यमकेश्वर : वर्चस्व कायम रख पायेगी भाजपा ? - TOURIST SANDESH

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बुधवार, 9 फ़रवरी 2022

यमकेश्वर : वर्चस्व कायम रख पायेगी भाजपा ?

 यमकेश्वर : वर्चस्व कायम रख पायेगी भाजपा ?

उत्तराखण्ड की धरती को यूं ही देवभूमि नहीं कहा जाता है। यहां के कण-कण में देवत्व का वास है। गढ़वाल की धरती शिवोमय है। गढ़वाल की इसी धरती में यमकेश्वर यानि जहां बसते हैं यम के ईश्वर अर्थात इस धरती में शिव का वास है। शिवोमय यह भूमि ना सिर्फ प्राकृतिक सुन्दरता के लिए जानी जाती है बल्कि अपने देवत्व के लिए भी प्रसिद्ध  है। उत्तराखण्ड के अस्तित्व में आने के बाद से यमकेश्वर विधानसभा सीट पर 2002 से अभी तक भाजपा की महिला प्रतिनिधि का ही एकाधिकार रहा है। परन्तु बिडम्बना ही कही जायेगी कि यह क्षेत्र आज भी विकास के लिए तरस रहा है। जब प्रथम बार यहां से भाजपा की महिला विधायक चुनी गयी थी तो ऐसा लग रहा था कि अब महिला सशक्तिकरण के साथ ही क्षेत्र का तीव्रतम विकास होगा क्षेत्रीय जन के मुंह से सहज ही वाह -वाह! निकल रहा था परन्तु समय बीतता गया ऐसा क्षेत्र में कुछ भी न हो सका जिसे याद किया जा सके पिछले 20 सालों में वादों के सिवा क्षेत्र को कुछ हासिल न हो सका। निराश क्षेत्रीय जन की आवाज वाह से आह! में बदल गयी। राजनीति के इस तंत्र पर सवाल है, क्या यही है नेताओं के विकास की अवधारणा। जो जनप्रतिनिधि अपनी घोषणों को पूरा नहीं कर पाता है उसके खिलाफ क्या कार्यवाही होनी चाहिए? झूठे वादे कर आखिर कब तक जनता को मूर्ख बनाया जाता रहेगा? लोकतंत्र में जनता ही जनार्द्धन होती है। अतः उसे पूरा अधिकार है कि, वह वादा खिलाफी करने वाले नेताओं को वोट के माध्यम से अस्वीकृत कर दे।  यमकेश्वर विधानसभा आज बदलाव मांग रही है। आज क्षेत्र का आमजन पिछले 20 सालों से चली आ विकास की उस झूठी अवधारणा को तोड़ने के लिए बेताब है जिस अवधारणा ने इस क्षेत्र के विकास को अवरूद्ध कर दिया है। गंगा घाटी ऋषिकेश से लेकर दुगड्डा, आमसौड़ और सतपुली लैंसडौन के पास धोबीघाट तक फैली 90,638 मतदाताओं वाली यमकेश्वर विधानसभा उत्तराखंड राज्य गठन से आज तक भाजपा के एकाधिकार वाली सीट रही है। श्रीमति विजय बर्थ्वाल जैसी दिग्गज नेता ने वर्ष 2002 से 2017 तक इस सीट पर भाजपा के झंडे गाड़ के रखे। 2017 से अब तक यहाँ से पूर्व मुख्यमंत्री भुवन चन्द्र खंडूडी की बेटी ऋतु खंडूरी भूषण का एकाधिकार है। परन्तु इस बार उनके कोटद्वार से चुनाव लड़ने के कारण यह सीट त्रिकोणीय संर्घष में फंसती हुई दिख रही है। कांग्रेस से पूर्व विधायक शैलेन्द्र रावत, भाजपा से रेनू बिष्ट तथा उक्रांद से शान्ति प्रसाद भट्ट यहां से मुख्य मुकाबले में नजर आ रहे हैं। इसके अतिरिक्त आम आदमी पार्टी से अविरल तथा समाजवादी पार्टी से वीरेन्द्र प्रसाद भी चुनाव मैदान में हैं। पौड़ी जिले की यमकेश्वर विधानसभा राजधानी देहरादून के सब से नजदीक है बावजूद इस के यह विधानसभा पौड़ी जिला का सब से पिछड़ा क्षेत्र है। इस क्षेत्र की बागडोर अभी तक महिलाओं के हाथ में ही रही है, सरोजनी कैन्त्युरा, रेनू बिष्ट, विजया बड़थ्वाल, कृष्णा नेगी यमकेश्वर में महिला ब्लाक प्रमुख रही हैं। विधायक ऋतु खंडूरी भूषण ने इस क्षेत्र को क्या दिया यह तो यमकेश्वर विधानसभा क्षेत्र के लोग ज्यादा बेहत्तर बता सकते हैं परन्तु घट्टू घाट से हनुमन्ती वाया डाडा मंडी तक का सफर बताता है कि विकास के नाम पर लीपापोती के सिवाय कुछ नहीं हुआ है। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की जन्मभूमि भी यही पवित्र धरा है।

यमकेश्वर विधानसभा के 23 प्रतिशत ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी सड़क की सुविधा नहीं है। अनेकों सड़क सिर्फ छोटी गाड़ियों के जाने लायक है। आधी-अधूरी सड़कें जहां-तहां खुदी हुई हैं। 43 प्रतिशत गाँव में पीने का पानी नहीं है। हर घर नल, हर घर जल योजना भी किसी बड़े घोटाले की ओर संकेत करती है। यहां कही घरों में नल तो है परन्तु जल नदारत है। क्षेत्र में छोटे -छोटे क़स्बों का निर्माण तेजी से हो रहा है। पलायन का प्रतिशत दर 8 से 10 के मध्य है। करीब 3 प्रतिशत गाँव में बिजली की सुविधा नहीं है। स्कूलों की गुणवत्ता रसातल में है और क्षेत्र के लगभग हर गाँव में 20 से 24 प्रतिशत तक पलायन हो चुका है। बींद नदी पर बनने वाला पुल भी किसी चमत्कार के इंतजार में हैं। विगत 20 वर्षों में यमकेश्वर विधानसभा के 14 गाँव जनशून्य हुए हैं। इसी विधान सभा क्षेत्र में एक गांव राज्यसभा सांसद अनिल बलूनी ने भी गोद लिया था परन्तु शायद आज वे भी भूल चुके हैं। वादा कर भूल जाना शायद भारतीय राजनीति की नियति बन चुकी है।

इस क्षेत्र में महिलाओं का लगभग 47 प्रतिशत वोट है। महिला नेतृत्व होने के बावजूद यहां न महिलाओं की दशा बदली है न दिशा तय हो पायी है। कांग्रेस के प्रत्याशी शैलेंद्र सिंह रावत ने 2017 के चुनाव में तीलू रौतेली के नाम पर इस क्षेत्र में सहानुभूति बटोरने की भरसक कोशिश की मगर कोटद्वार की तरह यहां सफलता हाथ न लग सकी तथा वे चुनावों में ऋतु खंडूडी भूषण के हाथों पराजित हो गये। अनेक विद्वानों ने समय-समय पर इस क्षेत्र से ज्ञान की गंगा बहायी है परन्तु आज क्षेत्र में बन्दरों, सुअरों, भालुओं तथा जंगली जानवरों के आतंक से आमजन सहमा हुआ है। क्षेत्र के जन प्रतिनिधि हर बार वादे कर के गायब हो जाते हैं। पिछले पांच सालों में भी ऐसा ही हुआ जब क्षेत्र का जनप्रतिनिधि अधिकांश समय क्षेत्र से गायब रहा। राज्य मार्ग 109 हो या कौड़िया,किमसार से चाई दमरोड़ा मोटर मार्ग लगभग सभी मोटर मार्गां की स्थिति दयनीय बनी हुई है।  गगां भोगपुर वाला क्षेत्र, उदयपुर-ढ़ागू हो या सिलोगी बाजार से लगे गांव सभी क्षेत्र विकास की बाट जोह रहे हैं। प्रदेश की प्रगति में यमकेश्वर विधानसभा का 1 प्रतिशत से भी कम योगदान रहा है जो कृषि के क्षेत्र में है। पिछले पांच सालों से 1.5 प्रतिशत दर से यहां विकास हुआ है। नीलकंठ महादेव व यमकेश्वर महादेव की हजारों कसमें खाकर जनप्रतिनिधि देहरादून के रास्ते दिल्ली तक पहुंच चुके हैं मगर इस क्षेत्र का उद्धार न भगवान कर सका न भक्त। मूलभूत सुविधाओं के अभाव में निर्वस्त्र खड़ा यह क्षेत्र आज भी श्रीकृष्ण की राह देख रहा है। अनेकों शराब के ठेके विकास का प्रमाण है और खिसकते पहाड़, लुढ़कती जवानी, बहता पानी विकास का परिणाम है। स्थानीय जनों के हक-हकूक से दूर होता जल-जंगल और जमीन शायद यहां की नियति बन चुकी है। यमकेश्वर विधानसभा का वोट प्रतिशत बढ़ता देख लोग खुश जरुर है मगर इस बात को छुपा रहे हैं कि, दुगड्डा, ऋषिकेश से लगे क्षेत्र में वोट  प्रतिशत बढ़ रहा है क्यों कि अन्य क्षेत्रों से लोग पलायन कर के यहां आ रहे हैं। पौड़ी जिले के यमकेश्वर विधानसभा क्षेत्र में गुमखाल, कांडाखाल, कांडी, यमकेश्वर, सिलोगी, लक्ष्मणझूला, मोहनचट्टी जैसे आर्थिक गति के बाजार हैं। मगर दुकानदारी तक ही सीमित इन बाजारों में शहरों का ही सामान मिलता है क्षेत्र के लद्यु एंव कुटीर उद्योग लगभग दम तोड़ चुके हैं परन्तु आज राजनीति की इस आपाधापी में किसे फिकर है। राजस्व अर्जन में शराब के सिवाय कुछ नहीं मिल पा रहा है। पाली, लंगुरी, सीला, भनकोट ,बमोली, देवीखेत,  अमोला, किमसार, जमरगड्ड़ी, कुमरेल, मटियाली, कुरना, कोट, सेकलावाड़ी, मज्याडी, गुम, प्रंडा, सार, तिमली, डाबर चोपड़ा, ठाँगर, कांडा, सीला, धारी, धनसी आदि गांवों की बहुत दुर्दशा है। इन गांवों में मूलभूत सुविधाओं का बहुत अभाव है। क्षेत्रीय लोगों को स्वयं ही सोचना होगा कि कैसे इस क्षेत्र का विकास सम्भव होगा, कौनसा जनप्रतिनिधि क्षेत्र के विकास के प्रति संकल्पबद्ध है। भाजपा की महिला जनप्रतिनिधि ही अब तक यहां से लगातार चुनावों में सफल होकर विधानसभा पहुंचती रही हैं। इस बार भी भाजपा ने रेनू बिष्ट को टिकट देकर फिर से महिला पर ही दांव लगाया है। यह देखना दिलचस्प होगा कि, क्या इस बार इस सीट पर भाजपा अपना वर्चस्व कायम रख पायेगी?


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