कठिन डगर है इस पनघट की - TOURIST SANDESH

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शनिवार, 5 फ़रवरी 2022

कठिन डगर है इस पनघट की

 कण्वभूमि का संग्राम

कठिन डगर है इस पनघट की

राजनीति की बिछात बिछ चुकी है, चौपड़ सज चुकी, दांव खलने के लिए मोहरे तैयार खड़े हैं, सह और मात के इस खेल में किस के सिर सजेगा सेहरा तथा कौन मनायेगा हार का मातम, यह तो आगामी 10 मार्च को ही निर्धारित हो पायेगा परन्तु अभी तो जीत इधर भी है जीत उधर भी है, आंखों में सतरंगी सपने इधर भी हैं तो उधर भी, बैचेनी का आलम इधर भी है तो बैचेनियां उधर भी घर कर रही हैं । धड़कने बढ़ी हुई हैं, मुरझाये हुए चेहरे स्वयं को खिलने के इन्तजार में तैयार हैं । अन्तर्मन में उठे तूफान को शान्त दिखाने की नाकाम कोशिशें हर तरफ जारी हैं । देवभूमि के नाम से सम्बोधित होने वाले इस प्रदेश में उठा यह सियासी तूफान गवाही दे रहा कि, उत्तराखंड में विधानसभा चुनाव चल रहे हैं । विधानसभा चुनावों में हर क्षेत्र का अपना महत्व है । महत्व तो इस कण्वभूमि का भी है परन्तु अपने पिछड़ेपन के कारण हम अपनी स्वयं की पहचान ही भूल चुके हैं । कभी इसी भूमि पर विश्व का प्रथम विश्वविद्यालय स्थापित था परन्तु दुर्भाग्य ही माना जायेगा कि, आज स्वयं को न पहचान पाने के कारण हमने स्वयं ही अपने अतीत की पहचान खो दी है तथा आज हम दीन हीन दशा को प्राप्त हो चुके हैं । यह भी सियासत के एक सियाह पक्ष को ही प्रदर्शित करता है कि, कण्वभूमि के स्वर्णिम इतिहास को हमने दफन कर दिया है । उत्तराखण्ड बनने के बाद आशा की किरण जगी थी परन्तु पिछले 21 सालों में राज्य की सियासत में जिस प्रकार से उठापटक देखी गयी है उसके कारण आमजन में निराशा का भाव ही जाग्रत हुआ है । कण्वभूमि अपने खोये हुए वैभव को पुनः प्राप्त कर पायेगी या नहीं यह तो भविष्य के गर्भ में है परन्तु याद रहे जिस व्यक्ति, समाज, राष्ट्र को अपने इतिहास का ज्ञान नहीं होता है, उसकी कोई पहचान नहीं होती है । क्यों कि हमने स्वयं का इतिहास भूला दिया है इसलिए हमारी कोई पहचान नहीं है । यही हमारा दुर्भाग्य है। बात चुनावों से निकली है तो निश्चित ही चुनावों तक जायेगी । कुछ समय बाद तो ये चुनावी शोर थम जायेगा परन्तु अपने पदचिह्न छोड़ जायेगा । कण्वभूमि में होने वाले इस चुनावी समर में एकबार फिर से दिलचस्प मुकाबला होने जा रहा है । विधानसभा 2022 में देवभूमि में पांचवीं विधानसभा के गठन के लिए सम्पन्न होने वाले यह चुनाव फिर से यादगार रहने वाला है ऐसी आशा की जा रही है । 2017 की तरह ही एकबार फिर कांग्रेस ने पूर्व कैबिनेट मंत्री सुरेन्द्र सिंह नेगी पर ही विश्वास जताया है तो भाजपा के पिछले विधानसभा के जिताऊ प्रत्याशी तथा निवर्तमान विधायक डॉ हरक सिंह रावत इस बार पाला बदल कर पुनः कांग्रेस में आ चुके हैं इस खालीपन को भरने के लिए भाजपा ने अपने वर्तमान यमकेश्वर की विधायक श्रीमती ऋतु खण्डूड़ी भूषण को चुनाव मैदान में उतारा है । दूसरी ओर भाजपा आलाकमान के इस फैसले से नाराज होकर धीरेन्द्र चौहान ने बागी होकर निर्दलीय प्रत्याशी के तौर चुनाव मैदान में ताल ठोक दी है । उनके निर्दलीय चुनाव लड़ने से कण्वभूमि में अबकी बार त्रिकोणीय संघर्ष होने के आसार बढ़ गये हैं । 

गढ़वाल के प्रवेश द्वार कण्वनगरी कोटद्वार जनपद पौड़ी की सर्वाधिक मतदाता वाली विधानसभा सीटों में से एक है।  राज्य बनने के बाद से यहां से बारी-बारी से कांग्रेस और भाजपा का ही विधायक बनता रहा है। इस बार भी स्थिति उससे अलग दिख नहीं रही है । राज्य बनने के बाद 2002 में पहली बार अस्तित्व में आई कोटद्वार विस सीट उत्तर प्रदेश के समय में बड़े क्षेत्रफल वाली सीट हुआ करती थी और यह क्षेत्र लैंसडौन विधानसभा क्षेत्र के अंतर्गत आता था। पृथक राज्य बना तो परिसीमन में कोटद्वार विस सीट बन गई।  इस सीट पर हर बार ही बदलाव देखने को मिलता है। इस बार भी यह सीट पुनः बदलाव का साक्षी बनने जा रही है । 1,14,842 मतदाताओं की संख्या वाले कोटद्वार विस क्षेत्र में उत्तराखंड राज्य गठन के बाद से अब तक हुए चुनावों में इस सीट पर दो बार कांग्रेस और दो बार भाजपा का कब्जा रहा। एक बार 2005 में इस सीट पर उपचुनाव भी हुआ जिसमें कांग्रेस सफल रही है । राज्य गठन के बाद से ही अभी तक कोटद्वार विधानसभा से जीतने वाली पार्टी देहरादून में सत्तासीन हुई है । इस लिहाज से भी इस सीट का महत्व बढ़ जाता है । भाजपा ने राज्य गठन के बाद से शैलेन्द्र रावत को छोड़कर किसी भी अन्य स्थानीय कार्यकर्ता को प्रत्याशी नहीं बनाया तथा उन्हें केवल झंडा, डंडा थामने तक ही सीमित रखा हुआ है। ध्यान रहे कि, वर्तमान में भाजपा के टिकट पर कोटद्वार विधानसभा से जीतने वाले पूर्व के दोनों जिताऊ प्रत्याशी कांग्रेस में शामिल हो चुके हैं । 2002 से भाजपा  आलाकमान द्वारा कोटद्वार के लिए अपनाया गया पैराशूट  का फंडा आज भी जारी है, जिससे स्थानीय कार्यकर्ताओं को उभरने का मौका ही नहीं मिल पा रहा है। कोटद्वार विधानसभा सीट पर भाजपा ने एक बार फिर स्थानीय की उपेक्षा कर हाईकमान द्वारा थोपे गये प्रत्याशी पर दांव लगाया है। इस कारण भाजपा के लिए इस बार यहाँ से मुकाबला आसान होता हुआ नजर नहीं आता है । यहां से कांग्रेस के सुरेंद्र सिंह नेगी- 2002, 2012, भाजपा के शैलेंद्र सिंह रावत  2007 तथा डा. हरक सिंह रावत 2017 में विधायक चुने गये।  इस विस सीट पर महिला और पुरुष मतदाताओं का अनुपात लगभग  समान ही है। इस सीट पर पुरुष मतदाताओं की संख्या 57 हजार 401 है, जबकि महिला मतदाताओं की संख्या 57 हजार 340 है। कांग्रेस ने शुरू से ही हर चुनाव में स्थानीय व्यक्ति को ही तरजीह दी और उसे मैदान में उतारा, अभी तक कांग्रेस की ओर से सुरेन्द्र सिंह नेगी ही एकमात्र क्षत्रप रहे हैं, जबकि भाजपा ने 2007 को छोड़कर किसी भी स्थानीय व्यक्ति को टिकट नहीं दिया और हर बार आलाकमान द्वारा थोपे गये पैराशूट प्रत्याशी को मैदान में उतारा।  भाजपा का कोटद्वार विस सीट पर पैराशूट प्रत्याशी उतारने का सिलसिला 2002 से शुरू हुआ था जो आज तक जारी है। 2002 हुए विस चुनाव में भाजपा ने कोटद्वार से पहला पैराशूट प्रत्याशी के रूप में दिल्ली से चुनाव लड़ने आए अनिल बलूनी को मैदान में उतारा, लेकिन, उनका नामांकन निरस्त हो गया। इसके बाद भाजपा के बागी होकर निर्दलीय चुनाव मैदान में उतरे भुवनेश खर्कवाल को समर्थन दिया, लेकिन वह जीत नहीं पाए।  2005 में हुए उपचुनाव में  भाजपा ने स्थानीय को फिर  दरकिनार कर अनिल बलूनी को मैदान में उतारा, लेकिन वह चुनाव हार गए। उसके बाद उन्होंने कभी कोटद्वार से चुनाव नहीं लड़ा।  भाजपा ने 2007 में दुगड्डा के तत्कालीन ब्लॉक प्रमुख शैलेंद्र रावत को मैदान में उतारा। रावत ही एक मात्र स्थानीय व्यक्ति थे, जिन्हें भाजपा ने टिकट दिया था। इसके बाद  2011 से 2012 तक चुनाव से ठीक पहले बीसी खंडूडी दोबारा मुख्यमंत्री बने तो 2012 के विधानसभा चुनाव में ‘खंडूड़ी है जरुरी’  नारे पर भाजपा ने चुनाव लड़ा, और खण्डूड़ी को कोटद्वार से चुनावी मैदान में उतारा, लेकिन खण्डूडी को  यहां की जनता ने नकार दिया और उन्हें  करारी हार का सामना करना पड़ा।  उन्हें कांग्रेस के सुरेंद्र सिंह नेगी ने 4,623 वोटों से हरा दिया। इस हार के बाद खंडूड़ी राज्य की राजनीति से दूर हो गए तथा 2014 में पुनः गढ़वाल सांसद बने । 2017 में हुए चुनाव में भाजपा ने फिर स्थानीय कार्यकर्ताओं को हाशिये पर डाल दिया और कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हुए डा. हरक सिंह रावत को कोटद्वार विस सीट से मैदान में उतारा। अपने ही घर में सुरेन्द्र सिंह नेगी को चुनाव में करारी हार का सामना करना पड़ा। इस बार  स्थानीय भाजपा कार्यकर्ताओं को उम्मीद थी की आलाकमान स्थानीय कार्यकर्ता को टिकट देगा, लेकिन भाजपा आलाकमान ने अपने इतिहास को दोहराते हुए स्थानीय प्रत्याशी को दरकिनार कर यमकेश्वर की वर्तमान विधायक ऋतु खण्डूड़ी भूषण को कोटद्वार से मैदान में उतार दिया और आलाकमान द्वारा थोपे गये पैराशूट प्रत्याशी उतारने की अपनी परंपरा को आगे बढ़ाया । नाराज तथा बिखरे कार्यकर्ताओं को एक साथ संगठित करना भाजपा प्रत्याशी के लिए बहुत ही चुनौतिपूर्ण कार्य होगा । धीरेन्द्र चौहान के निर्दलीय चुनाव मैदान में उतरने से यह स्थिति और भी विकट हो चली है । 14 फरवरी को होने वाले चुनाव में कण्वभूमि का मतदाता किसका वरण कर विधानसभा भेजेगा इसका पता तो अगामी 10 मार्च को ही चल पायेगा।


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