उम्मीदों की छांव में एक सरकारी विद्यालय - TOURIST SANDESH

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मंगलवार, 6 अक्तूबर 2020

उम्मीदों की छांव में एक सरकारी विद्यालय

 शैक्षिक सम्वर्धन हेतु मेरी यात्रा

उम्मीदों की छांव में एक सरकारी विद्यालय

संजय नौटियाल

किसी ने सच ही कहा है  कि ’यदि हौसलें बुलंद  हों और दिल मै कुछ करने की चाह तो  सारी कायनात आपको उससे मिलाने में जुट जाती है’ ऐसे बहुत से सरकारी शिक्षक हैं जो चुपचाप  बिना शोर मचाये एक परिश्रमी चीटी की तरह अपने कार्यों को पूरी शिद्द्त और ईमानदारी से अपने अंजाम तक पहुचानें की  कोशिश में निरंतर प्रयासरत  रहतें हैं. ऐसे ही  विद्यालय के शिक्षकों को सलाम करने के वास्ते हम भी निकल पड़े प्राथमिक विद्यालय सिगड्डीस्रोत जो की उत्तराखण्ड राज्य के पौड़ी जनपद के विकासखंड दुगड्डा के अंतर्गत आता है।

 कोलतार की चमकती चिकनी और सपाट सड़क पर सरपट दौड़ती हमारी मोटर साइकिल के पहिये धीमे हो जातें है सिगड्डी ग्रोथ केंद्र पर पहुचं कर और फिर लगभग एक किलोमीटर की एक कठोर खुरदुरी और पत्थरों वाली उसी की सौतेली सड़क और फिर दो किलोमीटर की एक सूखी नदी जो वर्षा काल में जंगल के रहवासीयों के लिए परेशानी का सबब बन जाती है.  उसको पार करने के बाद आता है लकड़ी का बना वो  गेट जो विद्यालय को अपने में समाए हुए है। लगभग आधे किलोमीटर की परिधि की बसावट में 20 गुर्जर मुस्लिम समुदाय  जो की यहाँ के रहवासी है और पशुपालन और दूध व्यवसाय पर आश्रित है.जंगलात के नियमों के चलते स्थाई निर्माण पर पाबंदी  है लिहाजा विद्यालय भी एक फूस की बनी एक शंक्वाकार  झोपडी में चलता है.


आज विद्यालय  समय से पहुँच कर भी मैं ज़्यादातर बच्चों से लेट था .अच्छी बात यह रही कि बच्चों को इस बात का बुरा नहीं लगा। वे मुझे देखकर उत्साहित थे, ठीक वैसे ही जैसे  गेट से अंदर घुस आई गाय को देखकर हो जाते हैं.प्रार्थना शुरू हुई और मेरे मन में इसको लेकर ज्यादा उत्साह नहीं था क्योकि  पूर्व के  अनुभव ही  इस प्रकार के हैं  कि यह एक रस्म अदायगी सी लगती है पर दीगर बात यह थी यहाँ की मोर्निंग असेंबली में एक वयस्क को आकर्षित करने के सभी उपक्रम थे, पहली पीढ़ी इन  24 बच्चों को सहेज कर बैठे दोनों ही शिक्षक सायास ही संविधान के लिखे उन शब्दों का पालन कर रहें है जो कि एक राष्ट्र -राज को  बिना किसी जाति - धर्म  और भेद- भाव के तथा समान रूप से पुष्पित और पल्लवित होते देखना चाहती है. श्रीमति सरिता मेहरा नेगी जो की प्रधानाध्यापिका के पद पर कार्यरत है और सहयोगी शिक्षक श्री सुनील दत्त जी दोनों ही पूरी शिद्दत, उर्जा और उमंग तथा  तन ,मन और धन से बच्चों के प्रति समर्पित हैं .       


अब बारी थी कक्षा में जाने की, अंदर का दृश्य भी वैसा ही, बच्चे ओवर-एक्साइटेड थे। होते भी क्यों न एक नया व्यक्ति  जो आया था .गुरुदेव टैगोर के सपनो  के विद्यालय को नही भूला जा सकता और कभी -कभी बच्चों की मांग, वक़्त की नज़ाकत, और शीतल मंद बयार के लोभ में खुले मै बात करना परिसर को शांतिनिकेतन में परिवर्तित कर देता है .विद्यालय से सटी झोपड़ियों और उनकी ड्योंडी के पर्दों  से झांकती हुई दो आखें  जब अपने बच्चों को पढ़ते  हुए ,खेलते हुए देखतीं है  और उनकी आखों की दीप्ति यह बताने के लिए काफी है की उनके बच्चों का भविष्य सुरक्षित हाथों में हैं. समुदाय के लोगों से बात करने पर पता चलता है की वे विद्यालय लेकर उत्साहित हैं और विद्यालय से संबधित  हर संभव सहयोग  करने का  जज़बात रखतें हैं, वो भावुक  होकर कहतें  है “ साब हम तो नहीं पढ़ सके पर चाहतें है की उनके बेटी-  बेटे पढ़ ले , क्या पता कल सरकार इस जंगल से भी हमको बाहर निकाल दे और दूसरी जगह स्कूल हो या नहीं कुछ पता नहीं .

बच्चे खूब एक्सप्रेसिव है खूब सवाल पूछ्तें है बिना किसी डर के, उनके सवालों के बाउंसर तो ऐसे थे जैसे  ग्लेन मैकग्राथ के सामने किसी हरी भरी पिच पर पारी कि शुरुआत करने कोई नवोदित खिलाडी आ गया हो. गणित में इबारती सवालों को  हल करने की कला वो जानतें है अलग अलग तरीकों से बिना किसी मानक कलन के ,जोड़ के तरीके तो देखने वाले ही हैं .अंग्रेजी में  जिस तरह से जब बच्चे अपना परिचय दे रहे थे और उनके अंग्रेजी के शब्दकोष की गठरी यह साबित करने को  काफी थी की हम भी किसी से कम नहीं द्य  समझ के तौर पर देखें तो पातें हैं कि बच्चे  सवालों को व्यहारिकता के जोड़ कर बातें करतें है और उनके जबाब देतें है  पर अभी लिखने के कौशल की यात्रा तय करनी है। बच्चों के बीच एक पूरा दिन बिताने के बाद विलियम वर्ड्सवर्थ बहुत याद आए। अब उन्होने ’चाइल्ड इज़ द फादर ऑफ मैन’’ चाहे जिस संदर्भ में कहा हो लेकिन कहा सही है।

विद्यालय से लौटते हुए आपके मन में कुछ सवाल तैर रहे होतें है और उसके केंद्र में होता है वह स्कूल, जिसके जबाब उसी चाहरदीवारी के भीतर होते हैं और  जिन्हें पाने के लिए जाने -अंजाने  मदद करतें है वहां के बच्चे ,शिक्षक और उनके अभिभावक।                                                                   

 ’नोटः यह आलेख हमारे इंग्लिश में लिखे आर्टिकल ’story of the Jungle school teacher’ का हिंदी रूपांतरण है , जिसमें  लॉकडाउन से पहले हुई स्कूल की विजिट के अनुभव हैं।

(लेखक अजीम प्रेमजी फॉउन्डेशन  कोटद्वार में  कार्यरत   हैं)

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