फुर पत्यैं, मेरि कुडंळी कत्यैं - TOURIST SANDESH

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मंगलवार, 17 नवंबर 2020

फुर पत्यैं, मेरि कुडंळी कत्यैं

  पव्वा दर्शन

 फुर पत्यैं, मेरि कुडंळी कत्यैं

सुभाष चन्द्र नौटियाल

मेरे प्यारे भरतवंशियों चिन्ता मत करो बिल्कुल निःशंक रहो। एक पहाड़ी लतड़ाक और चलो अच्छे दिन आपका इन्तजार कर रहे हैं। सौंण-भादौं की बरसात अब थम चुकी है। चिन्ता की कोई बात नहीं, बरसात के पानी में अब किसी गरीब की झोपड़ी डूबने वाली नहीं है। थोड़ा ठण्ड जरूर होगी भगवान आप को सहन करने की शक्ति प्रदान करे। अब बीती ताई बिसार दे आगे की सुध ले। विकास रूपी कर्फ्यू अब आमजन पर लगने ही वाला है। सरकार के पिछले वर्षों में जो कमी रह गयी थी वह इस वर्ष पूर्ण होगी। आप बिल्कुल चिन्ता न करें। 

ल भैजी, राजनीति और औरत चाहे निपट बांझ ही क्यों न हो उम्मीद का दामन सदा थामे रहती है। अब देखो न विपक्षियों द्वारा तमाम जोर लगाने के बाद भी पाटलीपुत्र पर फिर से सातवीं बार सुशासन बाबू काबिज हो चुके हैं। उन्हें उम्मीद थी जीत तो उनकी ही होगी। यह बात अलग है कि, उनका राजतिलक कितने दिन के लिए हुआ है? कहा नहीं जा सकता परन्तु उम्मीद बनी हुई है कि अबकी बार फिर से पांच साल पूरे कर ही लेगें। सब कुछ होने के बाद भी हार का ठीकरा निराश और हताश कांग्रेस के सिर पर ही फूटा। बिहार के एक नेता यहां तक कह रहे हैं कि, हार तो इसलिए हुई कि, कांग्रेस के युवराज प्रचार के दौरान शिमला में मौज-मस्ती में व्यस्त थे। हार तो होनी ही थी। इधर पौने चार साल होने के बाद भी देवभूमि की सरकार अभी तक रगरृयाट ही कर रही है। विकास का रगरृयाट, अच्छे दिन लाने के लिए रगरृयाट और न जाने क्या-क्या......... अच्छे दिनों की आस में खनन माफियों द्वारा नदियों में गहरे-गहरे गड्डे खोदे जा चुके हैं, भूमाफियों द्वारा जमीनों पर कब्जा किया जाना जारी है, शराब की सप्लाई घर-घर तक पहुंचाने की व्यवस्था हो चुकी है। कोरोना रूपी हन्त्या घर-घर में नृत्य करने के लिए आतुर है। भले ही देवभूमि में शिक्षा, स्वास्थ्य और नौजवानों के लिए रोजगार चौपट हो गये हों परन्तु विकासरूपी गंगा तो बही है। उम्मीद तो बनी हुई है कि- देर होली, अबेर होली, एक-न-एक दिन सबेर होली....................  

पलायन रूपी दानव जाने का नाम नहीं ले रहा है और विकासरूपी संस्कारवान मानव आने का नाम नहीं ले रहा है फिर भी अच्छे दिनों के आस में सूखे गधेरे कणाट कर रहे हैं। देखो सरकार ने गधेरों की कणाट को कम करने के लिए योजना बनाई है। अब क्या होता है आगे शायद, गधेरों के अच्छे दिन आ जांए। वैसे तो सरकार हर बार फुर पत्यैं, मेरि कुडयीं कत्यैं  हो जाती है। पता ही नहीं चलता कब आयी और कब चली गयी। फटाक से फुर्र हो जाती है। विकास तो नजर आता नहीं। 

अच्छे दिन आने ही वाले थे कि पहले बिल्ली रास्ता काट गयी और फिर ऐनवक्त पर छींक दिया।  अब कोई खतरा नहीं है, सारा इन्तजाम हो चुका है। अब आप सुखद अनुभूति कर सकते हैं ठीक वैसे ही जैसे एक शराबी अपनी स्त्री के मायके जाने पर सुखी होने का आभास करता है। सरकार भी रिलेक्स मूड में है। पांचवें वर्ष में जो प्रवेश करने वाली है। कोरोनाकाल की साया में दीपावली की रौनक भी अब विदाई लेने को ही है। उधार का घी पीकर जनता- जनार्धन छक चुकी है। मेरे प्यारे भरतवंशियों चिन्ता मत करो बिल्कुल निःशंक रहो। एक पहाड़ी लतड़ाक और चलो अच्छे दिन आपका इन्तजार कर रहे हैं। सौंण-भादौं की बरसात अब थम चुकी है। चिन्ता की कोई बात नहीं, बरसात के पानी में अब किसी गरीब की झोपड़ी डूबने वाली नहीं है। थोड़ा ठण्ड जरूर होगी भगवान आप को सहन करने की शक्ति प्रदान करे। अब बीती ताई बिसार दे आगे की सुध ले। विकास रूपी कर्फ्यू अब आमजन पर लगने ही वाला है। सरकार के पिछले वर्षों में जो कमी रह गयी थी वह इस वर्ष पूर्ण होगी। आप बिल्कुल चिन्ता न करें। लॉकडाउन में हुए नुकसान की भरपायी भी हो जायेगी। यदि विकास रूपी कर्फ्यू में कोई कमी रह गई तो विकास रूपी ग्रहण तो लग ही सकता है। यह भी अजीब संयोग ही है कि, जब आमजन के भाग्य की छतरी में छेद ही छेद हैं तो सरकार भी क्या करे बेचारी। सरकार तो कोशिश ही कर सकती है कोई भाग्य की छतरी के छेद थोड़ी बन्द कर सकती है। सरकार ने पूरी ताकत लगा रखी है परन्तु विपक्ष सब बैर पड़े हैं बरबस मुख लपटयो। उन्हें तो विकास नजर नहीं आता उन्हें तो खोट ही खोट नजर आते हैं। देखो भैजी! आप मानो या न मानो उम्मीदों में विकास के घोड़े सरपट दौड़ रहे हैं। परन्तु नंगा क्या नहायेगा, क्या निचोड़ेगा उनके लिए तो विकास बेगाने सनम भये, चोटी वाले की तरह ही है। कोई भी क्या करे जो विकास से अछूता रह जाये। देश में अब बढ़ती महंगाई, बेरोजगारी बीते जमाने की बात है। अब देश में भय, भूख, मारामारी और चरित्रहनन नहीं होता। काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद आदि दुगुर्णों से देश मुक्त हो चुका है। जो थोड़े बहुत दुर्गुणी बचे हैं उनसे भी निपट लिया जायेगा। रामराज की पहरेदारी से देश में हम सब बेफिक्र और सुरक्षित हैं। चरित्रता, नैतिकता तथा आदर्शता अब पिछड़ेपन की निशानी है, सत्यनिष्ठा और ईमानदारी अब मानव रहित हो चुकी है। अब तो यही शेष है- राम नाम की लूट है लूट सके तो लूट......  जीवन में स्वस्थ्य रहें मस्त रहें। बस, किसी को शिकायत मौका न दें, चैरेवेति-चैरेवेति यही जीवन का सार है।

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