अब कितनीं दरारें, कितना मुआवजा और सिसकियॉ ?
देव कृष्ण थपलियाल
श्री दलीप सिंह कुंवर सिंहधार, जोशीमठ के वाशिंदे हैं, अपनें ही मकान पर एक छोटी सी दूकान चलातें हैं, भारी बारीश और ठंड के बावजूद वे बाहर सडक पर ही मिल गये, सरकारी मूलाजिम समझ उनकी ऑखों में थोडी उम्मीद व दर्द छलक पडा ? बीते छः-सात साल पहले मेहनत-मजदूरी के दम पर बनें अपनें मकान का कोंना-कोंना दिखानें लगे, मकान में हर तरफ छोटी-बडी दरारें और पानीं का रिसाव साफ दिखा, मकान की स्थिति अमूमन खतरे के ही करीब है, तो सरकारी सहायता के बारे में जानना चाहा, तो उनका जबाव था सरकार कहती है कि ’’समय रहते मकान को खाली कर दो,’’ लेकिन वे कहते हैं जांएं पर जांए कहॉ ?
ऐसी ही स्थिति ’राहत कैंप’ बनाये गये वेद-वेदांग संस्कृत महाविद्यालय जोशीमठ में रह रहे पच्चीस परिवारों के कुछ लोंगों नें भी बयॉ की, सरकार के तत्कालिक इंतजामों से वे कुछ संन्तुष्ट जरूर दिखे परन्तु भविष्य को लेकर उनके माथे पर चिंता लकीरें साफ दिखी ? एस0एस0बी0 की नौकरी से रिटायर्ड हो चूके एक बूर्जुग सज्जन नें कहा कि फिलहाल जब तक आपदा का शोर है, तब तक तो सरकार खडीं रहेगी, या हमारी जॉच-पूछ करती रहेगी, पर आगे का क्या होगा ? यह सोचकर वे चिंता में डूब जाते हैं ।
सीमान्त जनपद चमोली का जोशीमठ नगर विगत 02 जनवरी से 25 फीसदी हिस्से के भवनों में जिस तरह की दरारें आईं हैं, उससे लोग खासे परेशान हैं, आसन्न खतरे को भॅापते हुए लोंगों को अपनें घरों को छोड कर राहत शिविरों या अन्य स्थानों पर शरण लेंनें को मजबूर होंना पडा। इसी बीच बारिश, बर्फवारी और ठंड के चलतें भी अनेक परेशानियॉ साथ आ गईं हैं, बच्चों और बूजूर्गों व बीमार लोंगों को इस आपदा में खासी दिक्कतों का सामना करना पड रहां हैं, अब तक मिली सूचनाओं के आधार पर 723 मकानों/घरों में अभी तक दरारें आ चूकीं हैं, जिनमें 283 परिवार अपनें आवासों छोडकर विस्थापित हो चूके हैं इनमें 60 परिवार स्वयं ही विस्थापित हुए हैं, इसके अलावा 140 भवनों पर लाल निशान लगा कर खतरे की ओंर इशारा किया गया है।
लोगों को ठहरानें के लिए कई सरकारी संस्थानों खासकर विद्यालयों व निजी व्यावसायिक संस्थानों को ’राहत शिविर’ में तब्दील कर दिया गया है, जिससे नौंनीहालों की पढाई में भी व्यवधान पहुॅचा है, अभी तक ऐसे 1106 कमरे चिन्हित हैं जहॉ लोगों और परिवारों को ठहराया गया है ? सरकार भी यथासंभव लोंगों के साथ खडी दिख रही है। 73 परिवारों को 5-5 हजार रूपये की राशि तत्काल दे दीं गईं हैं, 10 प्रभावित परिवारों को क्षतिग्रस्त भवन के बदले 1.30 रूपये, 03 प्रभावित परिवारों को किराये पर रहनें के लिए 4-4 हजार रूपये तत्काल मुहैया करा दिए गये हैं, 125 प्रभावित परिवारों को सामान ढुलाई और शिफ्ट के लिए 50-50 हजार रूपये तथा आपदा और ठंड से अस्वस्थ्य हुए 295 लोंगों का अभी तक स्वास्थ्य परीक्षण करा कर उन्हें उचित इलाज व दवा प्रदान की गईं हैं । सूबे के मुख्यमंत्री श्री पुष्कर सिंह धामी सहित अनेक वरिष्ठ कैबिनैट मंत्री, विधायक, पक्ष-विपक्ष के सभी सियासी दलों के नेताओं शासन-प्रशासन के सभी उच्चाधिकारियों नें जोशीमठ पहुॅचकर इस आपदा में यथासंभव सहयोग कार्य का आश्वासन दिया है। मुख्यमंत्री स्वयं दो से तीन बार जनता के बीच पहुॅचे चूके हैं, जिससे आपदा राहत कार्यो में सहयोग मिला हैं बल्कि जनता के मनोबल को बढाया है।
अचानक आई प्राकृतिक आपदा से जोशीमठ नगर कें में लोग अत्यन्त भयभीत और तनाव में हैं, आपदाग्रस्त नगर क्षेत्र में दिन-प्रतिदिन भू-धसाव का दायरा और प्रभाव निरंतर बढ रहा है। बदरीनाथ हाई-वे पर कुछ दिन पहले भरी गईं दरारें भूमी धसनें से और चौडी हो कर फिर उभर आईं हैं, औली रोपवे के टावरों के आसपास भी दरारें निरंतर बढ रहीं हैं। हाईवे पर स्थित दो और होटल ’स्नोकृष्ट’ व ’कामेट’ भू-धसाव के कारण झूक गये हैं। आसपास बनें चार-चार मंजिले ये होटल विघटित किये जा रहे हैं। भू-धसाव के दंश के अलावा जल प्रवाह में अत्यधिक वृद्वि से जनजीवन काफी अस्त-व्यस्त है, जोशीमठ शहर की जे0पी0 कालोंनी में फूटी जलधारा से पानीं का प्रवाह तेज हो रहा है। इस धारा प्रवाह में 24 घंटे पहले प्रवाह 190 एलपीएम लीटर पर मिनट था जो अब बढकर 240 एलपीएम पहुॅच गया है। जोशीमठ शहर के निचले हिस्से में मुख्य बाजार से लगभग नौं किलोमीटर की दूरी पर मारवाडी में स्थित है जे0पी0 कालोंनी । इसी कालोंनी में दो जनवरी को अचानक जलधारा फूटी थीं। इससे निरंतर मटमैला पानी बह रहा है। अधिकॉश लोंग जोशीमठ में आई इस त्रासदी के लिए इसी जलधारा को ही जिम्मेदार मानते हैं। काफी लोंगों और परिवारों के व्यवसायों में इस आपदा से काफी नुकसान पहुॅचा है, वे लोग भी अब अनिश्चय की स्थिति में हैं, की करें तो करें क्या ? अगर सरकार उन्हें कुछ मुआवजा या सहयोग देंतीं भी हैं, तो भी वे अपनें भविष्य को लेकर डरे-सहमें व भयभीत हैं ?
पिछले कई दिनों से आपदा से ज्यादा क्षतिग्रस्त हुए होटलों व अन्य बडे-छोटे व्यावसायिक प्रतिष्ठानों व घरों को ध्वस्तीकरण का काम बडी तेजी से चल रहा है, हालॉकि भवनों को तोडनें के काम बाधाऐं आ रहीं हैं, लोंगों का कहना है, कि जब तक उन्हें उचित मुआवजा नहीं मिल जाता वे भवनों को ध्वस्तीकरण नहीं होंनें देंगें ? नगर के अन्य भवन भीं लगातार क्षतिग्रस्त होते चले जा रहे हैं, कई होटलों को तोडनें का काम जारी है । लोंगों में असन्तोष इस बात को लेकर भी है, कि उनकी रोजी-रोटी भी इस आपदा की भेंट चढ गई, । कई लोंगों के होटल बंद हो गये तो कई व्यापारियों का व्यापार व कारोबार इस आपदा कारण से टूट गया है, जोशीमठ के कई व्यापारियों का कहना है, कि उन्होंनें बैंक से लोंन लिया था अब किश्तें कैसे चुकायें ? इसके अलावा छोटे व्यापारी, रेहडी-पटरी, ठेली, खोखा व ढाबा चलानें वाले ज्यादातर लोंग जोशीमठ में किराये में रहतें हैं, उनके सामनें ज्यादा संकट हैं ? रूद्रप्रयाग जिले के निवासी श्री दुर्गा सिंह रावत सात साल पहले यहॉ आये थे, बदरीनाथ मंख्य मार्ग पर टीसीपी बाजार में किराये पर ढाबा लिया और कामधंधा जमाया लेकिन अब स्थिति बूरी हो गई है। सूरज नें नगर में होटल व्यवसाय की आमद को देखते हुए लॉन्ड्री कपडे धूलाई की का स्टार्टअप शुरू किया । 20 लाख की आधुनिक मशीन लगाए । सेटअप पर 35 लाख लगाई, आज उस भवन पर दरारें आ चूकी हैं, और एक रूपया भी नही कमाया । कई लोंगों नें होटल लीज पर लिए थे, उन्हें भी बैरंग वापस लौटना पडा है ?
राहत शिविर में रह रहा हर परिवार अजीब मनोदशा से गुजर रहा है, तन शिविर में है, मन दरकते हुए घरों/मकानों में हैं, हर पल शहर दरक रहा है, और इसी के साथ टूट रही है, उम्मींदें । मनो-मस्तिष्क में एक चक्रवात सा उठा रहा है। कहॉ जायेंगें, कैसे रहे क्या दोबारा छत नसीब हो पाएगी, बच्चों की पढाई क्या होगा मवेशियों को कहॉ ले जायेंगें । इसी उधेडबुन में लोंगों की भूख-नींद भी कोंसों दूर चली गई है। हालाता ऐसे मोड पर ले आंए हैं जहॉ से अंधेंरे के सिवा और कुछ नजर नहीं आ रहा है।
राज्य में प्राकृतिक आपदाओं का आना कोई नई बात नहीं है, दूर्भाग्य से इस पहाडी राज्य नें अतीत में कई दैवीय व प्राकृतिक आपदाऐं झेलीं हैं इतिहास इस बात का गवाह है कि अनेक प्राकृतिक त्रासदियों नें बडी मात्रा में मानवीय तबाही देखी है। परन्तु राज्य निर्माण के बाद साल-दर-साल घट रही इन घटनाओं से सरकार और नीति-नियंताओं पर प्रश्न चिन्ह खडा होंना स्वाभाविक है । 22 साल के इतिहास में राज्य को समझनें की दृष्टि कहीं से भी नहीं देखी गई, जिस क्षेत्र की पारिस्थितिकी इतनीं कमजोर हो की घोडे-खच्चरों के खूर भी पडे तो भी धरती डगमगा जाती हो वहॉ बडी-बडी जलविद्युत परियोजनाऐं, ऑल-वेदर-रोड व रेल परियोजना का विस्तार किया जा रहा है,। चार धाम यात्रा को ज्यादा से ज्यादा आरामदेह बनानें के लिए जोशीमठ, ऊखीमठ, गुफ्तकाशी, बडकोट, उत्तरकाशी जैसी जगहों पर बडे-बडे पॉच-पॉच मंजिले होटल बनाए जा रहे हैं। यात्राकाल के दौंरान हेली सेवाओं का विस्तार, उनका अत्यधिक शोर यहॉ के जीव-जन्तुओं को भी विचलित कर रहा हैं। स्थानीय, क्षेत्र, जनपदीय निकायों के साथ राज्य तथा केन्द्र सरकार इस क्षेत्र को कभी पर्यटन, तीर्थाटन तो कभी यहॉ के नौजवानों को रोजगार के लिए यहॉ कि प्राकृतिक संपदा को बेचनें में गुरेज नहीं करतीं, जबकि स्थानीय लोगों को अच्छी तरह से पता है, कि विकास के नाम पर जितनें भी ’निर्माण’ किये जा रहें हैं वे सभी यहॉ के वाशिंदों के लिए भविष्य के साथ खिलवाड है। तथापि समय-समय पर शासन-प्रशासन द्वारा बनीं विशेषज्ञों की कमेटियों/आयोंगों नें भी उनकी बातों को पुख्ता किया है।
पहाडों में भूस्खलन अथवा भू-धसाव की घटनाऐं बढ रही है। पहाड एवलांच, मूसलाधार बारिश, तापमान बढनें का दुष्प्रप्रभाव ग्लेशियर पिघलनें, ग्लेशियर झील, फटनें, जलवायु परिवर्तन, जंगलों में आग जैसे खतरों से जूझ रहे हैं। इसके अलावा अनियोजित और अवैज्ञानिक निर्माण की वजह से पहाड के कुछ इलाकों का अस्तित्व खतरे में आ चूका है।
एक ऑकडे के अनुसार 1960 में महज 30 दुकानें थीं, जो अब बढकर 400 से ज्यादा व्यावसायिक भवनों निर्माण हैं, पचास साल पहले नगर में 400 परिवार इस नगर में रहते थे, जिनकी संख्या बढकर आज 3,800 से अधिक है। वहीं पचास साल पहले यहॉ की आबादी 12000 थीं जो अब 25,000 के करीब है।
1976 में मिश्रा समिति नें जोशीमठ के आसपास भारी निर्माण पर प्रतिबंध लगानें की सिफारिश की थीं । तत्काकालींन उत्तर प्रदेश सरकार के एक शीर्ष नौकरशाह एम सी मिश्रा की अध्यक्षता में गठित समिति के सूझाव समय के साथ आ गए हो गए । रिर्पोट के अनुसार ’’जोशीमठ रेत ओर पत्थर के जमाव स्थित है, यह मुख्य चट्टान पर नहीं है। यह एक प्राचीन भूस्खलन पर स्थित है, रिर्पोट में कहा गया है कि अलकनंदा और धौलीगंगा की नदी धारा द्वारा कटाव में भूस्खलन लानें में अपनीं भूमिका निभा रहा है। समिति की सिफारिशों में शामिल था कि पेड और घास लगानें के लिए बडे पैमानें अभियान चलाया जाय ढलानों पर कृषि से बचा जाए, पक्की नाली प्रणाली का निर्माण किया जाय, ताकि गढ्ढों को बंद किया जा सके और सीवर लाइन के माध्यम से सीवेज का पानी बह सके। इसके अलावा रिसाव से बचनें के लिए पानी को जमा नहीं होंने देंना चाहिए और इसे सुरक्षित क्षेत्र में ले जानें के लिए नालियों का निर्माण किया जाना चाहिए और सभी दरारों को चूनें स्थानीय मिट्टी और रेत से भरना चाहिए, पर ऐसा नहीं किया गया’’ ।
जोशीमठ में भू-धसाव को लेकर अभी हाल में ही अक्टूवर माह 2021 में सरकार को विशेषज्ञों द्वारा एक रिर्पोट भेजी गईं । 28 पेज की इस रिर्पोट में कहा गया कि जोशीमठ की जमीन कमजोर है तथा अलग क्षेत्रों मं आई आपदा से इस क्षेत्र में व्यापक नुकसान भी हुआ है। सात फरवरी 2021 ऋषिगंगा नदी की बाढ ओर इसके बाद अक्टूबर 2021 में रिकार्ड की गईं 1900 मिलीमीटर की वर्षा के बाद यहॉ भू-धंसाव में तेजी देखनें को मिली । विशेषज्ञों के अनुसार 07 फरवरी 2021 को ऋषिगंगा की बाढ में भारी मलबा आया जिससें अलकनंदा नदी के बहाव में बदलाव के चलते जोशीमठ के निचले क्षेत्र में भूकटाव तेजी से हुआ । इसी तरह 17 से 19 अक्टूबर के बीच जोशीमठ क्षेत्र में 190 मिलीमीटर की भारी से भारी वर्षा रिकार्ड की गई ।
जोशीमठ बचाओ संघर्ष समिति के संरक्षक अतुल सती नें एनटीपीसी की तपोवन विष्णुगाड जल विद्युत परियोजना को पूरी तरह निरस्त करनें और हेंलग मारवाडी बाईपास के निर्माण को भी निरस्त करते हुए, जोशीमठ में आपदा प्रभावितों के पुनर्वास की मांग दोहराई है। तमाम जनभावनाओं को देखते हुए सरकार और नीति-नियंताओं को उचित कदम उठाना चाहिए यह कदम पूरे राज्य के लिए हो, क्योंकि दूसरे शहरों व कस्बों की स्थिति भी कोई मजबूत नहीं है, यही स्थिति नैंनीताल को लेकर भी बार-बार सामनें आ रही है, सीमित क्षेत्र होते हुए भी निर्माण कार्यों व पर्यटन के लिए लगातार निर्माण और बसावट जारी है, पिछले दिनों वहॉ स्थित हाईकोर्ट को शिफ्ट करनें मॉग की जा रही थीं,यह सही है, शहर की स्थिति को देखकर निर्णय लिया जाना चाहिए, उसे हर हाल में शिफ्ट किया जाना चाहिए ।
उधर सरकार नें भी जोशीमठ की वास्तविक स्थिति को जाननें के लिए तमाम विशेषज्ञों को आंमत्रित किया है, जिसमें वाडिया हिमालय भू विज्ञान संस्थान, आइआइटी रूडकी, जीएसआइ, आइआइआरएस, एनजीआरआइ, राष्ट्रीय जल विज्ञान, के वैज्ञानिक जॉच में जुटे हैं। जियो टेक्निकल, जियो फिजिकल, हाइड्रोलॉजी व सिस्मोग्राफिक दृष्टि से जॉच हो रही है। सरकार का कहना है, कि इन्हीं सब विशेषज्ञों की रिर्पोट को आधार मानते हुए ही कोई अंतिम निर्णय लिया जायेगा । जिसे राज्य हित में सभी शहरों, कस्बों यहॉ तक की गॉवों में भी लागू किया जाना चाहिए ।
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