रंग लायेगा बहुरानी के लिए ससुर का त्याग या बचा पायेंगे महन्त अपनी प्रतिष्ठा - TOURIST SANDESH

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सोमवार, 7 फ़रवरी 2022

रंग लायेगा बहुरानी के लिए ससुर का त्याग या बचा पायेंगे महन्त अपनी प्रतिष्ठा

 कालौंडांडा का चुनावी संग्राम

रंग लायेगा बहुरानी के लिए ससुर का त्याग या बचा पायेंगे महन्त अपनी प्रतिष्ठा 


किसी शायर ने खूब ही कहा है कि -

सियासत को लहु पीने की आदत है,
वर्ना मेरे शहर में सब खैरियत है।

83,428 मतदाता तथा 134 पोलिंग बूथ वाली लैन्सडाउन विधानसभा अपने प्राकृतिक सौंदर्य के लिए विश्व प्रसिद्ध एक पर्यटक स्थल ही नहीं है बल्कि सदैव देश की रक्षा के लिए समर्पित गढ़वाल राइफल्स का मुख्यालय भी है । प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर तथा गढ़वाल राइफल्स का मुख्यालय होने के कारण इस सीट का अपना विशेष महत्व है। कालौंडांडा यानि लैन्सीडौन में इस बार गजब का संयोग बन रहा है। यहां दो क्षत्रपों की प्रतिष्ठा दांव पर लगी है। एक ओर 2002 से 2012 तक दस साल तक क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करने वाले डॉ हरक सिंह रावत की बहु अनुकृति गुसाईं रावत ने कांग्रेस के टिकट पर हुंकार भरी है तो दूसरी ओर निरन्तर दस साल से क्षेत्र का प्रतिनिधित्व कर रहे भाजपा के वर्तमान विधायक महन्त दलीप रावत अपनी प्रतिष्ठा को बचाने के लिए मैदान में डटे हुए हैं। जहाँ एक ओर डॉ हरक सिंह रावत दलों के दलदल में छलबली नारायण बनकर उसी जनता से छल करते रहे जिस आमजन ने उन्हें सिर आंखों पर बिठाया और बार-बार जिताकर विधानसभा में भेजा।  भले ही हरक सिंह रावत इस समय स्वयं चुनाव मैदान में नहीं हैं परंतु इस समय उनकी पुत्रवधु ग्लैमर की दुनिया में धूम मचाने वाली अनुकृति गुसाईं रावत कालौंडांडा से अपने ससुर के दम पर चुनाव मैदान में ताल ठोक रही हैं। दूसरी ओर 2012 से अब  तक दस साल से लगातार विधायक की कुर्सी पर जमे हुए महन्त दलीप रावत भी क्षेत्र के आमजन से न्याय करने में पूर्णरूप से विफल रहे हैं, अपनी सुविधाओं के खातिर वे चुनाव के समय छोड़कर अधिकतर समय लैन्सीडौन के बजाय कोटद्वार में ही धुनी रमाये हुए हैं। दोनों ही नेता पिछले 20 सालों में लैन्सडाउन में कोई भी ऐसा यादगार ऐतिहासिक कार्य नहीं करा पाये हैं जिसके लिए उन्हें याद रखा जा सके। जहाँ तक कांग्रेस प्रत्याशी अनुकृति गुसाईं का सवाल है तो वह ग्लैमरस की दुनिया में धूम मचाने वाली सियासत में एक अनुभवहीन युवती हैं। उसने राजनीति में आने की इच्छा जाहिर की तो उनके ससुर ने सियासत की छतरी तान दी और टिकट के लिए भाजपा से कांग्रेस तक न सिर्फ दौड़ लगायी बल्कि 30 साल से भी अधिक का अपना राजनैतिक करियर भी दांव पर लगा दिया। अपनी बहुरानी के लिए इस प्रकार का त्याग का शायद यह पहला मामला है। वैसे तो सियासत में त्याग जैसे शब्दों की कोई अहमियत नहीं होती है परन्तु यदाकदा कभी-कभी कुछ देखने को भी मिल ही जाता है। यदि देखा जाए तो अनुकृति गुसाईं रावत युवा सोच की आधुनिक महिला हैं तथा यदि उन्हें सही मार्गदर्शन प्राप्त हुआ तो बदलाव करने में भी सक्षम हैं परन्तु उन्हें युवा सोच के जोश, जनून के साथ उचित मार्गदर्शन की भी आवश्यकता है तभी बदलाव सम्भव है। दूसरी ओर दलीप रावत सिर्फ अपनी मान प्रतिष्ठा को बचाने के लिए चुनाव मैदान हैं। उनके पास ना तो विजन है न ही कुछ कर दिखाने के लिए मिशन। यदि वास्तव में उनके पास विजन और मिशन होता तो वे पिछले दस सालों में प्रस्तुत कर चुके होते। परन्तु यह भी नहीं भूलना चाहिए कि आमदाता का एकवर्ग आज भी अनके समर्थन में है। जनता जनार्दन बहुमत के साथ जीत का ताज किसके सिर बांधेगी इसका सही-सही पता तो आगामी दस मार्च को मतगणना के बाद ही चल पायेगा परन्तु 14 फरवरी को होने वाले विधानसभा चुनाव में अभी तो सभी प्रत्याशियों के जीत के अपने-अपने दावे हैं। इन दो प्रत्याशियों के अतिरिक्त भी इस विधानसभा में पांच अन्य प्रत्याशी भी चुनाव मैदान में डटे हुए हैं। उत्तराखंड रक्षा मोर्चा से रमेश चन्द्र सिंह, उत्तराखण्ड क्रांति दल से आनंद प्रसाद जुयाल, आम आदमी पार्टी से नरेन्द्र गिरी, निर्दलीय नरेन्द्र रावत तथा ममता देवी भी लैन्सडाउन विधानसभा से दमखम दिखा रहे हैं। चुनावी सरगर्मी की वर्तमान परिस्थितियों को देखते हुए ऐसे लगता है कि यह विधानसभा चुनाव का संग्राम भी कांग्रेस और भाजपा के बीच सिमटता जा रहा है।

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