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गुरुवार, 15 अक्तूबर 2020

नवरात्रः शक्ति संचरण का समय

 नवरात्रः शक्ति संचरण का समय

  -सुभाष चन्द्र नौटियाल
सृष्टि में ऊर्जा का महत्व है। ऊर्जा से ही अखिल ब्रह्माण्ड का संचालन होता है। ऊर्जा संचरण से ही जीवन की उत्पत्ति विभिन्न रूपों में संभव है। ऊर्जा को ना तो उत्पन्न किया जा सकता है और ना ही नष्ट किया जा सकता है बल्कि ऊर्जा को एक रूप से दूसरे रूप में परिवर्तित किया जा सकता है। ऊर्जा ही सृष्टि के सृजन एवं संचालन का कारण है तथा ऊर्जा से सृष्टि की उत्पत्ति एवं विनाश सम्भव है। अखिल ब्रह्माण्ड में ऊर्जा प्रवाह के विभिन्न स्रोत हैं। यही ऊर्जामयी शक्ति तरंगे समस्त सृष्टि में विभिन्न रूपों में निरन्तर प्रवाहित होती रहती हैं। शक्ति स्रोतों से निरन्तर प्रवाहित होने वाली ऊर्जामयी शक्तिधाराओं को सकारात्मक कर सृजनात्मक शक्तियों में परिवर्तित करने के लिए भारतीय दर्शन में नवरात्र की अवधारणा प्रस्तुत की गयी है। हमारे ऋषि-मुनियों द्वारा करोडों वर्षों की साधना के उपरान्त निष्कर्ष निकाला गया है कि, वर्ष में चार बार मुख्यतः ऊर्जामयी तरंगे सबसे अधिक सक्रिय रहती है। इसलिए हमारे ऋषि मुनियों ने वर्ष में चार बार नवरात्र की परिकल्पना की है। चान्द्र वर्ष के अनुसार वसंत नवरात्र (चैत्र मास शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से नवमी तक), शरदीय नवरात्र (अश्विन मास शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से नवमी तक), इसी प्रकार हरियाली नवरात्र (अषाढ़ मास की शुक्ल पक्ष प्रतिपदा से नवमी तक) तथा गुप्त नवरात्र (माघ मास की शुक्ल पक्ष प्रतिपदा से नवमी तक) मनाने की परम्परा रही है। हमारे ऋषि मुनियों ने शरद व बसंत ऋतु के नवरात्रों को अधिक महत्व दिया गया है क्योंकि इस काल में सूर्य में सबसे अधिक परिवर्तन अनुभव किया जाता है। सृजनात्मक शक्ति धाराओं के संचरण के लिए यह काल आदर्श माना जाता है इसलिए प्राचीन ऋषियों ने इस काल को शक्ति संचरण के लिए आदर्श माना है। वैसे तो वर्ष में आने वाली सभी ऋतुओं की अपनी-अपनी विशेषताऐं हैं। रसरूप (बसंत), शुष्कतारूप (ग्रीष्म), जीवन रूप( वर्षा), अन्न रूप (शरद), पोषणरूप (हेमंत), उत्साह रूप (शिशिर) का अपना विशेष महत्व है जो कि प्रकृति के विशेष आनन्द का अनुभव कराते हुए प्रतिवर्ष सभी जीवधारियों को अन्नादित करते हैं। शक्ति संचरण के लिए वर्ष में आश्विन मास के शुक्ल पक्ष प्रतिपदा से नवमी तक का समय आदर्श माना जाता है। इस काल में भारतीय परम्पराओं के अनुसार वार्षिक पूजा अनुष्ठान का विशेष महत्व रहा है। भारतीय दर्शन में शक्ति को मातृशक्ति के स्वरूप में स्वीकार किया गया है। इसलिए नवरात्र में मातृशक्ति का आवाह्न एवं पूजन का विशेष महत्व है। इन दिनों हमारे ऋषि-मुनि एवं उपासक गायत्री साधना के लिये भी नियमित अभ्यास करते हैं। 
शक्ति उपासना का पर्व शरदीय नवरात्र अश्विन मास की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से नवमी तिथि तक मनाया जाता है। जबकि दशवें दिन दशहरा पर्व मनाया जाता है। माना जाता है कि, लंका विजय से पूर्व भगवान श्री राम ने भी अश्विन मास की शुक्ल पक्ष  की प्रतिपदा से नवमी तक शक्ति स्वरूप मां की अखंड भक्ति की थी। जिसके फलस्वरूप दशमी के दिन प्रभु श्री राम ने आसुरी शक्ति के प्रतीक रावण पर विजय प्राप्त की थी। दशहरा पर्व  की विजयदशमी पर्व के रूप में भी मान्यता है। शक्तिधाराओं के स्रोत आदिशक्ति के हर रूप की नवरात्र के नौ दिनों तक विभिन्न स्वरूपों की पूजा की जाती है। नवदुर्गा पूजा में प्रथम तीन दिन तामसी प्रवृत्ति (काम, क्रोध लोभ, मोह, मद, मत्यस्र आदि आसुरी प्रवृत्तियां) पर विजय प्राप्त करने के लिए दुर्गा शक्ति का आवाहन किया जाता है। मध्य के तीन दिन आत्मसमृद्धि, भौतिक साधनों एवं वैभवता को बढ़ाने के लिए माँ लक्ष्मी स्वरूपा की पूजा की जाती है। अनंत ब्रह्माण्ड में उपस्थित प्राकृतिक संपत्तियों की नियन्ता प्रकृति की अधिष्ठात्री देवी लक्ष्मी हैं। अंन्तिम तीन दिन ज्ञान की देवी सत गुण  स्वरूप मां सरस्वती की पूजा की जाती है। भारतीय संस्कृति में धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष की कल्पना की गयी है। वास्तव में उसी कल्पना का मूहर्त्त रूप नवरात्र हैं। भारतीय संस्कृति में अध्यात्म को जीवन का आधार माना गया है तथा नवरात्र उस संस्कृति का जीवन रूप है। 
नवरात्र उत्सव की देवी अम्बा (विद्युत) का प्रतिनिधित्व  करती है।  जीवन में उमंग उत्साह का संचार करने के लिए उत्सव मनाने की परम्परा रही है। जीवन का वास्तविक स्वरूप वास्तव में इन उत्सवों में समाया हुआ है। अनुभव किया गया है कि, इस काल में जलवायु परिवर्तन तथा सूरज के प्रभावों का महत्वपूर्ण संगम होता है। इस काल में सृष्टि में ऊर्जा का तेजी से संचरण होता है। ऊर्जा की इन तरंगों को सकारात्मक भावों में परिवर्तन करने के लिए नवरात्र उत्सव का आयोजन किया जाता है। भारतीय संस्कृति की यह विशेषता सम्पूर्ण सृष्टि के कल्याण के लिए ही  है। जो अंनत काल से अंनत काल तक निरन्तर प्रवाहित हो रही है।  

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