समान आचार संहिता : एक बेहतर लक्ष्य के लिए, बेहतर आगाज - TOURIST SANDESH

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शनिवार, 24 सितंबर 2022

समान आचार संहिता : एक बेहतर लक्ष्य के लिए, बेहतर आगाज

 समान आचार संहिता : एक बेहतर लक्ष्य के लिए, बेहतर आगाज

देव कृष्ण थपलियाल 


इसी साल के आरम्भ में जब ’विधान सभा चुनाव 2022’ के लिए चुनाव प्रचार अभियान जोंरों पर था, तब राज्य के कार्यवाहक मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी नें एक चुनावी जन सभा में कहा था, कि राज्य में उनकी सरकार आनें पर ’समान आचार संहिता’ कानून लाया जायेगा । उस वक्त लोंगों को लगा कि उनकी यह ’घोषणा’ महज चुनावी शिगूफा है। जो चुनावी वैतरणी पार लगानें की खातिर वोटों का धु्रवीकरण करनें का प्रयास मात्र है ? इसकी सफलता पूरी तरह से संदिग्ध है ? संविधान के जानकार, और बुद्विजीवी भी ’समान आचार संहिता’ को लेकर बहुत स्पष्ट नहीं थे ? भला आजादी के इतनें सालों के बाद भी, और सुप्रीम कोर्ट की इतनीं फटकारों के बाद भी केंद्रीय सरकार नहीं जागी तो ? फिर उत्तराखण्ड जैसे छोटे से पहाडी राज्य की क्या बिसात ? संविधान सभा में भी बाबा साहेब डॉ0 बी0आर0 अम्बेडकर नें उम्मीद जतायीं थीं कि धीरे-ंधीरे ही सही, यह कानून जल्दी निर्मित

हो जायेगा ? अनुच्छेद-ं44 में स्पष्ट रूप से कहा गया है, कि देश/राज्यों की सरकारें ’समान नागरिक संहिता’ बनानें के लिए बराबर प्रयास करेगीं। माननीय उच्चत्तम न्यायालय चर्चित ’शाहबानों केस’ के अलावा, कुछ खास मौंको पर तथा कुछ समय पहले गोवा राज्य के किसी केस सहित, अनेकों बार लगभग पॉच-ंछः मर्तबा देश से कह चुका है की ’’कि आखिर किस बिना पर यह कानून निर्मित नही हो रहा है’’ ? देश में ’समान नागरिक संहिता’ वक्त की जरूरत है, इससे कई मामलों में माननीय न्यायालयों कों फैसले देंनें में सुविधा होगी ? न्यायाधीशों को फैसला देंने से पहले धर्म विशेष के हिन्दु विवाह व मुस्लिम पर्सनल कानूनों का बारीकी से अध्ययन करना पडता है, जिसमें काफी समय जाया हो जाता है। एक देश में एक ही मुद्दे पर दो अलग-ंअलग फैसले भी आये ंतो आश्चर्य नहीं होगा? कर्नाटक के एक स्कूल में लडकियों के हिजाब पहननें को लेकर हुऐ विवाद में सुप्रीम कोर्ट नें स्पष्ट किया कि कक्षा में हिजाब पहनना मौलिक अधिकार नहीं है ? जबकि राज्य कर्नाटक केवल यूनिफॉर्म को विनियमित करके अनुशासन लाना चाहता है। माननीय उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश हेंमन्त गुप्ता को इस विसंगति को फैलाई जा रही अफवाहों के संबंध में खुद ही स्पष्टीकरण देंना पडा कहा कि उन्होंनें यु0पी0 बिहार की मुस्लिम महिलाओं से बात की, लेकिन वे बिना हिजाब की थीं । और फिर कुरान में लिखी हर बात जरूरी भी तो नहीं ? धर्म, संप्रदाय, जाति क्षेत्र या परम्पराओं से ना तो देश चलता है, ना व्यक्ति ? इसीलिए कानूनों में समानता लानी ही होगी ?

वैसे भी कई कानूनों में बदलाव समय की मांग है । कुछ लोग हिन्दु विवाह अधिनियम 1955 तथा 1956 के उत्तराधिकार, दत्तक, व भरण-ंपोषण अधिनियम, व मुसलमानों के लिए शरियत 1937 की मजबूती की, दुहाई देते हैं, कि इन अधिनियमों में पूरी व्यवस्था की गई है, फिर यू0सी0सी0 क्यों ? तर्क दिया जा रहा है, कि यह राज्य के 82 फीसदी हिन्दु वोंटों को कब्जानें का यत्न है। हिन्दु वोंटों के ध्रुवीकरण, सरकार के कामकाज की नाकामियों पर पर्दा डालनें, व वर्तमान में भर्ती घोटाले से लोगों का ध्यान भटकानें की कोशिश करार दे रहे हैं, जिसे नकारा नहीं जा सकता है ? परन्तु वे हिन्दु धर्म में कभी सती प्रथा, दहेज प्रथा, बाल विवाह की परम्परा तथा इस्लाम में तीन तलाक जैसी अतार्किक व अमानवीय कुरूतियों का समर्थन कर सकते हैं ? निःसन्देह नहीं करेंगें, तथापि जिन विषयों को ’समान नागरिक संहिता’ के विचारार्थ लाया जा रहा है, उसमें धर्म, श्रृद्वा-ंविश्वास जैसा कोई तथ्य नहीं है। उत्तराखण्ड इस मामले में अग्रणी भूमिका निभायेगा, इससे राज्य का गौरव बढ़येगा ? और दशकों पीछे जो काम नहीं हो पाया उसकी शुरूआत का शौभाग्य राज्य को प्राप्त होगा । हालॉकि इस निर्णय को लेकर अभी कोई विरोध अथवा सहयोग की बातें सामनें नहीं आईं हैं, परन्तु समय के साथ ’कमेटी’ काम को विस्तार देंगी, तो निश्चित ही ’कुछ स्वर’ सुनाई देंनें लगेंगें ? जिस देश में छोटी-ंछोटी बातों को लेकर बडे-ंबडे बवाल खडे हो जाते

हों वहॉ इस बात की आशंका बराबर रहेगी कि मुद्दे को धर्म-ंसंप्रदाय, ऊॅच-ंनीच, जाति-ंधर्म के तर्क-ंवितर्कों में भटकाया जाना लगेगा ? इसीलिए कानून के व्यापक उद्देश्यों को देखते हुए, बडे मन से इसे स्वीकारा जाना चाहिए । देश के ’गोवा राज्य’ में ’समान आचार सहिता’ कानून उसकी स्थापना से लागू है, इस राज्य को देश में मिलाये जानें से पूर्व ही पूर्तगाल के समय से ही’समान आचार संहिता’ कानून लागू है, फिर क्यों न दूसरे राज्यों में, और फिर देशभर में इस कानून को अमल में लाया जाना चाहिये ? भारतीय संविधान की मूल आत्मा भी ’धर्मनिरपेक्षता’’अनेकता में एकता’ ’सर्वधर्म समभाव’ सभी नागरिको को जाति, धर्म, लिंग, भाषा, क्षेत्र, सम्प्रदाय के, भेदभाव के बिना सामाजिक, सॉस्कृतिक, राजनीतिक, आर्थिक समानता और न्याय की रही है। भाजपा शुरू से धारा 370, ’राम मंदिर’ और ’समान आचार संहिता’ को लेकर मुखर रही है, विगत सात-ंउचयआठ सालों में उसने दो लक्ष्यों जम्मू और कश्मीर में धारा 370, व अयोध्या में राम मंदिर निर्माण कार्य को भेद दिया है, अब स्वाभाविक रूप से ’समान आचार संहिता’ कानून बनवानें पर काम है। इसीलिए इस कानून की सफलता की कामना की जा सकती है। कानून को लेकर ’राजनीति’ आडे नहीं आनीं चाहिए, हालॉकि भाजपा की कार्यशैली को देखते हुऐ कुछ लोग इसे दूसरे धर्म-ंसम्प्रदाय के विरोध के रूप में देख सकते हैं, वे भ्रम और संदेह फैलानें को काम कर सकते हैं, लेकिन ‘विधि’ के जानकारों का मानना है, कि जो विषय ’समान नागरिक संहिता’ के अर्न्तगत आते हैं, वे कहीं से भी धर्म, सम्प्रदाय अथवा आस्था विश्वास को खण्डित अथवा चोट पहुॅचानें वाले नहीं हैं, कानून में इस तरह की बात करना बेवजह का बखेडा करना जैसा है। राज्य की पुनः निर्वाचित भाजपा सरकार नें अपना संकल्प दोहराते हुए, मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी नें पहली कैबिनैट बैठक में सहमति देकर इस कानून को आकर देंनें के उच्च स्तरीय समिति का गठन भी कर दी है। अब राज्य के सभी नागरिकों व बुद्विजीवियों को चाहिए कि इस कानून को जल्द से जल्द अपनें सु-हजयाव व सहमति देकर बहुप्रतिक्षित कानून का निर्माण करवाये, यह जरूरी भी है कि कानून में जितनीं जन सहभागिता होगी कानून उतना ही परिपक्व बनेंगा । दूसरे राज्य व केंद्र सरकार के लिए यह नजीर बनेगा, आजादी के सेनानियों को इससे बडा सम्मान दूसरा नहीं

होगा । राज्य सरकार नें सुप्रीम कोर्ट की रिटायर्ड जस्टिस रंजना देसाई की अध्यक्षता में एक ’हाईपावर’ कमेटी का गठन कर दिया गया है, जिसके सदस्य के रूप सेवा निवृत्त जस्टिस प्रमोद कोहली, राज्य के पूर्व मुख्य सचिव शत्रुघन सिंह, दून विश्वविद्यालय की कुलपति प्रोफेसर सुरेखा डंगवाल,

सामाजिक कार्यकर्ता मनु गौड व सदस्य सचिव अजय मिश्र अपर स्थानिक आयुक्त हैं। समिति नें अपनें कार्य को गति देते हुए इसकी पॉचवीं बैठक गुरूवार 08 सितम्बर को सर्किट हाउस ऐनेक्सी में सम्पन्न कीं । समिति को छः महीनें की समय सीमा दी गईं हैं, हालॉकि समिति की अध्यक्ष जस्टिस रंजना देसाई व दूसरे सदस्य इसकी समय सीमा को लेकर कुछ कहनें से परहेज कर रहे हैं, क्योंकि काम जितना बडा है, उतना पेचीदा भी ? ’समान आचार संहिता’ राज्य के तकरीबन सभी कानूनों और अधिनियमों का विस्तृत अध्ययन जरूरी होगा, इनमें कुछ कानून-ंअधिनियम नागरिकों के नितांत निजी जीवन से ताल्लूक रखते हैं जिसमें शादी-ंविवाह, तलाक, गोद लेना उत्तराधिकारी जैसे वर्षो पूरानें कानूनों पर विचार करना होगा, वहीं राज्य की अनेक ऐसे रीति-ंरिवाज, परम्परा, धर्म, संस्कृति व तीज-ंउचयत्योहारों और परम्पराओं की लम्बी फेहरिस्त है, जिन पर समग्र विचार करने की जरूरत होगी ? जो काफी संवेदनशील भी हैं। खासकर प्रदेश में दूसरे धर्मों, पंथों,और संम्प्रदायों के लोग भी बहुतायत में निवास करते हैं, यहॉ सदियों से एक जाति-ंउचयधर्म के लोग दूसरे जाति-ंधर्म-ंपंथ-ंसंप्रदाय के लोंगों के साथ समाजिक, आर्थिक व्यावसायिक तौर पर जुडे हैं। जैसे चार धामों के रखरखाव व पूजा-ंअनुष्ठान, धार्मिक आयोजनों के नियत किये गये हकहकूक धारियों नें ’देवस्थानम बोर्ड’ के गठन का पूरजोर विरोध किया था, जिसे बाद में मजबूरन सरकार को वापस लेंना पडा ? उसी प्रकार सीमान्त जनपद चमोली में हर बारह साल में आयोजित होंनें वाली ’नंदा राजजात’ यात्रा का आयोजन भी परम्परागत रूप से नियत की गई जाति/वर्गक्षेत्र विशेष के लोंगों द्वारा संपन्न की जाती रही है, यह एशिया की सबसे लम्बी रोमांच भरी पैदल यात्रा है, आधुनिक समय में इसकी ब-सजयती महत्ता व आकर्षण को देखते हुऐ, इसमें सुधार और परिवर्तन किये जानें की बात होंनें लगी है, जिसे कुछ लोंग सदियों पूरानी परम्परा व श्रृद्वा-ंउचयविश्वास के विपरित मानते हैं। हालॉकि इस आयोजन को संपन्न करानें में शासन-ंप्रशासन पूरा

सहयोग करता है । राज्य का अधिकॉश भाग पहाडी है, जहॉ का खान-ंपान, वेशभूषा, रहन-ंसहन रीति-ंरिवाज और परम्पराऐं सर्वथा भिन्न और वहॉ की प्राकृतिक भौगोलिक बनावट से वहॉ का जनजीवन प्रभावित रहता है। इसीलिए इस कानून का ड्राफ्ट तैयार करना आसान काम नही होगा इसके लिए समय के साथ-ंसाथ धन और संसाधनों की भी पर्याप्त जरूरत होगी ? मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी नें भी कहा कि किसी भी कानून के निर्माण में इतनीं रायसूमारी नहीं ली गई, जितनीं इस कानून के निर्माण में ली जा रही है । तकरीबन एक करोड लोगों तक पहॅुचना समिति का लक्ष्य है, इसके सोशल मीडिया के तमाम प्लेटफार्मं बेवसाइट, मेल, ट्वीटर, वट्सअप, फैसबुक व ऑन लाइन पोर्टल पर भी लोग अपनें सु-हजयाव दे सकेंगें, जन सामान्य और कुछ बुद्विजीवियों को लगता है, कि ’समान नागरिक संहिता’ का सम्बन्ध किसी दल विशेष से है, तो इसका उद्देश्य ध्रुवीकरण या तुष्टिकरण ही होगा, फिर 2024 का लोक सभा चुनाव भी निकट है ? जिससे भ्रम के पुख्ता होंनें आसार ज्यादा हैं, परन्तु ऐसा नहीं है । सरकार नें भले राज्य सभी नागरिकों से अपनें सुझाव देंनें का आग्रह किया है, परन्तु इससे पहले आम जनमानस को ’समान नागरिक संहिता’ के बारे में विभिन्न सूचना माध्यमों से अच्छे से परिचय कराया जाय ताकि वे उस पर खुल कर अपनीं राय दे सकें, तथा इस पर कोई भ्रम या संदेह कि स्थिति भी पैदा न हो सके ?

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