राजनीति में शुचिता और शुद्धिता के लिए आमजन करें पहल - TOURIST SANDESH

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मंगलवार, 25 जनवरी 2022

राजनीति में शुचिता और शुद्धिता के लिए आमजन करें पहल

 राजनीति  में शुचिता और शुद्धिता के लिए आमजन करें पहल


सुभाष चन्द्र नौटियाल 

लोकतंत्र में अपने जनप्रतिनिधि का चुनाव करना लोकतान्त्रिक प्रक्रिया का अभिन्न अंग है। स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव किसी भी लोकतांत्रिक व्यवस्था का मूल तत्व है। लोकतांत्रिक व्यवस्था को चिरस्थायी बनाये रखने के लिये राजनीति में शुचिता और शुद्धिता का होना परमावश्यक हैं। राजनीति में शुचिता और शुद्धिता तभी सम्भव है, जब जनप्रतिनिधि का चुनाव स्वतंत्र और निष्पक्ष हो। स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव के लिए आवश्यक है कि, एक ऐसा सशक्त और स्वायत तंत्र विकसित किया जाए जो कि पूर्णरूप से समर्पण भाव से कार्य कर सके तथा उसके कार्यो में कोई भी अवरोध उत्पन्न न हो। स्वतंत्र भारत में इस व्यवस्था को सुनिश्चित करने के लिए एक सशक्त एंव स्वायत संस्था चुनाव आयोग की स्थापना 26 नवम्बर 1949 को की गयी। जिसे कि, संविधान के 15वें भाग की धारा 324-329 में वर्णित किया गया है। भारत का चुनाव आयोग देश में स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव करवाने के लिए जिम्मेदार है। देश में सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार की व्यवस्था को अपनाया गया है। इस व्यवस्था को संविधान के 325 और 326 के तहत संवैधानिक मान्यता प्रदान की गयी है। भले ही स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कराना चुनाव आयोग की जिम्मेदारी है परन्तु बिना जनभागीदारी के यह सम्भव नहीं है। यदि देश का आमजन जागरूक हो जाय तो स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव में आ रही बाधाओं को आसानी से दूर किया जा सकता है। वर्त्तमान में देश की राजनीति में बढ़ता अपराधीकरण भारतीय लोकतंत्र के लिए सबसे बड़ा खतरा बन चुका है। राजनीति में अपराधीकरण इस कदर हो चुका है कि, चुनाव आयोग चाहकर भी इस पर अंकुश लगाने में विफल साबित हो रहा है। इसका प्रत्यक्ष प्रमाण यह है कि, चुनाव घोषित होते ही कई ऐसे दागी नेता प्रत्याशी के रूप में सामने आने लगते हैं जिन पर गम्भीर आरोप हैं। इस में कई आरोपी तो ऐसे हैं जिन पर एक साथ कई संगीन मुकदमे विभिन्न धाराओं के तहत अनेक थानों में दर्ज हैं। जमीन कब्जाने, हत्या, लूटपाट, डकैती, धोखाधड़ी तथा दंगा कराने जैसे संगीन आरोपों के आरोपी प्रवृत्ति के लोग राजनीति पर अब अपना अधिकार समझने लगे हैं। राजनीति में देश में स्थापित राष्ट्रीय तथा क्षेत्रीय पार्टियां भी जिताऊ प्रत्याशियों के नाम पर ऐसे आपराधिक प्रवृत्ति के दागी लोगों को अपना प्रत्याशी बनाने में कोई गुरेज नहीं करती हैं। यहां तक कि, राजनीतिक संरक्षण प्राप्त ऐसा आपराधिक प्रवृत्ति का नेता देश, समाज के लिए और भी घातक प्रवृत्ति का होता है। जिताऊ उम्मीदवार के नाम पर राजनीतिक पार्टियां ऐसे प्रत्याशियों को चुनाव मैदान में उतार रही हैं। जिनका अतीत अपराधों से भरा हुआ है। ऐसे अपराधी प्रवृत्ति के प्रत्याशी न सिर्फ आमजन में भय और संशय पैदा करते हैं बल्कि सामने वाले प्रत्याशियों को भी मजबूर करने की भरपूर चेष्टा करते हैं। यही कारण है कि, राजनीतिक पार्टियों को अब आपराधिक प्रवृत्ति के प्रत्याशी भाने लगे हैं। जबकि चुनाव आयोग का इस सम्बन्ध में स्पष्ट दिशा-निर्देश है कि, ऐसे आपराधिक प्रवृत्ति के लोगों को उम्मीदवार बनाने से पूर्व राजनीतिक दलों को इसका कारण बताना होगा बल्कि इसकी सूचना समाचार पत्रों तथा अन्य मीडिया के जरिये सार्वजनिक करनी होगी। पांच राज्यों में होने वाले आगामी विधानसभा चुनावों में अनेक स्थानों पर गम्भीर आरोपों का सामाना करनेवाले अनेक तथाकथित नेताओं को जिस प्रकार से राजनीतिक दलों ने अपना उम्मीदवार घोषित किया है, उससे तो यही स्पष्ट होता है कि, चुनाव आयोग के निर्देशों को कोई भी राजनीतिक दल गम्भीरता से नहीं लेता है। उसका एक कारण यह भी हो सकता है कि, चुनाव आयोग के पास ऐसे पर्याप्त अधिकार नहीं हैं जिन अधिकारों का उपयोग करते हुए चुनाव आयोग ऐसे राजनीतिक दलों को दण्डित करने का प्राविधान कर सके। चुनाव आयोग की इसी मजबूरी के चलते ही अपराधी प्रवृत्ति के लोग राजनीतिक संरक्षण पाकर दलों का टिकट हासिल करने में न सिर्फ सफल रहते हैं बल्कि चुनाव जीत कर लोकसभा तथा राज्य की विधान सभाओं में पहुंचने में भी कामयाब रहते हैं। राजनीति का अपराधीकरण भारतीय राजनीति की सबसे बड़ी बिडम्बना है। वैसे यह शुभ संकेत माना जा सकता है कि, उच्चतम न्यायालय उस याचिका की जल्द सुनवायी के लिए तैयार हो गया है जिसमें यह मांग की गयी है कि, आपराधिक पृष्ठभूमि वालों को चुनाव मैदान में उतारने वाले दलों की मान्यता रद्द की जाए। उच्चतम न्यायालय इस याचिका की सुनवायी के बाद क्या निर्णय देगा यह तो भविष्य के गर्भ में है परन्तु यह स्पष्ट है कि यदि चुनाव आयोग को ठोस अधिकार नहीं दिये जाते हैं तो दागी छवि वाले प्रत्याशियों को चुनाव मैदान में उतारने से रोकना लगभग असम्भव है। चुनाव आयोग इससे पूर्व भी ऐसे दागदार नेताओं को चुनाव मैदान में उतारने से रोकने के लिए उनके खिलाफ आरोप पत्र दायर कर चुका है परन्तु राजनीतिक दलों के द्वारा यह खोखला तर्क देना कि, दोषी साबित होने तक किसी को भी निर्दोष माना जाना चाहिए। वास्तव में इसी कुतर्क के कारण जेल में बन्द कई दागी छवि वाले नेता न सिर्फ चुनाव लड़ने में सफल हो जाते हैं बल्कि चुनाव जीतकर लोकसभा तथा राज्य विद्यानसभाओं में भी पहुंचने में सफल हो जाते हैं। यही कारण है कि, अनेक अवसरों पर चुनाव आयोग भी लाचार ही नजर आता है। यह भी  विडम्बना है कि, जेल में बन्द एक अपराधी चुनाव तो लड़ सकता है परन्तु उसी के समान अन्य अपराधियों को वोट देने का अधिकार नहीं है। राजनीति में बढ़ते आपराधिकरण को कैसे रोका जाए यह एक बहुत ही गम्भीर चिन्तनीय विषय है। इसमें तन्त्र तो वर्त्तमान हालात को देखते हुए मजबूर ही नजर आता है परन्तु देश का आम मतदाता वोट देने के अपने अधिकार का सदुपयोग करते हुए ऐसे अपराधी प्रवृत्ति के प्रत्याशियों को सिरे से नकार कर देश की वर्त्तमान राजनीतिक व्यवस्था में परिवर्तन ला सकता है। यदि देश का आम मतदाता चाहे तो व्यवस्था परिवर्तक बनकर नये भारत के निर्माण में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। यदि भारतीय राजनीति में आपराधीकरण को रोकना है तो इसके लिए आवश्यक है कि, देश का आम मतदाता जागरूक होकर बिना किसी भेदभाव के स्वतंत्र और निष्पक्ष होकर देश हित में मतदान करे। राजनीति में शुचिता और शुद्धिता का भाव तभी जाग्रत हो सकता है जब, देश का आम मतदाता भयरहित, स्वतंत्र और निष्पक्ष मतदान करे। तभी व्यवस्था परिवर्तन सम्भव है। आज राजनीति में शुचिता और शुद्धिता के लिए देश के आमजन को पहल करने की आवश्यकता है। आओ हम सब मिलकर राजनीति में शुचिता और शद्धिता की पहल के साथ अपने मताधिकार का देश हित में उचित प्रयोग करें।


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