अबकी बार छमणु बोड़ा की सरकार - TOURIST SANDESH

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शनिवार, 27 नवंबर 2021

अबकी बार छमणु बोड़ा की सरकार

  पव्वा दर्शन


अबकी बार छमणु बोड़ा की सरकार




क्या गांव, क्या शहर खच्चरों की लीद से रास्ते पट चुके हैं। खच्चरों के गले में बंधी घन्टी की खनखनाहट से चुनावों की आहट सुनायी देने लगी है। वैसे भारतीय लोकतन्त्र में चुनाव भी किसी त्यौहार से कम नहीं होते हैं। लोकतन्त्र के त्यौहार में लगने वाले इस मेले में भिन्न-भिन्न राजनैतिक दल अपनी-अपनी राजनीति की दुकान सजाकर बड़ी चतुरायी से लोकहित की मीठी-मीठी बातें बड़े ही लोकलुभावन तरीके से करते हुए जनता के बीच अपना सामान येन-केन-प्रकारेण खपाने की जुगत भिड़ाते हैं। लोकतन्त्र में लोकजन्त्र का यह खेल वर्षों से वर्षों तक जारी है। जो बिका वो महान, जो रह गया वो निढाल हो कर वीरान, सोच यही काश! मैं भी बिक पाता तो सत्ता का स्वाद तो चख ही लेता। सत्ता पाने और सत्ता के शिखर तक पहुंचने के लिए कभी-कभी ऐसे बेसुंरे रागों की बरसात होने लगती है कि, आमजन स्वयं भी असमंजस में पड़ जाता है कि वास्तव में सही क्या है और क्या नहीं। सही और गलत की इसी उधेड़बुन में कही बार देश का आम मतदाता सुस्वर को बसुरा तथा बेसुरे का शानदार स्वर वाला मानने लगता है। ऐसे समय में सुसभ्य लोग चुपचाप तमाशा देखने में ही भलाई समझते हैं। तभी तो गोस्वामी तुलसी दास जी कहते हैं-

पावस ऋतु के समय धरे कोकिलन मौन, अब तो दादुर बोलईं हमें पूछे कौन। 

परन्तु फिर भी बेसुरों का राग सुस्वरों पर भारी पड़ने लगता है। यही तो भारतीय राजनीति का कमाल है। जहां कुछ भी सम्भव हो सकता है। देवभूमि में अबके होने वाले विधानसभा चुनाव में छमणु बोड़ा भी सरकार का मुखिया बनने के लिए ताल ठोक रहे हैं। जुगत भिड़ा रहे हैं, दिन-रात एक किये हुए हैं। छमणु बोड़ा का कहना है कि, न शक्ल, न सूरत, न हंसी, न कीरत वाले भी जब सरकार के मुखिया बन सकते हैं तो में क्यों नहीं। अपने हॉकरों के माध्यम से वे गांव-गांव, शहर-शहर प्रचार करवा रहें हैं, अबकी बार, छमणु बोड़ा की सरकार............

वैसे तो छमणु बोड़ा राजनीति के धुरन्धरों में माने जाते हैं परन्तु मुखिया बनने से हर बार चूक ही जाते हैं। अब क्या करें, जब छमणु बोड़ा का भाग्य ही ऐनवक्त पर पलट जाता है। जब सम्भावना बनने ही वाली होती हैं तो कोई छींक देता हैं या बिल्ली रास्ता काट देती है जो भी हो परन्तु छमणु बोड़ा की सरकार का संयोग नहीं बन पा रहा है। फिर भी छमणु बोड़ा निरन्तर प्रयासरत है उन्हें लगता है कि देर से ही सही लेकिन भाग्य के दरवाजे खुलेगें और सिर पर ताज सजेगा। मेरी मेहनत और प्रभु की रहमत एक ना दिन रंग लायेगी सिर ताज सजेगा तथा खुशहाली आयेगी इसी आस में छमणु बोड़ा सतत् प्रयत्नशील है। इस बार की इगास-बग्वाल भी कमाल रही, जीवन में पहली बार इगास-बग्वाल का अहसास हुआ, हो भी क्यों न चुनाव जो नजदीक हैं। छमणु बोड़ा भी इगास-बग्वाल पर खूब झूमे। अबके गांव की सुनसान रहने वाली गलियों में भी खूब रौनक रही, खच्चरों की चौधराहट से गांव वालों की वीरानियां दूर होती नजर आ रही हैं भले ही चुनाव के बाद सारे गधे ऐसे गायब हो जाते हैं जैसे गधे के सिर से सींग। फिर भी चुनाव आते-आते आश तो बंध ही जाती है। 

वैसे छमणु बोड़ा अपनी आपबीति सुनाते हुए कहते हैं ‘‘ कू डुन्गु नि पूजि मैन, कै डांडा नी गौं मी...............’’ कौनसा पत्थर, कौन सा पहाड़ ऐसा है जिसकी मैंने पूजा नहीं की........। अर्थात् सत्ता के शिखर तक पहुंचने के लिए मैंने हर जतन किया परन्तु फिर भी सत्ता की अन्तिम सीढ़ी में फिसल ही जाता हूं, अबकी उम्मीद बंधी है शायद ....परिणाम जो भी हो परन्तु छमणु बोड़ा साम-दम्भ-अर्थ-दण्ड-भेद पंचस नीति से सत्ता का भेदन कर शिखर हासिल करना चहाते हैं। पण्डितजी ने भी ग्रह दशा अनुकूल बतायी है, पाठ-पूजा जारी है, जुगत-जन्त की सेंटिग-गेंटिग चल रही है। छमणु बोड़ा को जनसमर्थन और जन-आशीर्वाद की आवश्यकता है तो दे रहे हैं न आप छमणु बोड़ा को जीत का आशीर्वाद..... तो आओ हम सब  मिलकर बोलें अबकी बार छमणु बोड़ा की सरकार । 


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