आसुरी शक्तियों पर विजय प्राप्त कर मनाऐं विजय दशमी - TOURIST SANDESH

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मंगलवार, 28 सितंबर 2021

आसुरी शक्तियों पर विजय प्राप्त कर मनाऐं विजय दशमी

 आसुरी शक्तियों पर विजय प्राप्त कर मनाऐं विजय दशमी

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सुभाष चन्द्र नौटियाल
                भारतीय संस्कृति में सदियों से पर्वों को मनाने की परम्परा रही है। तिथि पर्व, महापुरूषों की जयन्तियां, ऋतु पर्व, व्रत-त्यौहार आदि ऐसे उत्सव जीवन में नवीनता तथा उमंग का संचार करते हुए जीवन को नव राह के लिए उत्साहित करते हैं। उपवास, ब्रह्मचर्य, एकान्तसेवन, मौन, आत्मनिरीक्षण आदि की विद्या सम्पन्न करने के लिए हमारे जीवन में इन पर्वों का विशेष महत्व रहा है। सनातनी संस्कृति में प्रभु श्रीराम सम्पूर्ण मानवता के आदर्श रहे हैं। प्रभु श्रीराम आसुरी शक्तियों के विनास हेतु धरती पर अवतरित हुए थे। विजय दशमी का पर्व आसुरी शक्तियों का विनास तथा सात्विक शक्तियों की रक्षा के लिए मनाया जाता है। इसी दिन प्रभु श्रीराम ने आसुरी शक्तियों के प्रतीक रावण पर विजय प्राप्त की थी।  बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक यह त्यौहार वास्तव में मानवीय संवेदनाओं को जागृत करने के लिए है। ताकि मानव दैनिक जीवन में नियमित रूप से सात्विक जीवन जीकर जीवन में आदर्शता को धारण करें।  हमारे दैनिक जीवन में सकल्पों का महत्वपूर्ण स्थान है। वास्तव में मानव जीवन किये गये संकल्पों को पूर्ण करने के लिए  ही है। इसके लिए हमें दैनिक जीवन में दृढ़ संकल्पित होने की आवश्यकता है। तभी हम अपने जीवन में किये गये  संकल्पों को पूर्ण कर सकते हैं। हमारी संकल्प शक्ति जितनी दृढ़ होगी हम जीवन में उतने ही सफल होंगे। आओ इस विजय दशमी के अवसर पर सत् सकल्पों को जीवन में धारण कर विजय दशमी का पर्व मनायें-
1- सत्य व्रती दृढ़ प्रतिज्ञा का संकल्प- मानवों के आदर्श सत्यसंकल्पित मर्यादा पुरूषोत्तम भगवान् श्रीराम वन में अनुज भ्राता भरत से कहते हैं-
रघुकुल रीत सदा चली आयी, प्राण जाएं पर वचन न जाए। (तुलसीकृत रामचरितमानस)
(हे अनुज! रघुकुल की सदियों से यही रीति है कि, दिये गये वचन का पालन करने के लिए भले ही प्राण चले जाएं परन्तु फिर भी वचन की रक्षा की जाती है।)
इसी प्रकार वाल्मिकी जी ने रामायण में कहा है कि-
लक्ष्मीश्वन्द्रादपेयाद् वा हिमवान् वा हिमं त्यजेत।
अतीयात् सागरो बेलां न प्रतिज्ञामंह पितुः ।।
(हे तात्! चन्द्रमा की प्रभा चन्द्रमा से अलग हो सकती है, हिमालय में बर्फ न मिले यह भी सम्भव है, समुद्र अपनी मर्यादा का अतिक्रमण कर दे यह भी सम्भव है, परन्तु में पिता की प्रतिज्ञा का उल्लंघन नहीं कर सकता हूं।)
जीवन में हमें भी सत्य व्रती दृढ़ प्रतिज्ञा का संकल्प लेना चाहिए।
2- स्वच्छता का करें संकल्प- जीवन में जीत हासिल करने के लिए मन और तन की स्वच्छता बहुत आवश्यक है। स्वच्छता से मन और तन तरोताजा होने के कारण सकारात्मक ऊर्जा को ग्रहण करने में सदैव तत्पर रहते हैं। यही सकारात्मक ऊर्जा दैनिक कार्यों को ठीक ये निष्पादन करने में सहायक होती है। याद रखें तन, मन तथा स्थान की  शुद्धता में ही आपकी सफलता समायी हुई है। इसलिए तन, मन और स्थान की स्वच्छता का संकल्प लें तथा इसका नियमित पालन करें। 
3-आत्मबल तथा आत्मविश्वास बढ़ाने का करें संकल्प- जीवन में आत्मबल तथा आत्मविश्वास को बढ़ाने के लिए सर्वप्रथम नकारात्मक आसुरी शक्तियों पर विजय प्राप्त करने के लिए निराशा तथा हताशा रूपी दशानन पर विजय हासिल करनी पड़ती है। जीवन को हताशा और निराशा हमें सभी दसों दिशाओं में कमजोर कर भय और दुःख के सागर में डुबाने के लिए हर समय तैयार रहती है। जीवन में अपनी कमजोरियों पर विजय प्राप्त कर व्यक्ति निराशा के भंवर से पार पा सकता है। जीवन में अनेकां बार प्रयास करने पर भी आपेक्षित सफलता नहीं मिल पाती है तो जीवन में हताशा और निराशा का भाव प्रबल होने लगता है। नकारात्मकता हम पर हावी होने लगती है। कोई भी कार्य तभी पूर्णता को प्राप्त कर पाता है। जब हम उसे पूरे उत्साह तथा लगन से करते हैं। जीवन में उत्साहित व्यक्ति निरन्तर आगे बढ़ने के लिए प्रयासरत रहता है। जो लोग उत्साह और खुशी से आत्मसात् कर लेते हैं। उनकी राह में भले ही कितनी मुश्किलें क्यों न आयें उत्साही व्यक्ति सदैव ऊर्जावान होकर मुश्किलों का डट कर मुकाबला करता है। सफलता निश्चित है इसके लिए निरन्तर धैर्य बनाये रखने की आवश्यकता है। आत्मबल से लबरेज व्यक्ति हार-असफलता से कभी निराश नहीं होता बल्कि दुगने उत्साह से प्रयास जारी रखता है। जीत के प्रति यही ललक तथा आत्मविश्वास सफलता का मूलमंत्र है। अतः जीवन में सदा उत्साह बनाये रखने के लिए आत्मबल तथा आत्मविश्वास बढ़ाने का संकल्प करें।
4-नित्य योग का करें संकल्प- जीवन में शरीरिक, मानसिक तथा आत्मिक बल बढ़ाने के लिये नियमित योग का महत्व है। भारतीय जीवन पद्धति योग से शुरू होती है तथा योग से समाप्त होती है यानि यह कभी न समाप्त होने वाली पद्धति है। जीवन में सफलता प्राप्त करने के लिए योग उतना ही आवश्यक है जितना कि जीवन में जल की आवश्यकता है। अतः तन और मन की स्वस्थता के लिए योग आवश्यक है। जीवन में पूर्ण स्वस्थ्यता के लिए नित्य योग का संकल्प करना चाहिए। 
5-पर्यावरण एवं जैव विविधता संरक्षण का करें संकल्प- धरती में मानव का जीवन सहअस्तित्व के कारण सम्भव है। इस धरती में प्रत्येक जीव का अपना महत्व होता है। मानवीय भूलों के कारण अनेकां जीव एवं वनस्पतियों का अस्तित्व समाप्त हो रहा है या विलुप्ती के कगार पर हैं। अतः  हम सब को पर्यावरण संरक्षण के प्रति जागरूक रह कर धरती की जैव विविधता संरक्षण का संकल्प लेना चाहिए। वर्तमान समय में यही समय की मांग है। 
6- जल संरक्षण का लें संकल्प- धरती पर हवा और पानी के कारण ही जीवन सम्भव है परन्तु अफसोस की हमने इन दोनों को जहरीला बनाने के लिए कोई और कसर नहीं छोड़ी है। नीति आयोग के अनुसार हमारा देश भारत ऐतिहासिक जल संकट की ओर बढ़ रहा है यदि तुरन्त प्रभावी कदम नहीं उठाने गये तो 2030 तक जल की मांग आपूर्ति में असंतुलन उत्पन्न हो जायेगा।  नीति आयोग के अनुसार जल की प्रति व्यक्ति उपलब्धता वर्ष दर वर्ष निरन्तर गिर रही है। सन् 2001 में देश में प्रति व्यक्ति उपलब्ध जल 1820 घन लीटर थी जो सन् 2011 में गिरकर 1545 घन लीटर प्रति व्यक्ति रह गयी जबकि सन् 2025 तक अनुमानतः 1341 घन लीटर तक रह जायेगी साफ है कि जल को बचाने के लिए आज से ही संकल्प लेना होगा तभी धरती पर जल बच सकता है। 
7- असहाय और निशक्त जनों का सहारा बनने का लें संकल्प- मानव तभी सम्पूर्ण मानव होता है जब मानव की मानवीय संवेदनाऐं जाग्रत अवस्था में हों। दया, करूणा, प्रेम, आपसी सद्भाव तथा असहाय और निशक्त जनों का सहारा बनने से मानवीय संवेदानाऐं सदा जाग्रत अवस्था में रहती हैं। इससे काम, क्रोध, लोभ मोह, मद, वस्तुओं को चुराने की लालसा जैसी आसुरी प्रवृत्तियों पर विजय प्राप्त की जा सकती है। अतः आसुरी प्रवृत्तियों पर सम्पूर्ण विजय के लिए असहाय और निशक्तजनों का सहारा बनने का संकल्प लेना चाहिए। 
8- सामूहिक एवं सामुदायिकता के साथ कार्य  करने का लें संकल्प- भारतीय संस्कृति में सामूहिकता एवं सामुदायिकता का सदा महत्व रहा है। जब-जब हमारी सामूहिकता एवं सामुदायिकता शक्ति कमजोर हुई है। तब-तब आसुरी शक्तियों ने हम पर अधिकार जमा लिया। आसुरी शक्त्यिं पर विजय प्राप्त करने के लिए सामूहिक एवं सामुदायिकता के साथ कार्य करने का संकल्प लेना चाहिए। यही हमारे राष्ट्र की शक्ति है। 
9- वरिष्ठ जनों के सम्मान का लें संकल्प- हमारे जीवन में माता-पिता, गुरूजन तथा वरिष्ठ जनों का अहम स्थान होता है। बिना वरिष्ठजनों के आशीर्वाद  से जीवन का मुकाम हासिल करना असम्भव है। बचपन से लेकर  युवा होने तक वरिष्ठ जन ही हमारे सहायक होते हैं। अतः विजय दशमी के शुभ अवसर पर वरिष्ठ जनों के सम्मान का संकल्प लिया जाना चाहिए।
10- परस्पर विश्वास का करें संकल्प- वर्तमान में घर-परिवारों में आपसी विश्वास के कमी के कारण अलगाव उत्पन्न हो रहा है। अनेकों बार देखा गया है कि, परस्पर विश्वास की कमी के कारण हिंसात्मक रूप ले लेता है। जब साथ रहने वाले व्यक्तियों के मध्य परस्पर विश्वास कमजोर होने लगता है तो संगठनात्मक शक्ति कमजोर पड़ने लगती है तथा मनमुटाव बढ़ने लगता है। परस्पर आपसी विश्वास का संकल्प लेकर वैमनस्यता रूपी आसुरी शक्ति को मात दी जा सकती है। 

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