रचना बलूनी ‘माही’ |
अल्फाज़ माँ की ममता के !
रूप निराला अद्भुत माँ का,दर्द बिछोना ओढे रहती
करूण हृदय और त्याग भाव से
हर पीड़ा आँख मूंद सह जाती
लाख छुपाती परेशानियां
लेकिन गमों के इस्तेहार तक ना लगाती !
तलाश में महफूज आशियाने की, बन परिंदा उड़ती रहती,
गर्दिशो की धूप में छाया जैंसी, शीत लहर में चादर जैंसी
छाये जब घनघोर घटा, गमों की बदली,
माँ का आंचल तब बन जाये छतरी !
जलता तपिश में दुनिया की,भोला-भाला चेहरा माँ का
सलामती में अपनों की, दुआयें रब से मांगती रहती
रिश्तों को अपनी वेंणी सी एक साथ गूंथे रखती!
लफ़्ज़ों में भी बयां न हो पाती मुझसे,
सर्वस्व समर्पित माँ की कहानी !
कहाँ अदब होगी मेरी
कह सकूं जो माँ को जबानी...!
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