राष्ट्रीय शिक्षा नीति २०२० - एक परिचय - TOURIST SANDESH

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सोमवार, 5 अक्तूबर 2020

राष्ट्रीय शिक्षा नीति २०२० - एक परिचय

 राष्ट्रीय शिक्षा नीति २०२० - एक परिचय


डॉ० नन्दकिशोर ढौंडियाल ‘अरुण’

ज्ञान, शिक्षा और विद्या सामान्य कथोपकथन में भले ही समानार्थी लगते हैं लेकिन इन पर गहन विचार करने पर इन तीनों शब्दों के अर्थ भिन्न-भिन्न हैं। ज्ञान सामान्यतः सभी प्राणियों में होता है जो कि जीवधारियों के पंच प्राकृतिक स्थितियों में विद्यमान रहता है। रूप, रस, गन्ध, शब्द और स्पर्श ऐसे ही पंचेन्द्रियों से निस्रत गुण है जो जीवधारियों के सहज ज्ञान के अन्तर्गत आते हैं। इस ज्ञान को न तो कोई किसी को दे सकता और नहीं किसी से ले सकता है। शिक्षा सीखी जाती है, जो हमारे संस्कारों की सम्पत्ति है। हम अपने माता-पिता और समाज के अन्य जनों के आहार-व्यवहार से जो सीखते है वही शिक्षा कहलाती है। इस शिक्षा को मानव जीवन भर ग्रहण करता है जो उसे  समाज और संस्कार देते हैं। 

विद्या का सम्बन्ध इस अर्जित और उपार्जित ज्ञान से है जो आजीविका और समाज के विकास के लिए ग्रहण की जाती है। वर्तमान की शिक्षा विद्यालयों में दी जा रही शिक्षा ही विद्या है जिसे विद्या प्रदात्ता शिक्षक और ग्रहण करने वाला विद्यार्थी पारस्परिक विचार और क्रिया-प्रक्रिया के विनिमय से प्राप्त करते हैं। विद्या जानने को कहते हैं। इसीलिए इस विद्या (विद्$या) जो जानी जाती है कहलाती है।

आज की शिक्षा आजीविका प्रदान करने वाली शिक्षा हो गयी है। इसलिए विश्व स्तर पर देश, काल और परिस्थितियों में इनका रूप भिन्न-भिन्न हो गया। यदि हम शिक्षा के संदर्भ में इस देश का इतिहास देखने का प्रयास करें तो पूर्व में स्कूली शिक्षा को विद्या कहा जाता था। इसके साक्ष्य हमारे विश्वविद्यालय विद्यापीठ और विद्यालय के नामकरण देते हैं इस सम्बन्ध में महाकवि कालिदास ने स्पष्ट किया है कि विद्या अभ्यास से ग्रहण की जाती है। प्राचीन भारत में लोक शिक्षा भी विद्या ही कहलाती थी जैसे मोहिनी विद्या, ज्योतिष विद्या, चौर्य विद्या, धनुष विद्या आदि विद्याओ को विद्या ही कहा जाता था। भारत की मंत्र, तन्त्र और यन्त्र विद्या जग चर्चित थी। वर्तमान का व्यक्ति इसी विद्या को शिक्षा कहता है। जो कि एक शाब्दिक ही नहीं अर्थ सम्बन्धी त्रुटि है।

अंग्रेजों के शासन काल में लार्ड मैकाले ने भारत में जिस शिक्षा पद्धति की नीव डाली थी। भारत के स्वतन्त्र होने के पश्चात वह आज भी जीवित है। यद्यपि भारतीय शिक्षाविदों ने समय-समय पर इसके सुधार में अनेक प्रयत्न किये लेकिन ये इस शिक्षा पद्धति में भारतीयता की आत्मा न डाल सके जिसकी स्थापना मैकाले ने की थी। वर्तमान में हम जिस शिक्षा पद्धति से आपका परिचय कराने चाहते है इसे राष्ट्रीय शिक्षा नीति-२०२० यद्यपि भारतीयों के द्वारा भारतीयों के लिए उद्देश्य से बनाई गयी राष्ट्रीय शिक्षा नीति है। परन्तु इसके धरातल में भी मैकाले की इसी शिक्षा नीति के दर्शन होते हैं। जिससे मुक्ति पाने के लिए यहाँ का विचारक बार-बार प्रयत्न कर रहा है। जैसा कि इस शिक्षा को कई सौ पृष्ठों में अंकित कर राष्ट्र की शिक्षा नीति को इन शिक्षण सस्थाओ शिक्षकों और छात्र-छात्राओ को सौपा गया है लेकिन इसमें उल्लेखित शिक्षा नीतियों का क्रियान्वयन कब तक होगा उसके लिए उल्लेखित बिन्दुओ के आधार पर इसके संसाधन कब तक विद्यालयों को सौपे जायेंगे स्पष्ट नही है।

ये उल्लेखित बिन्दु कौन-कौन से है इन पर राष्ट्रीय शिक्षा नीति-२०२० नामक संक्षिप्त १०८ पृष्ठियाँ पुस्तिका में दिये गये है। अधोलिखित है। -


परिचय

भाग - १  स्कूल शिक्षा 

१- प्रारंभिक बाल्यावस्था देखभाल और शिक्षा :- सीखने की नींव।

२- बुनियादी साक्षरता एवं संख्या-ज्ञान :- सीखने के लिए एक तात्कालिक आवश्यकता और पूर्वशर्त।

३- ड्रापआउट बच्चों की संख्या कम करना और सभी स्तरों पर शिक्षा की सार्वभौमिक पहुंच सुनिश्चित करना।

४- स्कूलों में पाठ्यक्रम और शिक्षण-शास्त्र :- अधिगम समग्र, एकीकृत, आनंददायी और रूचिकर होना चाहिए।

५- शिक्षण।

६- समतामूलक और समावेशी शिक्षा :- सभी के लिए अधिगम।

७- स्कूल कॉम्प्लेक्स/क्लस्टर के माध्यम से कुशल संसाधन और प्रभावी गवर्नेंस।

८- स्कूली शिक्षा के लिए मानक निर्धारण और प्रत्यायन।


भाग २  उच्चतर शिक्षा

९- गुणवत्तापूर्ण विश्वविद्यालय एवं महाविद्यालय :- भारतीय उच्चतर शिक्षा व्यवस्था हेतु एक नया और भविष्योन्मुखी दृष्टिकोण।

१०- संस्थागत पुनर्गठन और समेकन।

११- समग्र और बहु-विषयक शिक्षा की ओर।

१२- सीखने के लिए अनुकूलतम वातावरण व छात्रों को सहयोग।

१३- प्रेरित, सक्रिय और सक्षम संकाय।

१४- उच्चतर शिक्षा में समता और समावेश।

१५- शिक्षक शिक्षा।

१६- व्यावसायिक शिक्षा का नवीन आकल्पन।

१७- नवीन राष्ट्रीय अनुसंधान फाउण्डेशन (एनआरएफ) के माध्यम से सभी क्षेत्रों में गुणवत्तायुक्त अकादमिक अनुसंधान को उत्प्रेरित करना।

१८- उच्चतर शिक्षा की नियामक प्रणाली में आमूल-चूल परिवर्तन।

१९- उच्चतर शिक्षा संस्थानों के लिए प्रभावी शासन और नेतृत्व।


भाग- ३  अन्य केंद्रीय विचारणीय मुद्दे

२०- व्यावसायिक शिक्षा।

२१- प्रौढ़ शिक्षा और जीवनपर्यंत सीखना।

२२- भारतीय भाषाओ, कला और संस्कृति का संवर्धन।

२३- प्रौद्योगिकी का उपयोग एवं एकीकरण।

२४- ऑनलाइन और डिजिटल शिक्षा :- प्रौद्योगिकी का न्यायसम्मत उपयोग सुनिश्चित करना।


भाग - ४  क्रियान्वयन की रणनीति

२५- केंद्रीय शिक्षा सलाहकार बोर्ड को सशक्तीकरण।

२६- वित्त पोषण :- सभी के लिए वहनीय एवं गुणवत्तापूर्ण शिक्षा।

२७- कार्यान्वयन।

मानव संसाधन विकास मंत्रालय अब शिक्षा मंत्रालय भारत सरकार के द्वारा निर्देशित उपरोक्त बिन्दुओं के अवलोकन से स्पष्ट होता है कि विद्वान शिक्षाविदों और शिक्षा नीति के निर्धारकों द्वारा नई पीढ़ी के नौनिहालों के भविष्य को एक नई दिशा देने के लिए काफी चिन्तन मनन और अध्ययन के उपरान्त ही इस शिक्षा नीति को क्रियान्वयन के लिए उन संसाधनों को जुटाने का लगातार प्रयास किये जायेंगे जो इस शिक्षा नीति को अमलीजामा पहचाने में सक्षम होंगे।

इतना सब कुछ होने पर भी इसमें जो कुछ नये बिन्दु जोड़े जाने अपेक्षित हैं वे है माँ की गोदी मे खेलते हुए शिशु से लेकर बालक बनने तक की संस्कारी शिक्षा, अनिवार्य कृषि शिक्षा, अनिवार्य सैनिक शिक्षा, अनिवार्य दैनिक जीवन में कार्य में आने वाली तकनीकि शिक्षा और स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता की शिक्षा। यदि इन शिक्षाओ को बालक-बालिका को जूनियर तक की शिक्षा से ही जोड़ा जाये तो एक इस देश के विद्यार्थी देश के हितार्थ सामाजिक और सार्वजनिक क्षेत्र में आत्मनिर्भर बन सकेंगे। लेकिन भय है कि कहीं यह न हो जाये कि साधन सम्पन्न शिक्षण संस्थाओ के स्वामी इस शिक्षा नीति की परिभाषा अपने-अपने स्तर से अलग-अलग करने लगे और इससे वे शिक्षण संस्थाऐ जो साधनहीन हैं अपने छात्र-छात्राओ को वे साधन उपलब्ध न करा सके जिनकी इस शिक्षा नीति में अपेक्षा की गयी है।

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