने गांव से जुड़ी यादें इत्यादि जीवन के प्रत्येक पहलू को स्पर्श करती हुई कविताएं देखते हैं ।राष्ट्र के प्रति समर्पित कविता भारत माता में समय के घात -प्रतिघातों को सहकर भी निर्भय भारत माता के विषय में लिखते हैं -
“आतताइयों के हैं अविरल
घातों पर प्रतिघातें प्रतिपल
सहती हो तुम ममता मूरत
सहनशीलता तुम में अविकल“।
“रूद्र का रौद्र“ कविता में केदारनाथ की आपदा में रूद्र के रौद्र रूप का वर्णन करते हुए कवि ने मानव जाति की ओर से क्षमा मांगी है -
“ऐसी आपदा उत्तराखंड को क्यों दी ईश्वर
अब क्या हो गया जो हमसे रूठे शंकर
सारे भारत को अपना आशीष दिला कर
क्षमा करें प्रभु हमको तो नादान समझकर “।
“पटाखे क्यों “कविता के माध्यम से कवि पर्यावरण के प्रति चिंतित एवं जागरूक दिखाई देते हैं ।वे मिट्टी के दीप जलाने की बात करते हैं जिससे गरीब का पेट भर जाए -
“मृदा के अगर दीप जलते रहें तो
गरीबों की रोटी भी चलती रहेगी
मिट्टी के दीप बनाते रहे जो
ज्योति घर उनकी भी जलती रहेगी“।
“ मौन“ कविता के माध्यम से कवि यह बताने का प्रयास कर रहे हैं कि सभी मौन रहेंगे तो देश की समस्याओं पर कौन चर्चा करेगा-
“ देश हित की सोचे कौन
सब बैठे हैं दुबके मौन
यही सोचता रहता मौन
देश बचाए हममे कौन “।
आप अपनी कविताओं में पहाड़ का दर्द पलायन लिखने से स्वयं को नहीं रोक पाए ।आप की कविता में गांव की व्यथा झलकती है -
“मैंने उनसे पूछा कि आपके गांव का नाम क्या है,
बोले सुना नहीं मेरे दादा जी को पता होगा“।
मद्यपान की समस्या हमारे गांव अथवा कस्बों में इस तरह हावी है यह सभी जानते हैं ।हमारे समाज में अधिकतर देखा गया है कि मद्यपान के बिना कोई भी कार्य संभव नहीं है, ऐसा माना जाता है-
“ तुमको करती जा रही है खराब
मेरे मित्रों पीते क्यों तुम शराब“।
’प्रेम पंथ,’ ’गीत’ इत्यादि कविताओं में प्रेम में पगा कवि मन है, तो कुछ कविताओं में प्रौढ़ता, कुछ कविताएं जागरूकता से परिपूर्ण है मानो विभिन्न भावों के पुष्पों से गुम्फित पुष्पगुच्छ हों।
समय की बाध्यता है ।यह संग्रह जब आपके हाथों में आएगा तो आप स्वयं ही समझ जाएंगे कि सहृदय कवि बुड़ा कोटि जी ने एक शिक्षित, जागरूक नागरिक होने के साथ-साथ समाज के प्रति अपने संवेदनशील होने का परिचय दिया है ।इसी आशा के साथ की कवि शिखर जी के इस काव्य संग्रह से हमें, आने वाली पीढ़ियों एवं पाठकों को अवश्य एक नई दिशा मिलेगी। इन्हीं शुभकामनाओं के साथ ही आपकी लेखनी अनवरत चलती रहे।
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