चुनावी बेला पर बजते ढपोर शंख - TOURIST SANDESH

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रविवार, 28 नवंबर 2021

चुनावी बेला पर बजते ढपोर शंख

 पव्वा दर्शन

चुनावी बेला पर बजते ढपोर शंख

जैसे- जैसे चुनावी बेला निकट आ रही है वैसे -वैसे ढपोर शंखों की आवाज सुनायी देने लगी. हो भी क्यों न जनाब अब चुनाव ढपोर शखों के लिए ही तो रहे गये हैं। यदि चुनाव जीतने हैं तो धरातल पर कुछ काम हो या न हो ढपोर शंखीं बने रहें। आवाज तो बनी रहेगी और संभावना भी बन ही सकती है. बड़ी बड़ी ढींगे हांकते रहें फिर देखो कमाल ही कमाल है।  अब देखो न नेताजी आमजन के लोक- परलोक तक सुधारने की जिम्मेदारी लेते हुए कह रहें हैं, आप हमें वोट दो हम आप का लोक-परलोक सुधार देगें, कैसे सुधारेगें  पता नहीं परन्तु ढपोर शंख तो है ना,  लोक-परलोक तो सुधर ही जायेगा जब नेताजी को वोट जायेगा। वैसे ढपोर शंख पर एक दन्त कथा भी प्रचलित है -.

एक समय एक दरिद्र ब्राह्मण भिक्षा वृत्ति से अपना और अपने परिवार का भरण पोषण किया करता था। दारिद्रता  दुःख से परेशान ब्राह्मण को किसी ने सुझाव दिया की आप समुद्र देवता के पास जाएँ समुद्र रत्नों की खान हैं, समुद्र देवता कुछ रत्नादि आप को दे देंगे जिससे आप की दरिद्रता दूर हो जाएगी. यह सुन कर ब्राह्मण देवता समुद्र की ओर चल पड़े . बहुत दिन तक चलते हुए रात्रि विश्राम करते हुए ब्राह्मण समुद्र के पास पहुंचे।

समुद्र देवता की पूजा करने के बाद ब्राह्मण ने समुद्र से अपने भरण पोषण के लिए धन, रत्नादि की याचना की. समुद्र ने ब्राह्मण को दैनिक जीवन यापन के लिए इतना धन देने का विचार किया की उसका भरण पोषण हो सके और भोगों में आसक्ति भी न हो। ऐसा सोचकर समुद्र ने ब्राह्मण को शंखी ( छोटा शंख ) देते हुए कहा कि ये शंखी ले जाओ तथा पूजनोपरांत शंखी बजाने के बाद पांच रुपये की याचना करोगे तो ये तुम्हे पांच रुपये दे देगी. ऐसा तुम प्रतिदिन कर सकते हो. इससे तुम्हारे परिवार का भरण पोषण आसानी से हो जायेगा।

ब्राह्मण, समुद्र देवता को प्रणाम कर बड़े हर्ष के साथ विदा हुआ. दिन भर की यात्रा की थकान के बाद ब्राह्मण ने रात्रि में एक बनिया के यहाँ विश्राम किया. ब्राह्मण को उत्सुकता थी कि, जो समुद्र ने कहा है यह शंखी सही है या नहीं, इसका परीक्षण किया जाये. ब्राह्मण ने संध्या पूजन के लिए बनिया से पुष्प, जल, आसान आदि माँगा।

अब ब्राह्मण ने पूजन करने के बाद शंखी से पांच रुपये की याचना की, शंखी ने पांच रुपये दे दिए। यह सब देख कर बनिए का लालच जाग गया, वह ब्राह्मण के जीविकोपार्जन वाली शंखी को धन बर्धक यन्त्र समाज बैठा. मन में विचार किया। कैसे भी मैं इस शंखी को ब्राह्मण के साथ छल-कपट कर के ले लेता हूँ. फिर दिन भर खूब पूजा करूँगा और शंख बजा बजा कर नगर का सर्वश्रेष्ठ नागरिक बन जाऊंगा।

फिर बनिया अपने पुरोहित के पास गया और उनसे अपने लिए एक शंखी ले आया. ब्राह्मण के सो जाने के बाद उसने शंखी बदल लिया। अब ब्राह्मण अपने घर आकर पूजा करने के बाद जब शंखी से पांच रुपये मांगता है, तो शंखी बनिए द्वारा बदल दिए जाने के कारण सही नहीं थी, इस कारण उसे धन प्राप्ति नहीं  होती है। ब्राह्मण समुद्र देवता पर क्रोधित हुआ और समुद्र के पास उलाहना ले के पहुंचा की आपने मुझे झूट बोल कर सिर्फ एक बार पांच रुपये देने वाले शंखी दी है। समुद्र ने दुखी ब्राह्मण से उसके यात्रा का वृत्तान्त सुना। जब उसने कहा की मैं रास्ते में एक बनिए के यहाँ रूका था, तो समुद्र देवता समझ गए की बनिए ने ब्राह्मण के साथ छल किया है. समुद्र ने अब ब्राह्मण को बड़ा शंख दिया और समझाते हुए कहा की रात्रि विश्राम उसी बनिए के घर पर करना। लालच के वशीभूत बनिए ने ब्राह्मण का इस बार और अधिक स्वागत सत्कार किया, उसे लगा की ब्राह्मण को या तो हमारे छल का पता नहीं है या इनके पूजन में वह शक्ति है कि, यह किसी भी शंखी से पांच रुपये प्राप्त कर सकते हैं, नहीं तो ये हमारे घर  पर क्यों ठहरते। संध्या पूजन के बाद जब ब्राह्मण ने शंख से पांच रुपये मांगे , तो शंख ने कहा कि पांच क्यों दस ले लो फिर जब दस रुपये माँगा तो शंख ने कहा की दस क्यों बीस ले लो. ऐसे ही दुगुना होते जब राशि ज्यादा हो गयी तो ब्राह्मण ने कहा की हम घर पर ही रूपये ले लेंगे।

अब बनिया और चकित हुआ यह शंख तो उस शंखी से भी ज्यादा कीमती है. उसने फिर चालाकी से बिना देरी किये शंख बदल दिया. अब ब्राह्मण के पास असली शंखी आ गयी थी और बनिए के पास बड़ा ढपोर शंख. बनिया लालच के वशीभूत होकर अपनी पत्नी से बोला कि, आज से मैं भी सांध्य पूजन करूँगा। बनिया जब पूजा करने के बाद शंख से पैसे की याचना करता है और शंख उसे दुगुना देने की लालच देते जाता, धन की राशि कुछ ज्यादा हो गयी तो बनिया गुस्से में बोला मुझे पैसे दे दो अब मुझे और नहीं चाहिए। फिर शंख ने संस्कृत में कुछ इस प्रकार कहा ’-

“पर हस्ते गदा शंखी पञ्चरूप्यकदयनी, अहम ढपोर शंखोस्मि बदामी न ददामि च “

पांच रुपये देने वाली शंखी दूसरे के हाथ में चली गयी है , मैं ढपोर शंख हूँ सिर्फ बोलूंगा दूंगा कुछ नहीं.........भारत की पुण्य पवित्र धरती पर जन्म लेने वाले अनेक कलयुगी नेता मेरे ही रूप हैं जो समय-समय जन्म धर कर कई स्वरूपों में प्रकट होते हैं और अपनी ढपोर शंखी से भारत के आमजनमानस को मोहित कर सत्ता पर काबिज हो जाते हैं, यही मेरा असली रूप है। चुनाव नजदीक आते ही ये ढपोर शंख विभिन्न तरह के परपंच रचते स्वांग करते हुए नजर आ जाते हैं। वर्त्तमान राजनीति में स्वांग का बड़ा बारी महत्व है, बिन स्वांग के चुनाव की नैया पार लगाना मुश्किल ही नहीं बल्कि नामुकिन है। ढपोर शंख की शंखबाजी से सावधान रहें और मानवता को जिन्दा रखते हुए एक नई स्रष्टि की रचना के लिए तैयार रहें। आप का चुनाव श्रेष्ठता के लिए हो ना कि ढपोर शंख के लिए, यही लोकतन्त्र का तकाजा है।


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