प्रकृति पर्यटन से जागेगी तस्वीर - TOURIST SANDESH

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गुरुवार, 8 अक्तूबर 2020

प्रकृति पर्यटन से जागेगी तस्वीर

 प्रकृति पर्यटन से जागेगी तस्वीर

सुभाष चन्द्र नौटियाल


कोरोना कोविड-19 महामारी ने पूरे विश्व का परिदृश्य बदल कर रख दिया है। इस कठिन समय में मानव प्रकृति से जुड़ने के लिए लालायित है,  ऐसे समय में 71 फीसदी वनीय भू-भाग से आच्छादित प्रदेश उत्तराखण्ड प्रकृति पर्यटन की दृष्टि से आदर्श राज्य माना जा सकता है परन्तु राज्य स्थापना के 21 वें वर्ष में प्रवेश कर करने वाले राज्य में अभी तक प्रकृति पर्यटन के लिए कोई स्पष्ट ठोस नीति नहीं बन पायी है। असल में सूबे में गठित सरकारों का अब तक इस ओर कोई भी ध्यान नहीं है। दरअसल सूबे की विधायिका तथा कार्यपालिका पर्यटन के जिस मॉडल को राज्य में स्थापित करना चाहती है। वह मॉडल ना तो राज्य की परिस्थितियों के अनुकूल है और ना ही इस राज्य के हित में ही है। फिर भी राज्य सरकार के कदम उसी ओर बढ़ रहे हैं। प्रकृति पर्यटन से न सिर्फ राज्य में आय के साधन बढ़ाये जा सकते बल्कि पर्यावरण एवं जल संरक्षण के लिए अनुकूल माहौल तैयार किया जा सकता है। प्रकृति पर्यटन एक ऐसा पर्यटन है जिसके प्रकृति को बिना नुकसान किये प्राकृतिक दृश्यों का आनंद लिया जाता है। वास्तव में मध्य हिमालय की गोद में बसे इस राज्य में प्रकृति पर्यटन, आध्यत्मिक तथा प्रकृति द्वारा स्वाथ्य उपचार  की असीम संभावनायें हैं। बस इन्हें विकसित करने की आवश्यकता है। प्रकृति पर्यटन के लिए आदर्श स्थिति वाले इस राज्य में हिमालय के उंचे शिखर, घने चीड़ देवदार बांज बुरांस, साल सागौन आदि वृक्षों के वन तथा औषधीय पौधे-लताएं, झीलें, पहाड़ों पर बने पवित्र मंदिर, शिवालिक पर्वत श्रृंखला पर बसी दून घाटी, कण्वघाटी, फूलों की घाटी प्रकृति की सुंदर, गोद में बसे चार धाम आदि अनेक तीर्थ एंव प्राकृतिक सुंदरता से परिपूर्ण पर्यटक स्थल प्रकृति पर्यटन के लिए आदर्श स्थिति स्थापित करते है। उत्तराखण्ड के हर जिले की अपनी एक खास विशेषता रही है, इसकी पहचान कर राज्य सरकार को केवल इस ओर दिशा देने की आवश्यकता है, परन्तु अभी तक राज्य सरकार इस ओर दिशा देने में असफल साबित हुई है। यहां कंकर-कंकर में शंकर का वास माना जाता है जो कि, यहां की धरा को आध्यात्मिक वातावरण तैयार करने में सहायक है। प्रकृति ने इस राज्य को असीम प्राकृतिक नेमतें दी है। यह प्रदेश अपने प्रचुर प्राकृतिक संसाधनों, घने जंगलों, ग्लेशियरों तथा जैव विविधता के लिए आदि काल से ही जाना जाता है। देवभूमि के नाम से प्रसिद्ध भारत भूमि का यह भाग सनातन धर्म की आस्था के प्रतीक अनेक पवित्र तीर्थ स्थल चार धाम सहित अनेक सुंदर झीलें, फूलों की घाटी, 12 राष्ट्रीय पार्क, ग्लेशियरों तथा खूबसूरत प्राकृतिक दृश्यों की उपस्थिति इस क्षेत्र को प्रकृति पर्यटन के लिए आदर्शता प्रदान करती हैं। बस इस ओर ध्यान देने की आवश्यकता है।

वर्तमान समय में प्रकृति पर्यटन विश्व मानव की आवश्यकता है। ईंट-गारे के जंगलों में कैद होता मानव इस समय प्रकृति से दूर होता जा रहा है। प्राकृतिक संसाधनों का निर्ममता पूर्वक दोहन करता आज का मानव अत्याधिक सुविधा भोगी होता जा रहा है। जिसके कारण मानव का सह-अस्तित्व का गुण स्वार्थ सिद्धि में परिवर्तित होता जा रहा है। मानव जितना अधिक कृत्रिम दुनिया की ओर बढ़ रहा है उतना ही कमजोर और मानवीय गुणों से विहीन होता जा रहा है। अंततः इस समय प्रकृति पर्यटन विश्व मानव की आवश्यकता बनता जा रहा है। प्राकृतिक रूप से समृद्ध उत्तराखण्ड राज्य प्रकृति पर्यटन के लिए आदर्श साबित हो सकता है परन्तु राज्य सरकार को इसके लिए माहौल तैयार करना होगा। यह समय सबसे उचित समय होगा जब कि पूरा मानव समुदाय न सिर्फ महामारी से आहत है बल्कि अति लालसा के कारण विश्व युद्ध के मुहाने पर भी खड़ा है तो ऐसे समय में न सिर्फ विश्व शान्ति के लिए पहल की जा सकती है बल्कि विश्व के मानव को प्रकृति से भी जोड़ा जा सकता है।

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